मुगल अर्थव्यवस्था, भूमि व्यवस्था व व्यापार | राजस्व प्रणाली, भूमि प्रकार, विदेशी व्यापार | Mughal Economy, Land Revenue System & Trade | Types of Land, Revenue, Ports Notes for All Exams

मुगल अर्थव्यवस्था, भूमि व्यवस्था व व्यापार | राजस्व प्रणाली, भूमि प्रकार, विदेशी व्यापार | Mughal Economy, Land Revenue System & Trade | Types of Land, Revenue, Ports Notes for All Exams

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अध्याय 8 • मुगल प्रशासन, अर्थव्यवस्था व समाज
8.2 अर्थव्यवस्था, भूमि व्यवस्थाएँ एवं व्यापार – Mughal Economy, Land Revenue System & Trade (UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC/Police)
💰 Mughal Land Revenue System – ज़ब्ती, नसक, कंकूत, बटाई, भूमि के प्रकार, ज़मींदार, जागीर 🚢 Mughal Trade & Commerce – Surat, Masulipatnam, Hooghly, विदेशी व्यापार, व्यापारी वर्ग, मुगल मुद्रा
🏰 Medieval India Mughal Administration & Economy Land Revenue, Economy & Trade
📘 8.2 अर्थव्यवस्था, भूमि व्यवस्थाएँ एवं व्यापार – Deep Study Notes
Mughal Economy & Land Revenue – Core for Exams
क्यों महत्वपूर्ण? Mughal Economy, Land Revenue System, Zamindari, Jagirdari, Mughal Trade & Ports से लगभग हर PCS/UPSSSC/Police व UPSC Pre में प्रश्न आता है। यह अध्याय Analysis आधारित MCQs + Assertion–Reason दोनों के लिए बेहद उपयोगी है।
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SMART TRICK:
“ज़ा–ना–कं–बा” ⇒ ज़ब्ती, नसक, कंकूत, बटाई (चार प्रमुख भू–राजस्व पद्धतियाँ)
“पो–पा–चा–हू–मसू” ⇒ पोर्तुगाल (Goa), पाटन/कम्बे, चावलपाट्टनम, हूगली, मसूलीपट्टनम (मुख्य बंदरगाह)

💼Mughal Economy का मूल ढाँचा

मुगल अर्थव्यवस्था का आधार कृषि थी। राज्य की आय का बड़ा हिस्सा भूमि–राजस्व (Land Revenue) से आता था, जिसे खराज/माल कहा जाता था। शिल्प, व्यापार, कर, कस्टम–ड्यूटी आदि सहायक स्रोत थे।

🌾 कृषि व प्रमुख फसलें

मुगल काल का गाँव आर्थिक इकाई का मूल केंद्र था। अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण व कृषि–निर्भर थी।

  • खरीफ फसलें: धान, ज्वार, बाजरा, कपास, तिल आदि।
  • रबी फसलें: गेहूँ, जौ, चना, मसूर आदि।
  • नकदी फसलें: कपास, गन्ना, नील, अफीम आदि – यही Commercialisation of Agriculture की आधारशिला हैं।
Mughal Agriculture Cash Crops
🚿 सिंचाई, नहरें व उत्पादकता

बरसाती खेती के साथ–साथ कुआँ, तालाब और कुछ क्षेत्रों में नहरों का प्रयोग होता था।

  • यमुना–घाटी व पंजाब में नहरों का उपयोग अपेक्षाकृत अधिक।
  • कुएँ (चरस/रहट से पानी उठाना) – सूखे क्षेत्रों में आम।
  • अकबर व शाहजहाँ के समय कुछ नहर–निर्माण, पर British समय की तरह संगठित Canal System नहीं।

उत्पादकता क्षेत्र–विशेष पर निर्भर थी, पर नकदी फसलों का हिस्सा धीरे–धीरे बढ़ता गया।

🗺️ भूमि के प्रकार – पोलज, परौती, चाचर, बनजर

अकबर के समय भूमि को उसकी उपयोगिता के आधार पर वर्गीकृत किया गया:

  • पोलज: हर वर्ष जोती–बोई जाने वाली उपजाऊ भूमि।
  • परौती: कुछ वर्षों के लिए खाली छोड़ी भूमि, फिर खेती योग्य।
  • चाचर: लंबी अवधि से परती पड़ी भूमि, पुनः खेती योग्य बनाने में समय लगता है।
  • बनजर: बंजर/अउपजाऊ भूमि, जिसे जोतने की संभावना बहुत कम।
Land Classification Polaj–Parauti–Chachar–Banjar
📊 Mughal Land Revenue System – मुख्य पद्धतियाँ

मुगल काल में राजस्व निर्धारण की कई पद्धतियाँ एक साथ/क्षेत्रानुसार चलीं:

  • ज़ब्ती (Zabti): भूमि–मापन, औसत उपज व औसत मूल्य पर आधारित Cash Assessment – अकबर का मुख्य Model।
  • नसक (Nasaq): अनुमान/पुरानी वसूली के आधार पर लगान – जहाँ विस्तृत मापन कठिन था।
  • कंकूत: खेत में खड़े फसल का निरीक्षण व अनुमान आधारित निर्धारण।
  • बटाई/घल्ला बख्शी: उपज का हिस्सा – 1/3 या 1/2 हिस्सा राज्य का, Natural Share System।
🏡 ज़मींदार, किसान व राज्य का संबंध

Mughal Land Revenue System में ज़मींदार महत्वपूर्ण मध्यस्थ थे।

  • ज़मींदार के पास परंपरागत भू–अधिकार व स्थानीय प्रभाव होता था।
  • वह किसानों से लगान वसूलकर राज्य को भेजता, तथा बीच का हिस्सा अपने लिए रखता था।
  • कई जगह ज़मींदार खुद खेती नहीं करते, पर भूमि पर राजनीतिक–सामाजिक नियंत्रण रखते थे।
  • ज़्यादा दबाव/उत्पीड़न के कारण किसान विद्रोह व पलायन की घटनाएँ भी होती हैं।
📜 जागीरदारी व्यवस्था और अर्थव्यवस्था

मनसबदारों को वेतन के बदले जागीर दी जाती थी, जहाँ से वे राजस्व लेकर अपना खर्च चलाते।

  • जागीर – अस्थायी राजस्व–अधिकार, जमीन का स्वामित्व नहीं।
  • मनसबदार अक्सर अधिक वसूली कर Local Economy पर दबाव बढ़ाते थे।
  • औरंगज़ेब के समय मनसबदारों की संख्या बढ़ने से Jagir Crisis – उपजाऊ जागीरें कम पड़ने लगीं।

यह संकट आगे चलकर मुगल साम्राज्य की आर्थिक–प्रशासनिक कमजोरी का बड़ा कारण बना।

🪙 Mughal Coinage – सोना, चाँदी, तांबा

मुगल अर्थव्यवस्था की एक बड़ी विशेषता सुसंगठित मुद्रा प्रणाली थी।

  • सोने का सिक्का: अशरफ़ी / मुहर।
  • चाँदी का सिक्का: रुपया – Sher Shah से शुरू, Mughal period में मानक रूप से जारी।
  • तांबे का सिक्का: दाम / फलुस – छोटे लेन–देन के लिए।
  • मुद्रा पर शासक का नाम, उपाधि, टकसाल का नाम और वर्ष अंकित रहता।
Mughal Currency Rupiya–Mohur–Dam
🧵 शिल्प–उद्योग, कारीगर और शाही करखाने

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ–साथ शहरी केंद्रों में Handicrafts व Textiles अत्यंत विकसित थे।

  • कपड़ा उद्योग – मलमल, रेशम, ब्रोकेड, शाली, कालीन आदि।
  • धातु–कला – हथियार, बर्तन, आभूषण।
  • शाही करखाने (Karkhanas): दरबार की जरूरतों के लिए विशेष उत्पादन इकाइयाँ।

इनका उत्पाद आंतरिक एवं विदेशी व्यापार दोनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता था।

🛒 आंतरिक व्यापार व बाज़ार

आंतरिक व्यापार क़स्बा, मंडी, गाँव, शहर के बीच सक्रिय था।

  • स्थानीय साप्ताहिक हाट, मंडियाँ – अनाज, कपड़ा, पशु, नमक आदि का व्यापार।
  • कस्बा/केंद्र – कारीगर, व्यापारी, सुदखोर, साहूकारों का निवास स्थान।
  • नगरों में विशेष बाजार – कपड़ा, अनाज, घोड़े, धातु आदि के अलग–अलग बाजार।
  • सराय व सड़कों के कारण यात्रियों व माल–ढुलाई को सुविधा।
🚢 विदेशी व्यापार व प्रमुख बंदरगाह

मुगल काल में समुद्री व स्थलीय दोनों तरह का विदेशी व्यापार फल–फूल रहा था।

  • मुख्य समुद्री बंदरगाह: सूरत, कंबे/खंभात, मछलीपट्टनम, होगली, दीव, ठठ्ठा आदि।
  • निर्यात – कपड़ा (Cotton & Silk), मसाले, अफीम, नील, शिल्प–उत्पाद।
  • आयात – घोड़े, कीमती धातुएँ, हथियार, विलासिता की वस्तुएँ।
  • पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी आदि यूरोपीय कंपनियाँ इस व्यापार में सक्रिय हुईं।
🎯
Exam Tip: “सबसे बड़ा मुगल बंदरगाह – Surat (गुजरात)” वाला प्रश्न कई बार UPSC/PCS/SSC में पूछा जा चुका है।
Quick Smart Revision – Mughal Economy, Land Revenue & Trade
Last Minute Turbo Notes

Prelims से ठीक पहले 5–7 मिनट में पूरा Topic revise करने के लिए तैयार किया गया सेक्शन। 2–3 बार दोहराने से Mughal Economy, Land Revenue System, Zamindari, Trade से जुड़े अधिकांश MCQs कवर हो जाते हैं।

⏱️ Core Keywords
  • Mughal Economy = Agriculture + Land Revenue + Trade.
  • Main Revenue = Kharaj / Mal (Land Revenue).
  • Key Systems = Zabti, Nasaq, Kankut, Batai.
  • Key Actors = Peasant, Zamindar, Jagirdar.
🌾 Land Types (Polaj–Parauti–Chachar–Banjar)
  • Polaj – हर वर्ष जोती जाने वाली उपजाऊ जमीन।
  • Parauti – अस्थायी रूप से परती, फिर खेती योग्य।
  • Chachar – लंबे समय से छोड़ी, सुधार पर खेती योग्य।
  • Banjar – बंजर, बहुत कम संभावना खेती की।
📊 Revenue Methods
  • Zabti – मापन + औसत उपज + औसत मूल्य; Cash Assessment.
  • Nasaq – पुराने रिकार्ड + अनुमान आधारित।
  • Kankut – खेत में खड़ी फसल की जाँच–परख।
  • Batai/Ghalla-bakhshi – उपज का हिस्सा (share system).
🏡 Village Structure
  • Peasant (Raiyat) – production का आधार।
  • Zamindar – मालिकाना व राजनीतिक प्रभाव, मध्यस्थ।
  • Mukaddam/Choudhary – village head / revenue intermediary.
  • Patwari – record keeper (land & crops).
🪙 Currency Quick Facts
  • Gold – Ashrafi / Mohur.
  • Silver – Rupiya (standard coin).
  • Copper – Dam / Fulus.
  • Coin = ruler name + mint + year.
🚢 Ports & Trade
  • West Coast – Surat, Cambay, Diu, Thatta.
  • East Coast – Masulipatnam, Hooghly, Balasore.
  • Exports – textiles, indigo, opium, spices, handicrafts.
  • Imports – horses, metals, luxury goods, arms.
📦 Merchants & Karkhanas
  • Banias, Marwaris, Multanis, Bohras, Chettis – प्रमुख व्यापारी।
  • Karkhana – शाही कार्यशाला, दरबार की आवश्यकता हेतु उत्पादन।
  • Textiles + Metal crafts = main export items.
⚠️ Structural Weakness
  • Jagir Crisis (later Mughals) – too many mansabdars, too few rich jagirs.
  • High revenue demand – peasant distress.
  • Weak control over local zamindars.
  • Regional powers + European trade competition.
PYQs व एक–पंक्ति प्रश्न – 8.2 अर्थव्यवस्था, भूमि व्यवस्थाएँ एवं व्यापार (40 Qs + Explanation)
UPSC / PCS / RO-ARO / UPSSSC / Police
इस सेक्शन में 40 परीक्षा–उन्मुख प्रश्न दिए गए हैं। हर प्रश्न के बाद उत्तर + 2–3 पंक्ति की व्याख्या दी गई है। पहले स्वयं उत्तर सोचें, फिर “👁️ View Answer” पर क्लिक करें।
1. ‘खालिसा भूमि’ किसे कहा जाता था?
उत्तर: वह भूमि जिसकी आय सीधे शाही खजाने में जाती थी।
व्याख्या: खालिसा क्षेत्र पर किसी जागीरदार का अधिकार नहीं होता था; यह मुगल वित्त का मुख्य, सुरक्षित और नियंत्रित राजस्व स्रोत था।
2. दहसाला (ज़ब्ती) प्रणाली का मूल आधार क्या था?
उत्तर: 10 वर्षों की औसत उपज के आधार पर लगान निर्धारण।
व्याख्या: टोडरमल द्वारा विकसित इस पद्धति में फसल–वार औसत उपज निकालकर तय अनुपात में कर निर्धारित होता था, जिससे किसान व राज्य दोनों को स्थिरता मिलती थी।
3. ‘बँदाबस्त’ शब्द का संबंध किससे है?
उत्तर: भूमि राजस्व निर्धारण और व्यवस्था से।
व्याख्या: बँदाबस्त में भूमि मापन, उपज अनुमान, कर–दर तय करना और वसूली की पद्धति शामिल होती थी; यही मुगल राजस्व प्रशासन का आधार था।
4. भूमि मापन की सामान्य इकाई ‘जरीब’ क्या थी?
उत्तर: लोहे/रस्सी से बनी माप–जंजीर।
व्याख्या: जरीब से खेतों की लंबाई–चौड़ाई मापी जाती थी ताकि राजस्व निर्धारण के लिए मानक क्षेत्रफल तय किया जा सके।
5. ‘महसूल’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में होता था?
उत्तर: राज्य द्वारा लिया जाने वाला कर / लगान।
व्याख्या: महसूल में भूमि कर के साथ अन्य कर (बाजार, पशु, व्यापार इत्यादि) शामिल हो सकते थे; यह कुल कर–आय के लिए प्रयुक्त व्यापक शब्द था।
6. ‘महसूल-ए-सुल्फ’ प्रायः किस वस्तु पर लगाया जाने वाला कर था?
उत्तर: नमक पर।
व्याख्या: नमक रोजमर्रा की आवश्यक वस्तु थी, इसलिए उस पर लगाया गया कर राजस्व का स्थिर और सुरक्षित स्रोत माना जाता था।
7. ‘करोड़ी’ किस प्रकार का अधिकारी था?
उत्तर: राजस्व वसूली का उच्च अधिकारी।
व्याख्या: जहाँ किसी परगने/क्षेत्र में राजस्व लक्ष्य लगभग 1 करोड़ दाम तय होता था, वहाँ उसकी वसूली की निगरानी के लिए करोड़ी नियुक्त किया जाता था।
8. मुगल भारत का सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुद्री बंदरगाह कौन-सा था?
उत्तर: सूरत।
व्याख्या: सूरत से अंग्रेज़, पुर्तगाली, डच आदि यूरोपीय कंपनियाँ पूर्व और पश्चिम दोनों दिशाओं में वस्त्र, मसाले व अन्य वस्तुओं का व्यापार करती थीं।
9. विदेशी व्यापार में भारत की कौन–सी वस्तु सर्वाधिक लोकप्रिय थी?
उत्तर: सूती वस्त्र (Cotton Textiles)।
व्याख्या: बंगाल, गुजरात, दक्कन आदि के महीन सूती कपड़े यूरोपीय बाज़ारों में अत्यधिक मांग में थे, जिससे भारत के पक्ष में व्यापार संतुलन बनता था।
10. मुगल काल में सबसे संगठित व्यापारी वर्ग किसे माना जाता है?
उत्तर: बनिया / महाजन वर्ग।
व्याख्या: नगरीय अर्थव्यवस्था, साहूकारी, उधार, हुंडी, थोक व्यापार आदि का बड़ा हिस्सा बनिया समुदाय के हाथ में था; ये ही उस समय के “बैंकर” थे।
11. किस शासक की तरह मुगल काल में बाजार–नियंत्रण (Price Control) की कठोर नीति नहीं अपनाई गई?
उत्तर: अलाउद्दीन खिलजी की तरह नहीं।
व्याख्या: अलाउद्दीन की तरह अनिवार्य मूल्य–नियंत्रण और राशनिंग जैसी नीति मुगल काल में नहीं अपनाई गई; यहाँ कर–प्रणाली व उत्पादकता पर अधिक ध्यान था।
12. जमींदार की आय का प्रमुख स्रोत क्या था?
उत्तर: लगान में हिस्सेदारी और परंपरागत देय (अभ्यस्त अधिकार)।
व्याख्या: जमींदार किसानों से वसूल किए गए लगान का एक भाग अपने अधिकार के रूप में रखता था; साथ ही उसे उपहार, सेवाएँ और सामाजिक प्रतिष्ठा के लाभ भी प्राप्त होते थे।
13. दहसाला/ज़ब्ती प्रणाली का विस्तृत वर्णन किस ग्रंथ में मिलता है?
उत्तर: आइन-ए-अकबरी में।
व्याख्या: अबुल फ़ज़ल द्वारा रचित आइन-ए-अकबरी में अकबर के प्रशासन, राजस्व प्रणाली, फसल–दर, सूबों के आँकड़े आदि का अत्यंत विस्तार से वर्णन है।
14. किस प्रकार की भूमि पर सामान्यतः लगान सबसे कम निर्धारित किया जाता था?
उत्तर: परती / बंजर भूमि पर।
व्याख्या: जो भूमि कम उपज देती थी या अनुपजाऊ थी, उस पर कर–दर भी कम रखी जाती थी ताकि किसान उसे जोतने के लिए प्रोत्साहित हों।
15. यूरोपीय व्यापारियों की गतिविधि मुगल भारत में किस काल में सबसे तेज़ हुई?
उत्तर: शाहजहाँ और औरंगज़ेब के समय।
व्याख्या: 17वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी, डच व फ्रेंच कंपनियाँ सक्रिय थीं; बंगाल, सूरत, मद्रास, होगली आदि उनके प्रमुख व्यापारिक केंद्र बने।
16. ‘कानूंगो’ का मुख्य कार्य क्या था?
उत्तर: भूमि व राजस्व से संबंधित अभिलेखों का रख–रखाव और परंपरागत जानकारी देना।
व्याख्या: कानूंगो परगना स्तर पर पुराने रिकार्ड, लगान दर, हक–हकूक आदि का ज्ञान रखता था और अमील/दीवान को सलाह देता था।
17. मुगल काल में किस क्षेत्र को प्रायः ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है?
उत्तर: बंगाल क्षेत्र को।
व्याख्या: गंगा–ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र अत्यंत उपजाऊ था; यहाँ चावल, गुड़, कपास आदि की भरपूर उत्पादन होता था, इसलिए इसे धान का कटोरा कहा गया।
18. ‘मालगुजारी’ किसको दर्शाती है?
उत्तर: भूमि से वसूल की गई राज्य–आय (लगान)।
व्याख्या: मालगुजारी वह राशि थी जो किसान से वसूल कर राज्य या जमींदार के पास जाती थी; यही ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी।
19. ‘पट्टा’ और ‘कबूलियत’ प्रणाली का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: किसान और राज्य के बीच लिखित कर–अनुबंध तय करना।
व्याख्या: पट्टा में राज्य की ओर से भूमि विवरण और कर–शर्तें दर्ज होती थीं, जबकि कबूलियत में किसान इन्हें स्वीकार करने की लिखित सहमति देता था।
20. तहसील स्तर पर राजस्व वसूली का मुख्य अधिकारी कौन था?
उत्तर: तहसीलदार / अमील।
व्याख्या: यह अधिकारी किसानों और जमींदारों से निर्धारित कर वसूल कर ऊपर भेजता था तथा बकाया वसूली की कार्रवाई भी देखता था।
21. मुगल भारत का प्रमुख निर्यात क्या था जिसे यूरोप में बहुत पसंद किया जाता था?
उत्तर: सूती वस्त्र / मलमल।
व्याख्या: ढाका, बंगाल और गुजरात की महीन मलमल व छपे हुए कपड़ों की मांग यूरोपीय बाज़ारों में अत्यधिक थी; कई यूरोपीय कंपनियाँ इन्हीं के लिए प्रतिस्पर्धा करती थीं।
22. मुगल भारत की मानक मुद्रा कौन–सी थी जो आगे चलकर भी प्रचलित रही?
उत्तर: रुपया (चाँदी का सिक्का)।
व्याख्या: रुपया मूलतः शेरशाह द्वारा प्रचलित किया गया, जिसे मुगलों ने भी अपनाया; यह उच्च मूल्य का मानक चाँदी–सिक्का था।
23. किस मुगल शासक के समय टकसाल एवं मुद्रा प्रणाली सर्वाधिक व्यवस्थित मानी जाती है?
उत्तर: अकबर के समय।
व्याख्या: अकबर ने पूरे साम्राज्य में एकरूप वजन, धातु–मानक और डिजाइन वाली मुद्राएँ जारी कीं, जिससे व्यापार और कर–व्यवस्था में विश्वास व सुविधा बढ़ी।
24. किस वस्तु पर आंतरिक करों (Internal Duties) का बोझ सबसे अधिक माना जाता है?
उत्तर: नमक पर।
व्याख्या: नमक पर सीमा, मार्ग और विक्रय – तीनों स्तरों पर कर लग सकता था; यही कारण था कि यह गरीब वर्ग पर भी अपेक्षाकृत अधिक कर–भार बन जाता था।
25. शहरी बाजारों में नैतिकता व अनुशासन की निगरानी के लिए कौन–सा अधिकारी जिम्मेदार था?
उत्तर: मुहतसिब।
व्याख्या: मुहतसिब बाजार में तोल–मोल, नाप–तौल, सार्वजनिक नैतिकता और धार्मिक अनुशासन की निगरानी करता था; यह प्रशासन और समाज दोनों से जुड़ा पद था।
26. ‘जगत सेठ’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता था?
उत्तर: बंगाल के अत्यंत धनी सेठ–बैंकर परिवार के लिए।
व्याख्या: जगत सेठ मुगल सम्राटों, नवाबों और बाद में अंग्रेज़ों को भी भारी ऋण व वित्तीय सहायता देते थे; इन्हें “बैंकर ऑफ बैंकर” कहा गया।
27. ‘हुंडी’ किस आर्थिक गतिविधि से संबंधित थी?
उत्तर: धन–हस्तांतरण और क्रेडिट प्रणाली से।
व्याख्या: व्यापारी एक नगर से दूसरे नगर में सुरक्षित रूप से धन भेजने के लिए हुंडी का उपयोग करते थे, जिससे लंबी दूरी का व्यापार बिना नकद ढुलाई के संभव हुआ।
28. किस मुगल शासक के समय बंगाल का विदेश व्यापार सर्वाधिक समृद्ध माना जाता है?
उत्तर: औरंगज़ेब के समय।
व्याख्या: 17वीं सदी के उत्तरार्ध में बंगाल को “मुगल इंडिया का स्वर्ण प्रदेश” कहा जाता था; यहाँ से कपड़ा, रेशम, चावल, चीनी आदि का बड़ा निर्यात होता था।
29. ‘मकस’ कर किस प्रकार के कर के रूप में जाना जाता था?
उत्तर: चौकी/सीमा–कर (Customs / Transit Duty)।
व्याख्या: जब वस्तुएँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाती थीं तो सीमा–चौकियों पर लिया जाने वाला कर मकस कहलाता था; यह आंतरिक व्यापार का महत्वपूर्ण टैक्स था।
30. ‘तालुकदार’ शब्द किस प्रकार के ग्रामीण शक्तिधारी वर्ग को दर्शाता है?
उत्तर: क्षेत्रीय भू–राजस्व प्रभारी / शक्तिशाली जमींदार।
व्याख्या: तालुकदार कई गाँवों या इलाके पर सामाजिक व राजस्व–सत्ता रखता था और अक्सर अपनी छोटी–सीन्य व प्रशासनिक मशीनरी भी बनाए रखता था।
31. दक्कन के किस बंदरगाह से घोड़ों का आयात विशेष रूप से होता था?
उत्तर: चौल, दाभोल आदि बंदरगाहों से।
व्याख्या: अरबी घोड़े मुगल घुड़सवार सेना की युद्ध–क्षमता के लिए आवश्यक थे; इसलिए दक्कन के समुद्री मार्ग घोड़ा–व्यापार के लिए प्रसिद्ध थे।
32. ‘बगर’ भूमि किस प्रकार की भूमि को कहा जाता था?
उत्तर: मध्यम उपज वाली भूमि को।
व्याख्या: बगर भूमि न तो अत्यधिक उपजाऊ (चहकार) होती थी न पूरी तरह बंजर; इस पर लगान दर भी मध्यम ही रखी जाती थी।
33. ‘चौधरी’ किस प्रकार के स्थानीय पद / व्यक्ति को कहा जाता था?
उत्तर: प्रभावशाली जमींदार / लगान वसूली का स्थानीय सरदार।
व्याख्या: चौधरी गाँव या परगना स्तर पर किसानों से लगान वसूलने व प्रशासन से समन्वय रखने वाला महत्वपूर्ण मध्यस्थ होता था।
34. किस समुद्री बंदरगाह को “मुगल भारत का Silver Gate” कहा जाता था?
उत्तर: सूरत।
व्याख्या: यूरोप से चाँदी की भारी आवक सूरत के माध्यम से भारत आती थी, इसलिए इसे सिल्वर गेट (Silver Gate of India) कहा गया।
35. गंगा–यमुना दोआब को कई स्रोतों में किस उपनाम से संबोधित किया गया है?
उत्तर: “हिंदुस्तान का अनाजघर” (Granary of India)।
व्याख्या: यहाँ गेहूँ, जौ, गन्ना आदि की प्रचुर खेती होती थी; इसलिए मुगल राजस्व के लिए यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण था।
36. शहरी व्यापार में ‘सर्राफ़’ की भूमिका क्या थी?
उत्तर: मुद्रा जाँचने, बदलने और सोने–चाँदी की शुद्धता प्रमाणित करने वाला जौहरी / मनी–चेंजर।
व्याख्या: विभिन्न टकसालों की मुद्राओं के चलते सर्राफ़ व्यापारियों को सही मुद्रा की पहचान, विनिमय दर और शुद्धता सुनिश्चित कराने में मदद करते थे।

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