अकबर की धार्मिक नीति व दीन-ए-इलाही नोट्स | Akbar Religious Policy, Sulh-i Kul & Din-i Ilahi (UPSC, PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police)

अकबर की धार्मिक नीति व दीन-ए-इलाही नोट्स | Akbar Religious Policy, Sulh-i Kul & Din-i Ilahi (UPSC, PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police)

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अध्याय 6 • अकबर का शासन
6.3 अकबर की धार्मिक नीति एवं दीन-ए-इलाही – इबादतखाना, सुलह-ए-कुल, धार्मिक सहिष्णुता, दीन-ए-इलाही (UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC/Police)
☸️ इबादतखाना, सुलह-ए-कुल, जज़िया समाप्ति, दीन-ए-इलाही, तौहीद-ए-इलाही, धार्मिक सहिष्णुता 📝 UPSC, State PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police व अन्य परीक्षाओं हेतु गहन हिंदी नोट्स, Quick Smart Revision व PYQs
🏰 मध्यकालीन भारत मुगल साम्राज्य अकबर की धार्मिक नीति व दीन-ए-इलाही
📘 6.3 अकबर की धार्मिक नीति एवं दीन-ए-इलाही – Deep Study Notes
Most Asked Medieval Concept
क्यों महत्वपूर्ण? अकबर की धार्मिक नीति से ही मुगल शासन की वैचारिक नींव और भारतीय समाज में समन्वयवादी परंपरा मजबूत होती है। सुलह-ए-कुल, इबादतखाना और दीन-ए-इलाही से जुड़े प्रश्न लगभग हर Exam में मिलते हैं।
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SMART TRICK (3-Pillar Technique):
अकबर की धार्मिक नीति को हमेशा तीन स्तंभों में याद करें – इबादतखाना → सुलह-ए-कुल → दीन-ए-इलाही (इबादतखाना = संवाद, सुलह-ए-कुल = नीति, दीन-ए-इलाही = व्यक्तिगत नैतिक संहिता)
🧠 1. पृष्ठभूमि – अकबर का धार्मिक दृष्टिकोण कैसे विकसित हुआ?

अकबर के आरंभिक वर्ष (बैरम खाँ के संरक्षण में) पारंपरिक सुन्नी इस्लाम के वातावरण में बीते, लेकिन धीरे–धीरे उसने देखा कि केवल कट्टरता से साम्राज्य नहीं चल सकता।

  • मुगल साम्राज्य में हिन्दू, मुसलमान, जैन, सिख, पारसी इत्यादि अनेक समुदाय थे – सभी को साथ लिए बिना स्थिर शासन असंभव था।
  • सूफी संतों (विशेषतः अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाना) से अकबर पर सहिष्णुता का प्रभाव पड़ा।
  • शेख मुबारक, अबुल फ़ज़ल, फ़ैज़ी जैसे विद्वानों ने अकबर के विचारों को व्यापक बनाया और तर्क–प्रधान दृष्टि दी।

यानी, धार्मिक नीति केवल “अध्यात्मिक” नहीं, बल्कि राजनीतिक स्थिरता + सामाजिक समन्वय की ज़रूरत से भी निकली।

🏛️ 2. इबादतखाना (1575, फ़तेहपुर सीकरी)

1575 ई. में अकबर ने फ़तेहपुर सीकरी में इबादतखाना की स्थापना की – यह एक विशेष सभागार था जहाँ रात के समय धार्मिक–दार्शनिक चर्चाएँ की जाती थीं।

  • प्रथम चरण: केवल मुस्लिम उलमा और फुक़हा – आपस में ही विवाद, फतवे और झगड़े।
  • दूसरा चरण: सूफी संतों, शिया–सुन्नी दोनों वर्गों के विद्वानों को बुलाया गया।
  • तीसरा चरण: हिंदू पंडित, जैन आचार्य, पारसी पुरोहित, ईसाई पादरी, सिख गुरु के शिष्य आदि शामिल हुए।
  • चौथा चरण: चर्चाएँ केवल धर्मशास्त्र नहीं, बल्कि दर्शन, नैतिकता, राजनीति, समाज पर भी होने लगीं।

इन बहसों से अकबर का विश्वास बढ़ा कि कोई भी धर्म पूर्ण सत्य पर अकेले अधिकार नहीं रखता, इसलिए शासन–नीति “सभी के प्रति सहिष्णु” होनी चाहिए।

🤝 3. सुलह-ए-कुल – क्या था? (Peace with All)

“सुलह-ए-कुल” का सरल अर्थ – सभी के साथ शांति, सभी धर्मों के प्रति समान आदर और निष्पक्षता। यह अकबर की शासन–नीति का वैचारिक आधार बना।

  • राज्य किसी विशेष धर्म के पक्ष में खड़ा न होकर, सभी प्रजा को सम–दृष्टि से देखे।
  • राजकीय नियुक्तियाँ “योग्यता” के आधार पर हों, न कि केवल मजहब के आधार पर।
  • किसी धर्म–समुदाय के पूजा–पाठ, तीर्थ, उत्सव में अनावश्यक हस्तक्षेप न किया जाए।
  • दूसरे धर्म के प्रति नफ़रत फैलाने वाले फतवे व कट्टरता को नियंत्रित किया जाए।

अबुल फ़ज़ल ने आइन-ए-अकबरी में सुलह-ए-कुल को अकबर की सबसे बड़ी नीति–उपलब्धि बताया है।

🕊️ 4. धार्मिक सहिष्णुता – व्यावहारिक कदम

अकबर ने केवल विचार नहीं बदले, बल्कि कई ठोस प्रशासनिक–आर्थिक फैसले भी किए:

  • तीर्थ–यात्रा कर समाप्त – हिन्दुओं की तीर्थ–यात्रा पर लगने वाला कर हटा; धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा।
  • जज़िया कर समाप्त – गैर–मुस्लिमों पर लगने वाला पारंपरिक कर खत्म किया, जिससे उनकी आर्थिक–मानसिक परेशानी कम हुई।
  • कई मंदिरों, तीर्थ–स्थलों व ब्राह्मणों को भूमि–अनुदान – यह दर्शाता है कि केवल इस्लामी संस्थानों को ही संरक्षण नहीं दिया गया।
  • सती–प्रथा पर रोक, बाल विवाह–विवादों पर हस्तक्षेप – सामाजिक सुधार के प्रयास भी धार्मिक नीति से जुड़े थे।
  • जैन आचार्यों (विशेषकर हिरविजय सूरी) के आग्रह पर कुछ समय के लिए पशु–वध पर रोक।
🌍 5. जैन, सिख, ईसाई, पारसी आदि के साथ संबंध

अकबर ने लगभग हर प्रमुख धार्मिक–समुदाय से संवाद की नीति अपनाई:

  • जैन संत – अहिंसा, जीव–दया और शाकाहार पर अकबर ने गंभीरता से विचार किया; कई अवसर पर पशु–वध रोका।
  • सिख गुरुओं – गुरु अमरदास व गुरु रामदास के समय; अकबर ने लंगर के लिए कर–छूट व भूमि–अनुदान दिया।
  • ईसाई पादरी – गोवा से जेसुइट मिशनरी बुलाए गए; इन्होंने बाइबिल के सिद्धांत अकबर के दरबार में रखे।
  • पारसी धर्मगुरु – आग की पूजा, नैतिक सिद्धांत आदि पर विस्तृत चर्चा; कई फारसी शब्दावली दरबार में प्रचलित हुई।

इस संवाद से अकबर को यह विश्वास हुआ कि सत्य की कुछ किरणें हर धर्म में हैं, इसलिए राज्य को सबके लिए समान दूरी व सम्मान रखना चाहिए।

☀️ 6. दीन-ए-इलाही (1582) – क्या सचमुच “नया धर्म” था?

1582 ई. के आसपास अकबर ने कुछ चुनिंदा दरबारी साथियों के बीच “दीन-ए-इलाही” की परिकल्पना की। इसे अक्सर “नया धर्म” कहा जाता है, पर अधिकांश इतिहासकार इसे नैतिक–आदर्शों की संहिता मानते हैं।

  • मुख्य सदस्य: अबुल फ़ज़ल, फ़ैज़ी, बीरबल, राजा टोडरमल, छोटे–छोटे पदस्थ अधिकारी – संख्या बहुत सीमित।
  • कोई अलग धार्मिक ग्रंथ, मंदिर/मस्जिद, जनसामान्य की संस्था नहीं; केवल दरबारी–स्तर की निष्ठा–प्रणाली।
  • इसमें सत्यवादिता, दया, राजा के प्रति निष्ठा, शराब–से–दूरी, पशु–दया जैसे नैतिक सिद्धांतों पर बल दिया गया।
  • कई धर्मों से “अच्छे तत्व” लेकर एक नैतिक संहिता बनाना उद्देश्य था, न कि जनता पर नया मजहब थोपना।

परीक्षा के लिए याद रखें: दीन-ए-इलाही सामूहिक धर्म नहीं, बल्कि अकबर–केंद्रित नैतिक–निष्ठा का समूह था।

7. तौहीद-ए-इलाही – ईश्वर एक, रूप अनेक

अकबर ने “तौहीद-ए-इलाही” (ईश्वर की एकता) की अवधारणा को महत्व दिया – उसके अनुसार ईश्वर एक है, पर लोगों तक पहुँचने के मार्ग अनेक हो सकते हैं।

  • ईश्वर की समझ में तर्क (Reason) और अनुभव (Experience) दोनों को महत्त्व दिया।
  • धर्म–शास्त्रों की अंध–अनुकरण से अधिक, नैतिकता व न्याय पर जोर।
  • “राजा” को भी ईश्वरीय प्रकाश का वाहक माना गया – ताकि वह सभी के साथ न्याय करे, पक्षपात न करे।

यही सोच आगे चलकर सुलह-ए-कुल और दीन-ए-इलाही दोनों में दिखाई देती है।

⚖️ 8. आलोचना, सीमाएँ और प्रतिक्रियाएँ

अकबर की धार्मिक नीति को सबने सराहा नहीं; उस समय भी विरोध था और बाद के इतिहासकारों ने भी आलोचना की।

  • कई कट्टर सुन्नी उलमा ने इसे इस्लामी सिद्धांतों से विचलन माना।
  • दीन-ए-इलाही को कुछ लोग “शाह–परस्ती” (राजा–पूजा) जैसा मानते थे – इसलिए यह जन–समर्थन नहीं जुटा सका।
  • अकबर के बाद जहाँगीर–शाहजहाँ ने इस स्तर की वैचारिक प्रयोगशीलता को आगे नहीं बढ़ाया।

फिर भी, आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि सुलह-ए-कुल ने भारतीय बहुलता (Pluralism) को सैद्धांतिक आधार दिया, जो आज तक महत्वपूर्ण माना जाता है।

📈 9. परिणाम – राजनीति, समाज और इतिहास पर असर

अकबर की धार्मिक नीति के दूरगामी प्रभाव हुए:

  • राजपूत, जाट, कायस्थ, खत्री, ब्राह्मण आदि अनेक वर्ग मुगल प्रशासन में शामिल हुए – समावेशी साम्राज्य बना।
  • धार्मिक संघर्षों में कमी और प्रशासनिक स्थिरता में वृद्धि – विद्रोह कम, उत्पादन व राजस्व अधिक।
  • “मुगल भारत” की छवि एक सांस्कृतिक समन्वय वाले साम्राज्य की बनी।
  • अकबर को बाद के इतिहास में “महान” (Akbar the Great) कहने का एक बड़ा कारण उसकी धार्मिक नीति ही है।
🔍 10. सुलह-ए-कुल vs दीन-ए-इलाही – Exam Special
  • सुलह-ए-कुल = राज्य की आम नीति (सभी प्रजा पर लागू), सहिष्णुता, समानता, न्याय, धार्मिक–निष्पक्षता।
  • दीन-ए-इलाही = छोटा समूह, दरबारी स्तर की नैतिक–निष्ठा, जन–धर्म नहीं।
  • सुलह-ए-कुल = राजनीतिक–प्रशासनिक सिद्धांत, दीन-ए-इलाही = व्यक्तिगत–नैतिक/आध्यात्मिक प्रयोग
  • परीक्षा में अक्सर दोनों को गड़बड़ करके प्रश्न दिए जाते हैं – दोनों के बीच अंतर साफ–साफ याद रखें।
🎯
EXAM TIP: जहाँ “सभी प्रजा” शब्द आए → सुलह-ए-कुल समझें। जहाँ “चुनिंदा दरबारी, निष्ठा, नया नाम” आए → दीन-ए-इलाही समझें।
Quick Smart Revision – अकबर की धार्मिक नीति एवं दीन-ए-इलाही
Last Minute Turbo Revision

परीक्षा से ठीक पहले 5–7 मिनट में पूरा टॉपिक दोहराने के लिए यह सेक्शन तैयार है। दो–तीन बार पढ़ने से सुलह-ए-कुल, इबादतखाना, दीन-ए-इलाही से जुड़े अधिकांश प्रश्न कवर हो जाते हैं।

⏱️ त्वरित टाइमलाइन
  • इबादतखाना स्थापना: 1575 (फ़तेहपुर सीकरी)
  • जज़िया समाप्ति: लगभग 1564 के आसपास
  • दीन-ए-इलाही की शुरुआत: 1582 के आसपास
  • अकबर का शासनकाल: 1556–1605
🤝 सुलह-ए-कुल – मुख्य बिंदु
  • सभी धर्मों के प्रति समान आदर
  • नियुक्ति = योग्यता, न कि केवल मजहब
  • धार्मिक करों में कमी/समाप्ति
  • राज्य का दृष्टिकोण – निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण
🏛️ इबादतखाना – Quick Facts
  • स्थान: फ़तेहपुर सीकरी
  • उद्देश्य: धर्म–दार्शनिक संवाद
  • शुरू में केवल मुस्लिम उलमा, बाद में सभी धर्मों के विद्वान
  • निष्कर्ष: कोई धर्म पूर्ण नहीं, सबमें सत्य के अंश
☀️ दीन-ए-इलाही – Quick Facts
  • सीमित सदस्य, दरबारी–स्तर
  • मुख्य सिद्धांत: सत्य, दया, राजा–निष्ठा, अहिंसा
  • कोई अलग धर्म–ग्रंथ या आम जनता शामिल नहीं
  • Nature: नैतिक संहिता / अकबर–निष्ठा का समूह
🕊️ धार्मिक सहिष्णुता – प्रमुख कार्य
  • तीर्थ–यात्रा कर समाप्त
  • जज़िया समाप्त
  • मंदिरों व तीर्थों को अनुदान
  • सती–प्रथा पर नियंत्रण के प्रयास
🌍 अन्य धर्मों से संवाद
  • जैन आचार्य – अहिंसा, जीव–दया
  • सिख गुरु – लंगर व गुरुद्वारा हेतु अनुदान
  • ईसाई पादरी – बाइबिल की चर्चा
  • पारसी पुरोहित – आग–पूजा व नैतिक सिद्धांत
तौहीद-ए-इलाही
  • ईश्वर की एकता पर बल
  • तर्क + अनुभव दोनों महत्वपूर्ण
  • राजा = न्यायपूर्ण शासक, ईश्वरीय प्रकाश का माध्यम
📈 परिणाम – Exam Lines
  • साम्राज्य अधिक समावेशी
  • राजपूत–मुगल गठजोड़ मजबूत
  • धार्मिक संघर्षों में कमी
  • अकबर की “Greatness” का मुख्य कारण
💡 Exam Smart Tips
  • इबादतखाना = 1575, फ़तेहपुर सीकरी – हमेशा याद रखें।
  • दीन-ए-इलाही = 1582, सीमित दरबारी समूह – जन–धर्म नहीं।
  • सुलह-ए-कुल = सभी प्रजा पर लागू शासन–नीति।
PYQs व एक पंक्ति प्रश्न (40+ Qs with Explanation)
UPSC / PCS / RO-ARO / UPSSSC / Police
इस सेक्शन में 40 के आसपास महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए हैं। हर प्रश्न के बाद उत्तर + 2–3 पंक्ति की व्याख्या दी गई है। पहले स्वयं उत्तर सोचें, फिर “उत्तर देखें” पर क्लिक करें (पूरा row clickable है)।
1. इबादतखाना की स्थापना अकबर ने कहाँ और कब की? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: फ़तेहपुर सीकरी में, लगभग 1575 ई. में।
व्याख्या: इबादतखाना वही स्थान था जहाँ अकबर ने विभिन्न धर्मों के विद्वानों के साथ रात में बहस–मुबाहिसे किए और धीरे–धीरे यह निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्मों में सत्य के कुछ–न–कुछ अंश हैं।
2. इबादतखाना की बैठकों में प्रारंभ में किन लोगों को बुलाया जाता था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: मुख्यतः मुस्लिम उलमा और फुक़हा।
व्याख्या: शुरुआत में इबादतखाना केवल इस्लामी विद्वानों की सभा जैसा था, लेकिन उनके आपसी झगड़ों और कट्टरता से अकबर निराश हुआ और फिर अन्य धर्मों के विद्वानों को बुलाने लगा।
3. “सुलह-ए-कुल” सिद्धांत किस मुगल शासक से संबंधित है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: अकबर।
व्याख्या: सुलह-ए-कुल अकबर की सबसे महत्वपूर्ण नीति थी, जिसके तहत राज्य सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है और किसी एक धर्म का पक्षपाती नहीं बनता।
4. सुलह-ए-कुल नीति का मूल उद्देश्य क्या था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सभी धर्मों के प्रति समान आदर रखते हुए स्थिर व समावेशी शासन स्थापित करना।
व्याख्या: अकबर जानता था कि बहु–धर्मी समाज में केवल सहिष्णु नीति ही लंबे समय तक साम्राज्य को जोड़े रख सकती है, इसलिए सुलह-ए-कुल को प्रशासन का आधार बनाया।
5. अकबर ने जज़िया कर क्यों समाप्त किया था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: गैर–मुस्लिम प्रजा पर आर्थिक–धार्मिक दबाव कम करने और समानता की भावना बढ़ाने के लिए।
व्याख्या: जज़िया पारंपरिक रूप से केवल गैर–मुस्लिमों पर लगाया जाता था; इसे हटाकर अकबर ने संदेश दिया कि राज्य की नज़र में सभी प्रजा समान हैं।
6. दीन-ए-इलाही की शुरुआत किस वर्ष के आसपास मानी जाती है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: लगभग 1582 ई. के आसपास।
व्याख्या: इबादतखाना की बहसों, विविध धर्मों से संवाद और सुलह-ए-कुल के अनुभव के बाद अकबर ने चुनिंदा दरबारियों के बीच दीन-ए-इलाही की अवधारणा रखी।
7. क्या दीन-ए-इलाही एक जन–धर्म (Mass Religion) बन सका? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, यह केवल सीमित दरबारियों तक ही सीमित रहा।
व्याख्या: न तो कोई बड़े स्तर पर प्रचार–प्रसार हुआ, न ही आम जनता को जोड़ा गया; इसलिए यह एक व्यापक धर्म की बजाय अकबर–केंद्रित नैतिक–निष्ठा का समूह ही रहा।
8. दीन-ए-इलाही के प्रमुख सिद्धांतों में कौन–सी बातें शामिल थीं? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सत्यवादिता, दया, राजा के प्रति निष्ठा, कुछ हद तक अहिंसा व मद्य–त्याग।
व्याख्या: दीन-ए-इलाही का जोर किसी विशेष पूजा–पद्धति पर नहीं, बल्कि नैतिक जीवन पर था; इसलिए इसे नैतिक संहिता कहना अधिक उचित है।
9. दीन-ए-इलाही के प्रमुख अनुयायियों में कौन–सा हिन्दू दरबारी सबसे अधिक प्रसिद्ध है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: बीरबल।
व्याख्या: बीरबल न केवल अकबर का प्रिय दरबारी था, बल्कि दीन-ए-इलाही के प्रमुख सदस्य के रूप में भी उसका नाम बार–बार परीक्षाओं में पूछा जाता है।
10. “तौहीद-ए-इलाही” शब्द अकबर की किस प्रकार की अवधारणा से जुड़ा है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: ईश्वर की एकता और सार्वभौमिकता की अवधारणा से।
व्याख्या: अकबर मानता था कि ईश्वर एक है, भले ही लोग उसे अलग–अलग नामों व मार्गों से प्राप्त करना चाहें; यही सोच उसकी समन्वयवादी नीति में परिलक्षित होती है।
11. किस सूफी परंपरा की दरगाह पर अकबर अक्सर मन्नतें मांगने जाता था, विशेषकर उत्तराधिकारी की कामना के लिए? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर।
व्याख्या: अकबर का सूफी संतों में विशेष विश्वास था; अजमेर दरगाह की यात्राएँ उसकी धार्मिक भावना व सूफी प्रभाव को दर्शाती हैं।
12. जैन आचार्य हिरविजय सूरी के प्रभाव से अकबर ने किस प्रकार के निर्णय लिए थे? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: कुछ अवसरों पर पशु–वध पर रोक तथा अहिंसा–सम्बंधी रियायतें।
व्याख्या: जैन धर्म की अहिंसा–प्रधान शिक्षा से प्रभावित होकर अकबर ने विशेष पर्वों पर पशु–वध बंद कराया और हिंसा कम करने की कोशिश की।
13. अकबर ने सिख गुरुओं के प्रति किस प्रकार का रवैया अपनाया था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सम्मानपूर्ण व सहयोगी रवैया, लंगर व गुरुद्वारों के लिए अनुदान।
व्याख्या: गुरु अमरदास व गुरु रामदास के समय अकबर ने सिख समुदाय को आर्थिक सहायता व कर–रियायत देकर सद्भाव की नीति अपनाई।
14. इबादतखाना की बहसों के बाद अकबर ने उलमा की किस बात से विशेष रूप से निराशा जताई थी? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: आपसी संकीर्णता, फतवा–बाज़ी और सहिष्णुता की कमी से।
व्याख्या: मुस्लिम उलमा के बीच छोटी–छोटी बातों पर झगड़े, एक–दूसरे को काफ़िर कहने की प्रवृत्ति ने अकबर को यह सोचने पर मजबूर किया कि केवल किसी एक धर्मग्रंथ पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं।
15. सुलह-ए-कुल और दीन-ए-इलाही में मुख्य अंतर क्या है? (संक्षेप में) 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सुलह-ए-कुल = राज्य की सार्वजनिक नीति; दीन-ए-इलाही = सीमित दरबारियों की नैतिक–निष्ठा।
व्याख्या: सुलह-ए-कुल पूरे साम्राज्य की शासन–नीति थी, जबकि दीन-ए-इलाही केवल चुनिंदा लोगों के बीच चलने वाली विशिष्ट निष्ठा–संहिता थी; दोनों को मिलाना गलती होगी।
16. किस इतिहासकार ने अकबर की धार्मिक नीति को “राज्य–निर्माण की व्यावहारिक आवश्यकता” कहा है? (संकल्पना आधारित) 👁️उत्तर देखें
उत्तर: अधिकांश आधुनिक इतिहासकार (जैसे सतीश चंद्र) इसे व्यावहारिक व राजनीतिक आवश्यकता मानते हैं।
व्याख्या: विचार यह है कि अकबर की सहिष्णुता केवल व्यक्तिगत भक्ति नहीं, बल्कि बहु–धर्मी साम्राज्य में स्थिरता लाने के लिए आवश्यक राजनीतिक नीति भी थी।
17. क्या अकबर ने सती प्रथा को पूरी तरह समाप्त कर दिया था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, लेकिन उसने इसे हतोत्साहित किया और सहमति–आधारित नियम बनाए।
व्याख्या: अकबर ने आदेश दिया कि सती केवल स्वेच्छा से हो, और कई स्थानों पर स्थानीय अधिकारियों को इसे रोकने की सलाह दी – यह पूर्ण प्रतिबंध नहीं था, सुधार–उन्मुख कदम था।
18. अकबर की धार्मिक नीति में अबुल फ़ज़ल की क्या भूमिका मानी जाती है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: वैचारिक मार्गदर्शक व सिद्धांतों का व्याख्याकार।
व्याख्या: अबुल फ़ज़ल ने अकबर के विचारों को व्यवस्थित रूप देकर “आइन-ए-अकबरी” और “अकबरनामा” में सुलह-ए-कुल, तौहीद-ए-इलाही आदि सिद्धांतों का सैद्धांतिक रूप से वर्णन किया।
19. दीन-ए-इलाही की आलोचना कट्टर मुस्लिम वर्ग ने किस आधार पर की? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: इसे इस्लामी सिद्धांतों से विचलन और “नए मजहब” के रूप में देखा।
व्याख्या: कई उलमा ने आरोप लगाया कि अकबर ने नबी की शिक्षाओं के स्थान पर अपनी मनमानी धर्म–व्यवस्था खड़ी कर दी है; इसलिए दीन-ए-इलाही का कड़ा विरोध हुआ।
20. क्या अकबर की धार्मिक नीति उसके उत्तराधिकारियों ने उसी रूप में जारी रखी? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, उसी गहराई से नहीं; जहाँगीर–शाहजहाँ ने कुछ सहिष्णुता रखी, पर वैचारिक प्रयोग कम रहे।
व्याख्या: अकबर की तरह व्यापक वैचारिक बहस, इबादतखाना–स्तर की प्रयोगशीलता आगे नहीं चली; औरंगज़ेब के समय तो धार्मिक नीति अधिक रूढ़िवादी हो गई।
21. अकबर की धार्मिक नीति से मुगल प्रशासन में किस प्रकार का बदलाव आया? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: प्रशासन अधिक समावेशी व बहु–धर्मी बना; हिन्दू–मुस्लिम दोनों वर्ग उच्च पदों पर पहुँचे।
व्याख्या: राजपूत, कायस्थ, ब्राह्मण, खत्री आदि वर्गों को उच्च पद मिलने लगे, जिससे राज्य की सामाजिक–आर्थिक जड़ें गहरी हुईं और विद्रोह कम हुए।
22. सुलह-ए-कुल सिद्धांत का आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों से क्या संबंध जोड़ा जाता है? (Concept) 👁️उत्तर देखें
उत्तर: धार्मिक सहिष्णुता, समानता और राज्य की धार्मिक–निष्पक्षता जैसे मूल्य।
व्याख्या: यद्यपि अकबर का शासन लोकतांत्रिक नहीं था, फिर भी उसकी सुलह-ए-कुल नीति में धार्मिक–निरपेक्षता जैसी अवधारणाएँ दिखती हैं, जिन्हें आज के “Secular” सिद्धांत से जोड़ा जा सकता है (परीक्षा में विश्लेषणात्मक प्रश्न के रूप में)।
23. दीन-ए-इलाही में शामिल होने के लिए अनुयायियों को किस प्रकार की शपथ लेनी होती थी? (सार रूप में) 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सत्य, दया, राजा–निष्ठा, सांसारिक लालसाओं में संयम आदि की शपथ।
व्याख्या: यह शपथ दर्शाती है कि दीन-ए-इलाही का जोर पूजा–विधान से अधिक नैतिक–आचरण और बादशाह के प्रति निष्ठा पर था।
24. दीन-ए-इलाही का फ़ारसी में प्रयोग होने वाला दूसरा नाम क्या है? (कुछ पुस्तकों में) 👁️उत्तर देखें
उत्तर: तौहीद-ए-इलाही (कुछ स्रोतों में)।
व्याख्या: यद्यपि दोनों शब्द हर जगह समानार्थी नहीं हैं, कई ग्रंथों में दीन-ए-इलाही को तौहीद-ए-इलाही नाम से भी संबोधित किया गया है, जो ईश्वर की एकता पर बल देता है।
25. क्या दीन-ए-इलाही के लिए किसी प्रकार की कर–रियायत या राजनीतिक लाभ निश्चित था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: स्पष्ट रूप से नहीं; यह अधिकतर नैतिक–निष्ठा का प्रतीक था।
व्याख्या: दीन-ए-इलाही को सदस्यता देने का उद्देश्य राजनीतिक लाभ से अधिक अकबर के निकटतम सहयोगियों को वैचारिक–नैतिक रूप से जोड़ना था।
26. सुलह-ए-कुल नीति के अंतर्गत नियुक्तियों में कौन–सा सिद्धांत अपनाया गया? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: योग्यता (Merit) और निष्ठा, न कि केवल मजहब।
व्याख्या: इसी कारण हिन्दू–मुसलमान दोनों वर्गों के योग्य व्यक्तियों को मनसबदारी में उच्च पद मिल सके और प्रशासन अधिक मजबूत बना।
27. जज़िया कर की समाप्ति किस वर्ग के लिए सबसे अधिक राहतकारी साबित हुई? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: गैर–मुस्लिम (विशेषतः हिन्दू) प्रजा के लिए।
व्याख्या: जज़िया केवल गैर–मुस्लिमों पर लगता था; इसके हटने से उन्हें आर्थिक राहत तो मिली ही, साथ ही मानसिक–मानवीय अपमान की भावना भी कम हुई।
28. इबादतखाना में ईसाई पादरियों को बुलाने का अकबर का मुख्य उद्देश्य क्या था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: बाइबिल और ईसाई धर्म–सिद्धांतों को प्रत्यक्ष रूप से समझना।
व्याख्या: अकबर केवल दूसरों की सुन–सुनकर निर्णय नहीं लेना चाहता था; इसलिए उसने ईसाई पादरियों को बुलाकर बाइबिल, ईसा मसीह की शिक्षा आदि पर सीधे प्रश्न–उत्तर किए।
29. अकबर की धार्मिक नीति ने राजपूत–मुगल संबंधों पर क्या प्रभाव डाला? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: आपसी विश्वास बढ़ा, वैवाहिक व राजनीतिक गठजोड़ मजबूत हुए।
व्याख्या: सहिष्णु नीति, विवाह–संबंध और सम्मानजनक व्यवहार के कारण राजपूतों का बड़ा वर्ग मुगल साम्राज्य का स्थायी सहयोगी बन गया, जो साम्राज्य–निर्माण में निर्णायक साबित हुआ।
30. दीन-ए-इलाही को असफल क्यों माना जाता है? (संक्षेप में दो कारण) 👁️उत्तर देखें
उत्तर: (1) सदस्य–संख्या बहुत कम रही, (2) जन–समर्थन व संस्थागत ढांचा नहीं बना।
व्याख्या: न तो जनता को जोड़ा गया, न कोई मजबूत धार्मिक–संस्था बनी; अकबर के बाद यह स्वतः ही समाप्त हो गया, इसलिए इसे राजनीतिक–वैचारिक प्रयोग भर माना जाता है।
31. सुलह-ए-कुल नीति के बिना अकबर के साम्राज्य की स्थिरता के बारे में क्या माना जाता है? (विश्लेषणात्मक) 👁️उत्तर देखें
उत्तर: बहु–धर्मी समाज में स्थिर साम्राज्य बनाना अत्यंत कठिन होता।
व्याख्या: यदि राज्य केवल किसी एक धर्म का पक्ष लेता, तो विद्रोह, अलगाव और असंतोष बढ़ता; सुलह-ए-कुल ने इन तनावों को काफी हद तक कम किया।
32. अकबर की धार्मिक नीति को एक पंक्ति में कैसे संक्षेपित किया जा सकता है? (Exam Booster Line) 👁️उत्तर देखें
उत्तर (सुझावित पंक्ति): “अकबर की धार्मिक नीति ने मुगल साम्राज्य को सैन्य–बल से नहीं, बल्कि सहिष्णुता, समावेशन और सुलह-ए-कुल के माध्यम से जोड़ा।”
व्याख्या: यह पंक्ति Mains/वर्णनात्मक व Objective दोनों के लिए स्मरणीय सार के रूप में उपयोग की जा सकती है।

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