6.2 मनसबदारी प्रणाली एवं ज़ब्ती व्यवस्था – मनसब, जागीर, सैन्य व राजस्व प्रशासन (UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC/Police)
“मनसब” का अर्थ है पद, रैंक या दर्जा। अकबर ने पूरे साम्राज्य के अधिकारियों, सेनापतियों और दरबारी उमराओं को एक संगठित रैंक सिस्टम के अंतर्गत रखा, जिसे मनसबदारी कहा जाता है।
- हर अधिकारी के नाम के साथ एक संख्या जुड़ी – यही उसका मनसब रैंक था।
- मनसब के आधार पर ही वेतन, प्रतिष्ठा, सैनिक जिम्मेदारी तय होती थी।
- मनसबदारी पूरी तरह केन्द्र की कृपा पर आधारित थी – वंशानुगत नहीं।
अकबर ने मनसब को दो भागों में बाँटा:
- ज़ात (Zat): अधिकारी की व्यक्तिगत रैंक – उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा, दरबार में स्थान, व्यक्तिगत वेतन आदि इसी पर निर्भर।
- सवार (Sawar): अधिकारी के पास कितने अश्वारोही (घुड़सवार) होने चाहिए, यह संख्या “सवार” से तय होती थी।
- कई बार किसी का ज़ात बड़ा, सवार कम या ज़ात कम, सवार बड़ा भी हो सकता था – ज़रूरत के अनुसार।
Exam में अक्सर पूछा जाता है: “ज़ात किससे संबंधित है? सवार किससे?”
अकबर के समय मनसब की संख्या लगभग 10 से 5000 (ज़ात) तक थी (कुछ विशेष लोगों को 7000 तक भी); सवार रैंक भी अलग–अलग।
- छोटी श्रेणी: 10, 20, 50, 100 मनसब।
- मध्यम: 500, 1000, 1500, 2000 मनसब।
- उच्च: 3000, 4000, 5000 (राजकुमारों, बड़े अमीरों को)।
मनसब जितना ऊँचा, उतनी अधिक ज़िम्मेदारी, वेतन और राजनीतिक महत्व।
मनसबदार की नियुक्ति सीधे बादशाह की ओर से फ़रमान द्वारा होती थी।
- मनसब किसी की जन्म–आधारित संपत्ति नहीं था – बादशाह जब चाहे बढ़ा या घटा सकता था।
- योग्यता, युद्ध–सेवा, वफादारी और प्रशासनिक क्षमता के आधार पर पदोन्नति।
- द्रोह, भ्रष्टाचार या नाकामी की स्थिति में तुरंत डिमोशन या बर्खास्तगी संभव।
इससे केन्द्र के हाथ में पूर्ण नियंत्रण बना रहता था।
मनसबदारों का वेतन दो तरीकों से दिया जाता था:
- नकद वेतन (Naqdi): खज़ाने से सीधे भुगतान।
- जागीर: किसी क्षेत्र की राजस्व–आय मनसबदार को दे दी जाती, जिससे वह अपना वेतन और सैनिकों का खर्च निकालता।
मनसबदार जागीर का मालिक नहीं होता था, केवल अस्थायी राजस्व–उपभोग का अधिकार मिलता था।
अकबर ने घुड़सवारों की गुणवत्ता व संख्या पर नियंत्रण के लिए दो महत्वपूर्ण व्यवस्थाएँ अपनाईं:
- दाग व्यवस्था: घोड़ों पर सरकारी निशान (ब्रांड) लगाना, जिससे नकली घोड़ों की आपूर्ति न हो सके।
- चेहरा व्यवस्था: सैनिकों की हाज़िरी व पहचान के लिए उनके चेहरे का रजिस्टर / विवरण रखना।
ये दोनों कदम धोखाधड़ी रोकने और सेना को सक्षम बनाने के लिए थे।
जागीर व्यवस्था ने मनसबदारों को वेतन देना आसान बनाया, परंतु कुछ समस्याएँ भी पैदा हुईं:
- कुछ जागीरदारों ने किसानों पर अत्यधिक लगान लगाया।
- जागीरें बदलती रहती थीं – मनसबदार लम्बी अवधि की सुधार योजना कम बनाते थे।
- केंद्र को लगातार जागीर–बँटवारे पर निगरानी रखनी पड़ती थी।
फिर भी अकबर के समय तक यह व्यवस्था अपेक्षाकृत संतुलित रूप से चलती रही।
“ज़ब्त” का अर्थ है रिकॉर्डेड असेसमेंट – यानी भूमि, फसल, उत्पादन और लगान का संगठित हिसाब।
- अकबर ने अधिकतर क्षेत्रों में मध्य–माप और औसत पैदावार के आधार पर लगान तय किया।
- किसानों से लगान प्रायः नकद लिया जाता (कई स्थानों पर उपज का हिस्सा भी)।
- राजस्व की गणना के लिए गाँव–स्तर तक मौजा–वार रिकॉर्ड तैयार किए गए।
यही व्यवस्था आगे चलकर तोदरमल के दशसाला नियम में परिपक्व रूप में दिखती है।
राजस्व मंत्री राजा तोदरमल ने अकबर के समय दशसाला (10 वर्ष औसत) योजना लागू की।
- पिछले 10 वर्षों की औसत पैदावार और दाम के आधार पर लगान दर तय।
- फसलों, भूमि की उपजाऊ क्षमता और क्षेत्र के अनुसार अलग–अलग दरें।
- लगान सामान्यतः उपज का 1/3 हिस्सा (लगभग) माना जाता है।
इससे राजस्व–आय स्थिर हुई और किसान भी एक तरह की निश्चितता महसूस करने लगे।
- जरेब मापन: भूमि को नापने के लिए मानकीकृत रस्सियों / मापन–पद्धति का प्रयोग।
- बटाई पद्धति: उपज का हिस्सा बाँटकर लगान – फसल कटने के बाद।
- कांकुत / अनुमान: खड़ी फसल देखकर अनुमानित उपज के आधार पर लगान।
- नकद वसूली: राजस्व प्रायः नकद में, जिससे राज्य को स्थिर आय मिलती थी।
क्षेत्र के अनुसार इन पद्धतियों का मिश्रित प्रयोग होता था – लेकिन ज़ब्ती + दशसाला मुख्य ढांचा था।
- दीवान–ए–आला: केंद्रीय राजस्व प्रमुख (सम्पूर्ण साम्राज्य)।
- सुबह दीवान: प्रांतों में राजस्व अधिकारी।
- आमिल / कारकुन: जिला एवं परगना स्तर पर वसूली अधिकारी।
- क़ानूनगो, पटवारी: भूमि रिकॉर्ड व आँकड़े तैयार करने वाले स्थानीय कर्मचारी।
इसी नेटवर्क के माध्यम से ज़ब्ती व्यवस्था जमीन पर लागू होती थी।
- मनसबदारी से केंद्र का नियंत्रण मजबूत – सेना व अधिकारी पूरी तरह बादशाह पर निर्भर।
- ज़ब्ती–दशसाला से राजस्व–आधार स्थिर, योजनाबद्ध व वैज्ञानिक पद्धति।
- जागीरदारी और उच्च लगान के कारण कुछ क्षेत्रों में किसानों की स्थिति कठिन भी रही।
- लम्बे समय में यही संरचना आगे मुगल–पतन के समय जागीर–संकट का भी कारण बनती है।
परीक्षा से पहले 5–7 मिनट में पूरा टॉपिक दोहराने के लिए यह सेक्शन तैयार किया गया है। इसे 2–3 बार रिवाइज करने से मनसबदारी–ज़ब्ती से जुड़े अधिकांश MCQs कवर हो जाते हैं।
- “मनसब” = रैंक / पद।
- परिचय: अकबर के समय पूर्ण रूप से विकसित।
- रेंज: लगभग 10 से 5000 (कुछ को 7000)।
- वेतन, प्रतिष्ठा, सैनिक जिम्मेदारी – सब मनसब पर आधारित।
- ज़ात = व्यक्तिगत रैंक, वेतन, दरबार में स्थान।
- सवार = घुड़सवारों की संख्या की जिम्मेदारी।
- एक ही व्यक्ति का ज़ात और सवार अलग–अलग हो सकता है।
- वंशानुगत नहीं – पूरी तरह बादशाह की मर्जी।
- युद्ध–सेवा व वफादारी पर आधारित पदोन्नति।
- केन्द्र के लिए नियंत्रण का मजबूत साधन।
- नकद वेतन + जागीर–आय।
- जागीर = राजस्व का स्रोत, भूमि का मालिकाना हक़ नहीं।
- जागीरें स्थानांतरित – स्थायी जमींदारी नहीं बन पाई।
- दाग = घोड़ों पर सरकारी निशान।
- चेहरा = सैनिकों का रजिस्टर / हाज़िरी।
- उद्देश्य – फर्जी घोड़े व काल्पनिक सैनिकों पर रोक।
- भूमि व उत्पादन का नियमित रिकॉर्ड।
- लगान मुख्यतः नकद – उपज के अनुपात में।
- मौजा–वार आँकड़ों के आधार पर निर्धारण।
- राजा तोदरमल द्वारा विकसित।
- पिछले 10 वर्षों की औसत उपज व दाम पर आधारित।
- लगान लगभग उपज का 1/3 हिस्सा।
- जरेब–मापन (भूमि नाप)।
- बटाई (फसल बाँटकर वसूली)।
- कांकुत (अनुमान आधारित वसूली)।
- दीवान–ए–आला – केन्द्रीय राजस्व प्रमुख।
- सुबह दीवान – प्रांतीय राजस्व अधिकारी।
- क़ानूनगो, पटवारी, आमिल – स्थानीय राजस्व ढाँचा।
- “ज़ात–सवार–जागीर–दशसाला” – चारों के बीच अंतर साफ़ रखें।
- अधिकांश MCQ सीधे definition या Pair–matching पर आधारित होते हैं।
- 1–2 प्रश्न विश्लेषणात्मक – “अकबर की सफलता का आधार” पर आते हैं।
व्याख्या: अकबर के प्रशासन में “मनसब” से तात्पर्य किसी अधिकारी के रैंक से है, जिसके आधार पर उसकी वेतन, प्रतिष्ठा व सैन्य जिम्मेदारी तय होती थी।
व्याख्या: प्रारंभिक रूप से विचार हुमायूँ के काल में दिखते हैं, परंतु इसे संगठित, विस्तृत और साम्राज्य–व्यापी रूप अकबर ने ही दिया।
व्याख्या: ज़ात–रैंक से ही अधिकारी की सामाजिक प्रतिष्ठा, दरबार में स्थान और व्यक्तिगत वेतन निर्धारित होता था – यह व्यक्तिगत status को दर्शाता है।
व्याख्या: सवार–रैंक से यह निर्धारित होता था कि अधिकारी को अपने साथ कितने अश्वारोही सैनिक बनाए रखने हैं, जिनकी जांच दाग–चेहरा से होती थी।
व्याख्या: मनसब किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं थी; बादशाह चाहे तो बढ़ा, घटा या समाप्त कर सकता था – इससे केन्द्र का नियंत्रण मजबूत रहता था।
व्याख्या: निचली श्रेणी के अमीलों से लेकर बड़े उमराओं व राजकुमारों तक अलग–अलग मनसब निर्धारित किए गए थे, जो बाद में बदलाव के साथ बढ़ते भी रहे।
व्याख्या: बहुत–से मनसबदारों को सीधे खज़ाने से नकद वेतन मिलता था, जबकि कई को किसी क्षेत्र की राजस्व–आय (जागीर) दे दी जाती, जिससे वे अपना व सैनिकों का खर्च उठाएँ।
व्याख्या: जागीर वास्तव में राज्य की भूमि थी; मनसबदार को केवल वहाँ से आय लेने का अधिकार था, जिससे स्थायी जमींदारी वर्ग तैयार न हो सके और भूमि पर अंतिम नियंत्रण राज्य के पास रहे।
व्याख्या: मनसबदार यदि कमज़ोर या नकली घोड़े दिखाकर वेतन ले लें, इसे रोकने के लिए सरकारी निशान (दाग) लगाया जाता था, ताकि घोड़ों की पहचान हमेशा बनी रहे।
व्याख्या: चेहरा व्यवस्था के अंतर्गत सैनिकों का विवरण व हाज़िरी–रजिस्टर रखा जाता, ताकि मनसबदार काल्पनिक सैनिक दिखाकर सरकार से अधिक वेतन न ले सकें।
व्याख्या: ज़ब्ती व्यवस्था के तहत भूमि, फसल, पैदावार, लगान आदि का लिखित रिकॉर्ड तैयार किया जाता था, जिससे राजस्व–वसूली वैज्ञानिक और स्थिर बन सके।
व्याख्या: अकबर के राजस्व मंत्री तोदरमल ने पिछले 10 वर्षों की औसत उपज व कीमत के आधार पर लगान निर्धारण की पद्धति विकसित की, जिसे दशसाला योजना कहा जाता है।
व्याख्या: अचानक बढ़–घट से बचने के लिए लंबी अवधि की औसत ली गई, जिससे राज्य को स्थिर आय और किसानों को अनुमानित बोझ दोनों सुनिश्चित हों।
व्याख्या: अलग–अलग क्षेत्रों व फसलों के लिए दरें अलग थीं, लेकिन सामान्य तौर पर लगान उपज के लगभग एक–तिहाई भाग के आसपास माना जाता है।
व्याख्या: जरेब के अंतर्गत मानकीकृत रस्सियों/मापकों से खेतों को नापा जाता, ताकि भूमि के आकार के अनुसार सही लगान निर्धारित किया जा सके।
व्याख्या: बटाई में किसान और राज्य / जमींदार के हिस्से स्पष्ट तय रहते, और कटाई के बाद वास्तविक उपज के आधार पर हिस्सा बाँटा जाता था।
व्याख्या: जहाँ भौतिक बटाई कठिन हो, वहाँ अधिकारी खेतों का निरीक्षण कर उपज का अनुमान लगाते और उसी के अनुसार लगान तय करते थे।
व्याख्या: दीवान–ए–आला पूरे साम्राज्य की आय–व्यय, लगान–व्यवस्था और राजस्व–नीति का प्रमुख अधिकारी था, जो सीधे बादशाह के प्रति उत्तरदायी रहता था।
व्याख्या: हर सूबे में एक दीवान होता था, जो उस प्रांत की राजस्व–व्यवस्था का प्रभारी और केंद्र के दीवान–ए–आला के अधीन होता।
व्याख्या: मनसबदारी ने सभी बड़े–छोटे सैनिक–अधिकारी वर्ग को बादशाह पर निर्भर बना दिया, जिससे प्रांतीय स्वायत्तता व विद्रोह की संभावना कम हुई।
व्याख्या: जागीर से अधिकतम आय निकालने की होड़ में कुछ जागीरदार किसानों पर भारी बोझ डालते, जिससे ग्रामीण जीवन पर नकारात्मक असर पड़ता था।
व्याख्या: सेना और अधिकारी वर्ग मनसब से नियंत्रित, जबकि ज़ब्ती–दशसाला से स्थिर राजस्व – यही संयोजन अकबर की दीर्घकालिक राजनीतिक सफलता का आधार बना।
व्याख्या: उन्हें एक ओर सैनिकों को बनाए रखना होता था, दूसरी ओर जिसके अधीन क्षेत्र या जागीर होती, वहाँ प्रशासन व वसूली पर भी निगरानी करनी पड़ती।
व्याख्या: घोड़ों पर सरकारी निशान (दाग) और सैनिकों का चेहरा–रजिस्टर रखने से नकली घोड़े व काल्पनिक सैनिक दिखाकर अधिक वेतन लेने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा।
व्याख्या: पिछले 10 वर्षों के रिकॉर्ड, कीमतों और उत्पादन के आधार पर लगान तय करना आधुनिक आँकड़ा–आधारित नीति के समान था, इसीलिए इसे अपेक्षाकृत वैज्ञानिक माना जाता है।
व्याख्या: क़ानूनगो व पटवारी ही गाँव–परगना स्तर पर ज़ब्ती–दशसाला के लिए आवश्यक डेटा तैयार करते थे, जिससे ऊपरी स्तर पर नीति बनाना संभव हो पाता था।
व्याख्या: मनसबदार अलग–अलग क्षेत्रों में रहते हुए भी सीधे बादशाह से जुड़े सैनिक–कमांडर थे, जिससे किसी भी क्षेत्र में जल्दी सैनिक एकत्र करना संभव हुआ।
व्याख्या: लगान की दर, वसूली की पद्धति, जागीरदारों का व्यवहार – सबका सीधा असर खेत–किसानों पर पड़ता था; इसलिए इन व्यवस्थाओं की सफलता–विफलता का पैमाना भी किसान की स्थिति से जुड़ता है।
व्याख्या: जहाँ अकबर के समय यह अपेक्षाकृत संतुलित थी, वहीं आगे चलकर मनसबों की अत्यधिक वृद्धि, जागीर–संकट और भ्रष्टाचार से यही व्यवस्थाएँ मुगल–पतन की प्रक्रिया में भी योगदान देती हैं।
व्याख्या: पिछले वर्षों के प्रश्न–पत्रों में बार–बार यही keywords दोहराए गए हैं, इसलिए objective व descriptive दोनों प्रकार के प्रश्नों के लिए इन्हें पक्के तरीके से याद रखना चाहिए।
