8.1 मुगल प्रशासनिक ढाँचा – केंद्र, सूबा, सरकार, परगना व गाँव स्तर (UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC/Police)
“Badshah–Suba–Sarkar–Pargana–Gaon”
बादशाह (Center) → सूबा (Province) → सरकार (District-type) → परगना (Tehsil-type) → गाँव (Village Unit)
मुगल प्रशासन एक केंद्र-प्रधान साम्राज्यवादी प्रणाली था, जिसमें सभी अधिकार अंततः बादशाह में निहित थे। फ़ारसी प्रशासनिक परंपरा, इस्लामी राजनीतिक सिद्धांत और भारतीय सामाजिक–आर्थिक वास्तविकताओं का मिश्रण था।
- बादशाह को “जिल्ल-ए-इलाही” (ईश्वर की छाया) माना जाता था।
- सभी उच्च अधिकारी बादशाह के मनसबदार होते थे – सैन्य + प्रशासनिक दोनों भूमिकाएँ।
- राजस्व–व्यवस्था (ज़ब्ती आदि) और मनसबदारी मिलकर इस तंत्र की रीढ़ बनती हैं।
- आदेश, फरमान, नीतियाँ ऊपर से नीचे तक साफ़ श्रृंखला में पहुँचती थीं।
केंद्र स्तर पर शासन का नियंत्रण शाही दरबार और उससे जुड़े विभागों (दिवान) के माध्यम से होता था।
- बादशाह – सर्वोच्च शासक, सेना का सर्वकमांडर, सर्वोच्च न्यायाधीश।
- केंद्र में मुख्यतः चार–पाँच बड़े विभाग – वित्त (दीवान), सेना (मीर बख्शी), न्याय (क़ाज़ी), धार्मिक व दान (सदर) आदि।
- केंद्र की नीतियाँ ही सूबा, सरकार, परगना और गाँव तक लागू होती थीं।
मुगल प्रशासन में बादशाह की भूमिका केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि वास्तविक निर्णय–केंद्र थी।
- उच्च अधिकारियों की नियुक्ति व बर्खास्तगी का अधिकार।
- युद्ध, शांति, संधि, ज़मींदारी और जागीर देने–छीनने का अधिकार।
- दिवान-ए-आम में आम जनता की शिकायत सुनना, दिवान-ए-ख़ास में महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय।
- बादशाह की व्यक्तिगत क्षमता पर ही प्रशासन की गुणवत्ता काफी निर्भर करती थी।
🏢 केंद्र सरकार के प्रमुख अधिकारी (Central Offices)
पूरे साम्राज्य के राजस्व, व्यय, लेखा–जोखा का जिम्मेदार। इसे आज के Finance Minister + Chief Accountant जैसा पद माना जा सकता है।
- खजाने (तहखाना) की देखरेख, राज्य–आय का अनुमान व नियंत्रण।
- प्रांतों के दीवानों की निगरानी – कहीं अधिक या कम वसूली न हो।
- बादशाह को आर्थिक स्थिति की रिपोर्ट देना।
मीर बख्शी मुगल सेना का प्रमुख अधिकारी था – मनसब (रैंक) देने, हटाने और सैनिकों की तैनाती का दायित्व।
- सैनिकों का वेतन, निरीक्षण व रिपोर्टिंग।
- मनसबदारों की उपस्थिति और सैनिक संख्या की जांच।
- युद्ध के समय सेना का संगठन और कमांडरों की नियुक्ति।
क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात – सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी, शरीयत आधारित न्याय। सदर-उस-सदूर – धार्मिक संस्थानों, दान (मदरसे, मस्जिद, औकाफ़ भूमि) की देखरेख।
- धार्मिक व पारिवारिक मामलों में फ़ैसले (क़ाज़ी)।
- मदरसा/मस्जिद को इन्म भूमि (दान भूमि) प्रदान करना (सदर)।
- धार्मिक वर्ग और राज्य के बीच सेतु की तरह काम करना।
दीवान-ए-इंशा – शाही पत्राचार, फ़रमान, दस्तावेज़ – आज के Cabinet Secretariat जैसा। दीवान-ए-रसालत – विदेश व कूटनीति संबंधित काम।
- शाही फरमान का मसौदा व रिकॉर्ड (इंशा)।
- दूत, संधि, विदेशी शासकों से संपर्क (रसालत)।
📍 प्रांतीय प्रशासन – सूबा स्तर (Suba Administration)
अकबर ने साम्राज्य को सूबों (Suba) में बाँटा – प्रत्येक सूबा का प्रमुख सूबेदार था। यह आज के Governor + Army Commander जैसा पद था।
- कानून–व्यवस्था, सुरक्षा, विद्रोह नियंत्रण।
- केंद्र की नीतियों को प्रांत स्तर पर लागू करना।
- ज़मींदार, मनसबदार, स्थानीय रईसों के साथ संबंध व संतुलन।
सूबे में राजस्व–व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी प्रांतीय दीवान पर होती थी। यह सीधे केंद्र के दीवान-ए-आला को रिपोर्ट करता था, सूबेदार को नहीं।
- राजस्व संग्रह के लक्ष्य, अनुमान व रिपोर्टिंग।
- परगना/तालुका स्तर के अमीन, कानूंगो, पटवारी की निगरानी।
- सूबेदार की मनमानी व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का माध्यम।
केंद्र की तरह प्रांतों में भी समान पद होते थे:
- बख्शी: प्रांत के सैनिकों की भर्ती व वेतन।
- क़ाज़ी: शरीयत के अनुसार न्याय।
- सदर: धार्मिक संस्थानों व दान भूमि की देखरेख।
फौजदार: जिले/सरकार या सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य अधिकारी, विद्रोह suppression में प्रमुख। कोतवाल: नगर की शांति, व्यवस्था, बाज़ार और सफाई व्यवस्था का जिम्मेदार।
- फौजदार – हमलों, डकैती, विद्रोह पर सख्त कार्रवाई।
- कोतवाल – तौल–माप, कीमत, रात की चौकी, अपराध नियंत्रण।
📌 सरकार (Sarkar) व परगना – मध्य स्तर प्रशासन
सूबा के भीतर सरकार एक मध्य–स्तर की प्रशासनिक इकाई थी – इसे आज के जिला (District) के समानांतर माना जा सकता है।
- सरकार के अधिकारी – फौजदार, अमीन, मुंसिफ आदि।
- कानून–व्यवस्था, कर–संग्रह की निगरानी, स्थानीय विवादों का निपटारा।
परगना – आज के तहसील/ब्लॉक जैसा। यह मुगल प्रशासन की बहुत महत्वपूर्ण इकाई थी।
- अमिल/शीकरणा: राजस्व अधिकारी – लगान का निर्धारण व वसूली।
- कानूंगो: भूमि, राजस्व व परंपरागत हक–हकूक का अभिलेख रखने वाला।
- पटवारी: गाँव–स्तर का लेखाकार – खेत, फसल, लगान का रिकॉर्ड।
- चौधरी: स्थानीय प्रभावशाली; राजस्व संग्रह व किसानों से समन्वय।
🌾 गाँव–स्तर प्रशासन (Village Administration)
वास्तविक उत्पादन (कृषि) का केंद्र गाँव था। मुगल राजस्व प्रणाली का पूरा आधार किसान + ज़मींदार + गाँव प्रशासन पर टिका था।
- मुखिया / मुकद्दम: गाँव का मुखिया, पंचायत प्रमुख।
- पटवारी: भूमि व फसल का रिकॉर्ड – आज भी यह परंपरा चलती है।
- ज़मींदार: पारंपरिक भू-स्वामी, जो राज्य और किसान के बीच मध्यस्थ भी था।
ज़मींदार न केवल भू–स्वामी था, बल्कि मुगल राज्य और किसान के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सेतु की भूमिका निभाता था।
- लगान वसूल कर राज्य को भेजना, अपने हिस्से की मालगुज़ारी रखना।
- गाँव की सुरक्षा, विवाद सुलझाने और न्याय की प्रारंभिक भूमिका।
- विद्रोह या असंतोष की स्थिति में ज़मींदार की भूमिका निर्णायक हो जाती थी।
📊 मुगल प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ व कमजोरियाँ (Analysis)
- केंद्र-प्रधान शासन: बादशाह सर्वेसर्वा, परंतु विभागों के माध्यम से प्रशासन।
- मनसबदारी प्रणाली: सैन्य + प्रशासनिक रैंकिंग – वफादारी सुनिश्चित।
- ज़ब्ती व राजस्व–मापन: भूमि मापन, उपज अनुमान, नकद/अनाज लगान।
- फ़ारसी भाषा: प्रशासन की आधिकारिक भाषा – रिकॉर्ड व आदेश इसी में।
- स्थानीय तत्वों का उपयोग: राजपूत, स्थानीय रईस, ज़मींदार – शासन में शामिल।
- अत्यधिक केंद्रीकरण – बादशाह की व्यक्तिगत क्षमता पर अत्यधिक निर्भरता।
- जागीर–मनसब टकराव – बढ़ती मनसबदारी, घटती उपजाऊ जागीरें।
- उच्च लगान – कई बार किसानों पर अत्यधिक बोझ, विद्रोह की पृष्ठभूमि।
- उत्तर मुगलों की कमजोरी – निरीक्षण व नियंत्रण प्रणाली ढीली पड़ गई।
परीक्षा से पहले इस सेक्शन को 2–3 बार पढ़ने से Mughal Administration (Center to Village) की पूरी तस्वीर दिमाग में सेट हो जाती है।
- Center – बादशाह व केंद्रीय दीवान
- Suba – प्रांत (सूबेदार, दीवान)
- Sarkar – मध्य इकाई (फौजदार आदि)
- Pargana – अमिल, कानूंगो, पटवारी
- Village – मुखिया, ज़मींदार, पटवारी
- सर्वोच्च शासक – Zill-e-Ilahi
- नियुक्ति–बर्खास्तगी का पूर्ण अधिकार
- दिवान-ए-आम व दिवान-ए-ख़ास की अध्यक्षता
- युद्ध, शांति, संधि सभी का अंतिम निर्णय
- वित्त व राजस्व का सर्वोच्च अधिकारी
- राज्य–आय का अनुमान व नियंत्रण
- प्रांतीय दीवानों की निगरानी
- सेना व मनसबदारी का प्रमुख
- सैनिकों की भर्ती व वेतन
- मनसब आवंटन, पदोन्नति, निरीक्षण
- क़ाज़ी – शरीयत पर आधारित न्याय
- सदर – धार्मिक संस्थान, औकाफ़ भूमि
- दान भूमि (इन्म) का नियंत्रण
- सूबेदार – प्रांत प्रमुख
- दीवान – वित्त प्रमुख
- बख्शी, क़ाज़ी, सदर – सहायक अधिकारी
- अमिल/शीकरणा – लगान संग्रह
- कानूंगो – रिकॉर्ड व परंपरागत अधिकार
- पटवारी – खेत–फसल रजिस्टर
- चौधरी – स्थानीय ज़मींदार वर्ग नेता
- मुखिया/मुकद्दम – गाँव का नेतृत्व
- पटवारी – भूमि व फसल की लेखा
- ज़मींदार – मध्यस्थ + भू–स्वामी
- केंद्र–प्रधान लेकिन बहु–स्तरीय तंत्र
- मनसबदारी + जागीर = शक्ति का संतुलन
- कमज़ोरी – उच्च लगान, जागीर–संकट, उत्तर मुगलों की अक्षमता
व्याख्या: मुगल तंत्र पूर्णतः केंद्र–प्रधान था, जिसमें सभी अंतिम निर्णय, नियुक्ति–बर्खास्तगी, युद्ध–शांति आदि का अधिकार बादशाह के पास निहित था।
व्याख्या: दीवान-ए-आला पूरे साम्राज्य के राजस्व, व्यय, खजाने और लेखा–जोखा का सर्वोच्च अधिकारी था, जो सीधे बादशाह को रिपोर्ट करता था।
व्याख्या: मीर बख्शी सैनिकों की भर्ती, वेतन, निरीक्षण तथा मनसब (रैंक) के वितरण व जांच की जिम्मेदारी संभालता था।
व्याख्या: क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात शरीयत पर आधारित न्याय व्यवस्था का प्रधान था, जो उच्च स्तर के धार्मिक–न्यायिक मामलों पर निर्णय देता था।
व्याख्या: सदर-उस-सदूर मस्जिद, मदरसा, औकाफ़ व इन्म भूमि के संचालन, दान वितरण तथा धार्मिक वर्ग से संबंध का मुख्य अधिकारी था।
व्याख्या: मुगल दरबार, राजस्व–रजिस्टर, शाही फ़रमान, प्रशासनिक आदेश सभी मुख्यतः फ़ारसी में लिखे जाते थे, इसलिए इसे Official Language माना गया।
व्याख्या: ऊपरी स्तर पर सूबा, उसके नीचे सरकार (जिला), फिर परगना (तहसील) और अंत में गाँव – यही Mughal Administrative Hierarchy थी।
व्याख्या: सूबेदार प्रांत का सर्वोच्च कार्यकारी अधिकारी था, जो कानून–व्यवस्था, सेना और प्रशासन के लिए जिम्मेदार होता था।
व्याख्या: वित्तीय नियंत्रण के लिए प्रांतीय दीवान को सूबेदार से स्वतंत्र रखा गया, ताकि आर्थिक मामलों में सूबेदार की मनमानी न हो सके।
व्याख्या: फौजदार किसी क्षेत्र विशेष में सैनिक बल का प्रभारी था, जो विद्रोह, डकैती और सीमा–सुरक्षा जैसे कार्यों को देखता था।
व्याख्या: कोतवाल शहर की सुरक्षा, बाज़ार में तौल–माप, सफाई व्यवस्था, रात की चौकी, अपराध नियंत्रण आदि का सीधा प्रभारी होता था।
व्याख्या: अमिल/शीकरणा किसानों व ज़मींदारों से लगान वसूली कर राज्य को भेजता था और राजस्व लक्ष्य पूरा करने के लिए जिम्मेदार था।
व्याख्या: कानूंगो परगना के परंपरागत हक–हकूक, लगान की दर, भूमि की पुरानी जानकारी सुरक्षित रखता था और अमिल/दीवान को सलाह देता था।
व्याख्या: पटवारी खेतों, फसलों, बोआई, उत्पादन व लगान की जानकारी रजिस्टर में दर्ज करता था – यह परंपरा आज भी कई राज्यों में जारी है।
व्याख्या: ज़मींदार कृषि भूमि पर परंपरागत अधिकार रखते थे, लगान वसूलते थे, और गाँव–समाज व प्रशासन के बीच कड़ी की तरह कार्य करते थे।
व्याख्या: यदि सैन्य व वित्त दोनों शक्ति सूबेदार के हाथ में होती, तो विद्रोह या स्वतंत्रता की संभावना बढ़ जाती; दीवान को अलग रखकर इस जोखिम को घटाया गया।
व्याख्या: दिवान-ए-आम में बादशाह या उसका प्रतिनिधि जनता की शिकायतें सुनता और त्वरित निर्णय देता – यह मुगल शासन की वैधता का प्रतीक भी था।
व्याख्या: दिवान-ए-ख़ास में बड़े अमीर, मनसबदार, प्रांतीय अधिकारी आदि शामिल होते थे और साम्राज्य संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे।
व्याख्या: मनसब संख्या के आधार पर घुड़सवार वतन/जागीर तय होती थी; इससे शासक को योग्य व्यक्तियों को नियंत्रित करने और उन्हें पुरस्कृत करने का साधन मिला।
व्याख्या: बाद के समय में मनसबदारों की संख्या बढ़ने पर उपजाऊ जागीरें कम पड़ने लगीं, लगान–दबाव बढ़ा और नियंत्रण ढीला पड़ गया, जिससे प्रशासनिक संकट उत्पन्न हुआ।
व्याख्या: सूबा के भीतर कई सरकारें होती थीं, और प्रत्येक सरकार के अंदर कई परगने – इससे प्रशासनिक भार विभाजित हो जाता था।
व्याख्या: चौधरी स्थानीय प्रभावशाली ज़मींदार होता था, जो लगान वसूली और किसानों से समन्वय में अहम भूमिका निभाता था।
व्याख्या: मुगल शासन में बादशाह ही सर्वोच्च कार्यपालिका, विधायी और न्यायिक सत्ता का केंद्र था। शाही फरमान (Farman) सर्वोच्च आदेश माने जाते थे और अंतिम अपील भी बादशाह के दरबार में ही होती थी।
व्याख्या: मुगल दरबार में वज़ीर को दीवान-ए-आला भी कहा जाता था, जो राज्य की आय–व्यय, बजट, लगान, जागीर आदि सभी वित्तीय मामलों का सर्वोच्च अधिकारी होता था।
व्याख्या: मीर बख़्शी मुगल साम्राज्य का सैन्य प्रमुख था। यह मनसबदारों की भर्ती, वेतन, सैन्य पदोन्नति, जासूसी और सेना के संगठन का दायित्व संभालता था।
व्याख्या: शाही दफ्तरों, परवाने, दस्तावेज़, राजकीय पत्राचार की देखरेख उच्च श्रेणी के मुंशी तथा संबंधित अधिकारियों के अधीन रहती थी, जो बादशाह के आदेशों को लिखित रूप में जारी करते थे।
व्याख्या: मुगल सूबे के प्रमुख शासक को सुभेदार कहा जाता था, जो कई बार नवाब उपाधि भी धारण करता था। इसके अधीन सैन्य, राजस्व और कानून–व्यवस्था के प्रमुख अधिकार होते थे, पर वह बादशाह के प्रति जवाबदेह रहता था।
व्याख्या: सूबे में दीवान कर-व्यवस्था, लगान निर्धारण, वसूली, जागीरों की निगरानी तथा खातों की जाँच करने वाला सर्वोच्च राजस्व अधिकारी था, जिसके ऊपर सीधे केंद्र (दीवान-ए-आला) की निगरानी रहती थी।
व्याख्या: फौजदार किसी जिले/क्षेत्र का सैन्य अधिकारी होता था, जिसका काम विद्रोहों को दबाना, कानून–व्यवस्था बनाए रखना और शाही आदेशों को बलपूर्वक लागू कराना था।
व्याख्या: प्रशासनिक संरचना में सूबा → सरकार → परगना → गाँव क्रम चलता था। “सरकार” आज के ज़िले (District) के लगभग बराबर मानी जा सकती है, जिसके प्रमुख कार्यालय में क़ाज़ी, फौजदार, अमीन आदि अधिकारी होते थे।
व्याख्या: परगना में राजस्व की वसूली में शिखदार (स्थानीय अमलदार) तथा अमीन/कानूंगो (माप–जोख, रिकार्ड व पुरानी परंपराओं के ज्ञाता) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, जो किसानों और सूबे के बीच कड़ी का काम करते थे।
व्याख्या: गाँव के मुखिया या मुकद्दम किसानों का प्रतिनिधि होता था, जबकि पटवारी खेतों का रिकॉर्ड, फसल, लगान आदि का ब्यौरा लिखित रूप में रखता था। यही ग्राम प्रशासन की बुनियादी इकाई थी।
व्याख्या: क़ाज़ी इस्लामी कानून (शरिया) के अनुसार फैसले करता था। शहरों में मुहतसिब बाज़ार व्यवस्था, नैतिक आचरण, तोल–मोल आदि की निगरानी करता था। उच्च स्तर पर क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात पूरे साम्राज्य का प्रधान क़ाज़ी था।
व्याख्या: दिवान-ए-आला मुगल साम्राज्य का उच्चतम वित्त कार्यालय था, जहाँ से पूरे साम्राज्य की आय–व्यय, लगान–नीति, जागीर, मनसबदारों के वेतन आदि से सम्बंधित निर्णय लिए जाते थे।
व्याख्या: मुगल महल और सेना के लिए राशन, अनाज, भंडारण और वितरण का काम दारोग़ा-ए-दिवान, मीर-ए-बक़्क़ाल आदि अधिकारियों के अधीन रहता था, जो दरबार की आंतरिक आर्थिक व्यवस्था को सुचारु रखते थे।
व्याख्या: दारुल-खिलाफ़त शब्द से उस स्थान का बोध होता था जहाँ से बादशाह शासन करता था, जो राजनीतिक तथा प्रशासनिक दृष्टि से सर्वोच्च केंद्र होता था।
व्याख्या: नीति, कर–दर, मनसब, युद्ध आदि के निर्णय बादशाह व केंद्रीय दफ्तरों में होते थे, लेकिन उन्हें लागू करने के लिए सुभेदार, दीवान, फौजदार, परगना व ग्राम अधिकारियों की स्थानीय मशीनरी काम करती थी। इसलिए यह “Centralised but Territorial Administration” माना जाता है।
व्याख्या: सूबा–सरकार–परगना–गाँव की स्पष्ट संरचना, मनसबदारी, ज़ब्ती, आइन-ए-अकबरी में विस्तृत उल्लेख आदि के कारण अकबर का काल मुगल प्रशासनिक ढाँचे की “क्लासिक” अवस्था माना जाता है।
व्याख्या: सूबे में सुभेदार सेना व शासन देखता था, जबकि दीवान राजस्व व वित्त। दोनों सीधे केंद्र को उत्तरदायी थे, जिससे एक–दूसरे पर नियंत्रण और शक्ति का संतुलन बना रहे – यही दोहरी जिम्मेदारी है।
व्याख्या: UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC आदि में अक्सर पूछा जाता है कि कौन–सा पद किस कार्य से सम्बंधित है, कौन किसके अधीन है, तथा “उपरोक्त कथनों में से कौन–सा सही है?” प्रकार के Objective प्रश्न – इसलिए पद+कार्य+हाइरार्की तीनों को लिंक करके याद करना ज़रूरी है।
