6.1 अकबर की राजपूत नीति – समझौता, विवाह–संबंध, युद्ध, साम्राज्य विस्तार एवं राजपूतों की बदली हुई स्थिति (UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC/Police)
आमेर • बीकानेर • जोधपुर • मेवाड़ – यही चार नाम बार–बार MCQ व मैप–आधारित प्रश्नों में आते हैं।
अकबर 1556 ई. में अपने पिता हुमायूँ की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा। आरंभिक काल में संरक्षक के रूप में बैरम खाँ ने शासन संभाला।
- द्वितीय पानीपत का युद्ध (1556) – हेमू पर विजय, दिल्ली–आगरा पुनः मुगलों के हाथ।
- अकबर ने धीरे–धीरे स्वयं सत्ता संभाली, बैरम खाँ को हटाया।
- अंदरूनी विद्रोहों (उज्बेक, मीरज़ा, अफगान) को कुचलकर केंद्र को मज़बूत किया।
इसी स्थिरता के बाद अकबर ने दीर्घकालीन नीति के रूप में राजपूतों के साथ समझौता व सहयोग का मार्ग चुना।
16वीं शताब्दी के मध्य तक राजपूत राज्यों की स्थिति मिश्रित थी:
- अनेक राजपूत रियासतें – आमेर, मेवाड़, मारवाड़, बीकानेर, बुंदी, जोधपुर, जैसलमेर आदि।
- आपस में प्रतिस्पर्धा व संघर्ष; कोई भी रियासत अकेले मुगल शक्ति के समकक्ष नहीं।
- फिर भी मेवाड़ (राणा सांगा की विरासत) को प्रतिष्ठा व स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था।
- राजपूतों में “स्वराज–सम्मान” की भावना प्रबल, पर सामूहिक राजनीतिक एकता कमज़ोर।
- उत्तर भारत में स्थायी शांति स्थापित करना।
- राजपूतों की सैन्य प्रतिभा को अपने साम्राज्य–निर्माण में साझेदार बनाना।
- धार्मिक–सांप्रदायिक आधार पर टकराव कम कर सुलह–ए–कुल की व्यावहारिक ज़मीन तैयार करना।
- मुगल–राजपूत गठबंधन के माध्यम से अफ़गान व अन्य विद्रोही शक्तियों को कमजोर करना।
अकबर की राजपूत नीति का पहला बड़ा कदम था आमेर के राजा भारमल से संधि।
- राजा भारमल की पुत्री (हिन्दू राजकुमारी) से अकबर का विवाह – राजनीतिक alliance।
- राजा भारमल, भगवानदास, मानसिंह को उच्च मनसब व जागीरें दी गईं।
- आमेर को आंतरिक प्रशासन में काफी स्वतंत्रता, केवल सम्राट के प्रति निष्ठा अपेक्षित।
इसी बिंदु से अन्य राजपूत राज्यों ने भी अकबर के साथ गठबंधन को सम्मानजनक विकल्प के रूप में स्वीकार करना शुरू किया।
आमेर के बाद अन्य अनेक राजपूत रियासतें अकबर से जुड़ीं:
- बीकानेर – राव कन्हा/राय सिंह आदि को मनसब और सेना में उच्च पद।
- जोधपुर (मारवाड़) – मालदेव की मृत्यु के बाद संबंध; जोधपुर के राजपूत धीरे–धीरे मुगल पक्ष में।
- बुंदी, जैसलमेर आदि रियासतों से भी विवाह–संबंध व संधियाँ।
परिणाम: राजपूत–मुगल गठबंधन एक विस्तृत राजनीतिक नेटवर्क में बदल गया, जिसने अफ़गान व स्थानीय विद्रोहों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मेवाड़ (चित्तौड़) को राजपूतों में स्वाभिमान व स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था।
- राणा सांगा के बाद मेवाड़ की बागडोर उदय सिंह और फिर राणा प्रताप के हाथ में।
- अकबर चाहता था कि मेवाड़ भी आमेर की तरह संधि कर ले, पर मेवाड़ ने अधीनता स्वीकार करने से इंकार किया।
- अंततः चित्तौड़ की घेराबंदी (1568) – भीषण युद्ध, जौहर व शाका की परंपरा।
चित्तौड़ की विजय के बावजूद मेवाड़ का पूर्ण समर्पण नहीं हो सका – राणा प्रताप आगे भी संघर्ष जारी रखते हैं।
पक्ष: राणा प्रताप (मेवाड़) बनाम अकबर की ओर से मान सिंह (राजपूत सेनापति)
- स्थान: हल्दीघाटी (अरावली की घाटी, आज का राजस्थान)।
- मुगल पक्ष – बेहतर संगठित सेना, तोपख़ाना और बड़ी संख्या में राजपूत भी अकबर की ओर।
- मेवाड़ पक्ष – कम संख्या, पर अत्यंत साहसी व गुरिल्ला–अनुभवी सैनिक।
परिणाम (इतिहासकारों की सामूहिक राय): सैन्य दृष्टि से लड़ाई में राणा प्रताप पराजित हुए, उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा, पर वे जीवित रहे और आगे चलकर गुरिल्ला संघर्ष जारी रखा।
हल्दीघाटी के बाद राणा प्रताप ने पहाड़ी इलाकों में गुरिल्ला युद्ध की नीति अपनाई।
- मेवाड़ के कठिन पर्वतीय क्षेत्र – मुगल सेना के लिए चुनौतीपूर्ण।
- राणा प्रताप ने छोटे–छोटे हमले, मार्ग अवरोध, दुर्गों से छिटपुट आक्रमण जारी रखे।
- चित्तौड़ की जगह आगे चलकर कुम्भलगढ़ व अन्य दुर्गों का महत्व बढ़ा।
राजनीति की दृष्टि से मेवाड़ कुछ समय तक स्वतंत्र प्रतीक बना रहा, जो आगामी राजपूत–मुगल संबंधों की मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि बनाता है।
- राजपूतों को उच्च मनसब, जागीरें, दरबारी सम्मान, सैन्य नेतृत्व।
- आंतरिक स्व–शासन की काफी स्वतंत्रता – अपने क्षेत्रों में पारंपरिक कानून–व्यवस्था।
- धर्म–सांस्कृतिक परंपराओं में हस्तक्षेप न्यूनतम, विवाह–संबंध से विश्वास निर्माण।
- राजपूत सेनापति – गुजरात, बंगाल, काबुल, दक्कन आदि अभियानों में अग्रणी।
इस मॉडल ने अकबर के साम्राज्य को भारतीय–स्थानीय आधार दिया, केवल “विदेशी तुर्की सत्ता” की छवि को बदल दिया।
- सल्तनत काल में – प्रायः “शत्रु/विद्रोही शक्ति” के रूप में चित्रित।
- अकबर के काल में – साम्राज्य–साझेदार, सेनापति, जागीरदार के रूप में प्रतिष्ठा।
- कई राजपूत वंश – आर्थिक, सैन्य व सामाजिक रूप से और अधिक मज़बूत हुए।
- मुगल प्रशासन में राजपूतों की उच्च भागीदारी – मान सिंह, तोदरमल (कायस्थ), भगवानदास आदि।
- सभी राजपूतों ने स्वेच्छा से सहयोग नहीं किया – मेवाड़/मारवाड़ में लंबे समय तक विरोध।
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार इससे राजपूतों की “स्वतंत्र राज्य–परंपरा” कमजोर हुई।
- परन्तु समकालीन राजनीतिक परिस्थितियों में यह नीति यथार्थवादी व व्यावहारिक मानी जाती है।
- मध्यकाल की अन्य नीतियों की तुलना में यह नीति ज्यादा समावेशी, कम दमनकारी थी।
निष्कर्ष: अकबर की राजपूत नीति को उसकी Political Genius (राजनीतिक प्रतिभा) का उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है।
परीक्षा से पहले 5–7 मिनट में पूरा टॉपिक revise करने के लिए यह सेक्शन तैयार किया गया है। 2–3 बार दोहराने से अकबर–राजपूत नीति से जुड़े लगभग सभी Objective/One Liner प्रश्न कवर हो जाते हैं।
- अकबर का शासन: 1556–1605 ई.
- प्रारंभिक संरक्षक: बैरम खाँ।
- द्वितीय पानीपत (1556) – हेमू पर विजय।
- राजपूत नीति – मुख्य रूप से 1560 के बाद व्यवस्थित रूप में।
- उत्तर भारत में स्थायी शांति।
- राजपूतों की सैन्य क्षमता को साथ लेना।
- धार्मिक–जातीय संघर्ष कम करके सुलह–ए–कुल की जमीन बनाना।
- अफ़गान/विद्रोही शक्तियों को कमजोर करना।
- राजा भारमल – पुत्री का विवाह अकबर से।
- भगवानदास, मान सिंह – उच्च मनसबदार।
- आमेर को आंतरिक प्रशासनिक स्वतंत्रता।
- यह संधि आगे की सभी राजपूत नीतियों का मॉडल बनी।
- बीकानेर – सहयोगी, मुगल दरबार में महत्त्वपूर्ण स्थान।
- जोधपुर (मारवाड़) – बाद के दौर में गठबंधन।
- जैसलमेर, बुंदी – विवाह/संधि के माध्यम से जुड़े।
- चित्तौड़ पर चढ़ाई: 1568 ई.
- हल्दीघाटी का युद्ध: 1576 ई.
- पक्ष – राणा प्रताप बनाम अकबर की ओर से मान सिंह।
- परिणाम – मुगल सेना की रणनीतिक विजय, पर राणा प्रताप जीवित रहे व संघर्ष जारी।
- उच्च मनसब + जागीर + दरबारी सम्मान।
- धार्मिक–सांस्कृतिक स्वतंत्रता।
- राजपूत सेनापति – साम्राज्य–निर्माण में सक्रिय।
- शत्रु/विद्रोही से – सहयोगी/साझेदार।
- मुगल प्रशासन में उच्च भागीदारी।
- कई राजपूत घराने पहले से अधिक आर्थिक व राजनीतिक रूप से मजबूत।
- यथार्थवादी राजनीति, केवल दमन नहीं।
- सम्मान + सुरक्षा + भागीदारी = स्थायी निष्ठा।
- भारत की विविधता के अनुरूप नीति (Inclusive)।
- हर रियासत के लिए: शासक + संबंध (संधि/युद्ध) + वर्ष याद करें।
- हल्दीघाटी: वर्ष, पक्ष, परिणाम – तीन बिंदु में।
- “आ–बी–जो–मे” ट्रिक को बार–बार revise करें।
1. अकबर के शासनकाल की कुल अवधि कितनी मानी जाती है? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: अकबर ने हुमायूँ की मृत्यु के बाद 1556 में गद्दी संभाली और 1605 तक शासन किया। यह लंबा स्थिर शासन ही उसकी नीतियों (राजपूत नीति, धार्मिक नीति, प्रशासनिक सुधार) को सफल बनाता है।
2. अकबर के प्रारंभिक शासन में संरक्षक (Regent) कौन था? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: अकबर अल्पायु था, इसलिए प्रारंभिक वर्षों में शासन की बागडोर बैरम खाँ के हाथ में रही। बाद में अकबर ने स्वयं शासन संभालकर स्वतंत्र नीति–निर्माण शुरू किया।
3. अकबर की राजपूत नीति का पहला और सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव किस राजपूत राज्य से जुड़ा है? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राजा भारमल के साथ संधि और विवाह–संबंध द्वारा आमेर को अकबर का पहला स्थायी सहयोगी बनाया गया, जिसे आगे की राजपूत नीति का मॉडल माना जाता है।
4. राजा भारमल किस राज्य से संबंधित राजपूत शासक थे? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: भारमल कछवाहा राजपूत शासक थे। उनकी पुत्री का विवाह अकबर से हुआ, जिससे मुगल–राजपूत गठबंधन की मजबूत नींव पड़ी।
5. अकबर की ओर से मेवाड़ के विरुद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में सेना का नेतृत्व किसने किया था? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: यह तथ्य परीक्षाओं में इसलिए महत्वपूर्ण है कि अकबर ने मेवाड़ के विरुद्ध भी एक राजपूत ही सेनापति के रूप में नियुक्त किया, जिससे उसकी “राजपूत–मुगल साझेदारी” का स्वरूप स्पष्ट होता है।
6. हल्दीघाटी का युद्ध कब लड़ा गया था? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: 1576 ई. – हल्दीघाटी, 1568 – चित्तौड़ पर चढ़ाई; यह क्रम (चित्तौड़ → हल्दीघाटी) अधिकांश Chronology–आधारित प्रश्नों में पूछा जाता है।
7. हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ की ओर से नेतृत्व किसने किया? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राणा प्रताप मेवाड़ की स्वतंत्रता और स्वाभिमान के प्रतीक माने जाते हैं। वे हल्दीघाटी के बाद भी गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से संघर्ष जारी रखते हैं।
8. किस राजपूत रियासत ने अकबर की अधीनता सबसे लंबे समय तक स्वीकार नहीं की? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: आमेर, बीकानेर, जोधपुर आदि ने अपेक्षाकृत जल्दी संधि कर ली, पर मेवाड़ (विशेषकर राणा प्रताप के समय) ने अधीनता स्वीकार करने से इंकार किया, इसी कारण यह अकबर की राजपूत नीति की सबसे बड़ी चुनौती बना रहा।
9. अकबर ने राजपूतों के साथ संबंध मजबूत करने के लिए किस प्रकार के संबंधों का विशेष उपयोग किया? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राजपूत राजकुमारियों से विवाह, राजाओं को मनसब व जागीरें देना और दरबार में सम्मानित स्थान देना – यही अकबर की राजपूत नीति के मुख्य उपकरण थे।
10. किस राजपूत सेनापति को अकबर ने “अमर जनरल” की तरह अनेक अभियानों में प्रयुक्त किया, जैसे बंगाल, अफगान–विद्रोह आदि? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: मान सिंह अकबर के सबसे विश्वसनीय राजपूत सेनापति थे, जिन्होंने उत्तर–पूर्व, अफगान क्षेत्र और अनेक विद्रोहों को कुचलने में मुख्य भूमिका निभाई।
11. अकबर की राजपूत नीति के संदर्भ में “आमेर मॉडल” से क्या अभिप्राय है? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: आमेर के साथ जो व्यवस्था बनी – उसमें राजपूत राजा को सम्मान, मनसब, धार्मिक स्वतंत्रता मिली और बदले में केंद्रीय निष्ठा – यही मॉडल बाद में अन्य रियासतों पर भी लागू हुआ।
12. किस युद्ध के बाद मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ की जगह अन्य दुर्गों (जैसे कुम्भलगढ़) का महत्त्व बढ़ा? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: चित्तौड़ के पतन के बाद मेवाड़ का शक्ति–केंद्र पहाड़ी दुर्गों की ओर शिफ्ट हो गया, जहाँ से राणा प्रताप ने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा।
13. अकबर की राजपूत नीति का एक प्रमुख परिणाम क्या था? (राजनीतिक दृष्टि से) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राजपूतों को साथ लेकर अकबर ने उन क्षेत्रों में भी स्थिर शासन स्थापित किया जहाँ सल्तनत शासन बार–बार विद्रोहों से जूझता रहा था।
14. सल्तनत काल की तुलना में अकबर की राजपूत नीति की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: सल्तनत काल में राजपूत प्रायः शत्रु के रूप में देखे गए, जबकि अकबर ने सम्मान, विवाह–संबंध और मनसब देकर उन्हें साम्राज्य–निर्माण में भागीदारी दी।
15. अकबर की राजपूत नीति का संबंध उसकी किस व्यापक नीति से भी जोड़ा जाता है? (Religion/Administration) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राजपूतों के साथ धार्मिक–सांस्कृतिक सहिष्णुता, मंदिरों व सामाजिक परंपराओं को सम्मान – यह सब आगे चलकर सुलह–ए–कुल नीति का आधार बनता है।
16. “आ–बी–जो–मे” ट्रिक में “बी” किस राजपूत राज्य के लिए है और उसका अकबर से संबंध क्या था? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: बीकानेर के राजपूतों ने मुगल नीति के साथ खुद को जल्दी जोड़ा, जिससे पश्चिमी राजस्थान में अकबर की स्थिति मजबूत हुई।
17. अकबर की राजपूत नीति का राजपूत समाज पर एक सकारात्मक प्रभाव क्या माना जाता है? (Social/Economic) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: मनसब, जागीर, दरबारी पद, दूर–दूर के अभियानों में भागीदारी – इन सबने राजपूत अभिजात वर्ग की प्रतिष्ठा व संसाधनों को बढ़ाया।
18. किस युद्ध के बाद यह स्पष्ट हो गया कि अकबर की राजपूत नीति केवल “शांतिपूर्ण संधि” तक सीमित नहीं, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर सैन्य बल का प्रयोग भी करेगी? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: जहाँ संधि संभव थी वहाँ संधि, पर मेवाड़ जैसे मामलों में अकबर ने सैन्य बल का खुलकर उपयोग किया – यह राजपूत नीति का “संतुलित” स्वरूप दिखाता है।
19. अकबर की राजपूत नीति के आलोचकों के अनुसार इसका एक नकारात्मक पहलू क्या था? (राजपूत perspective) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: कुछ इतिहास–लेखकों का तर्क है कि साझेदारी के बदले राजपूतों ने अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता को सीमित कर दिया, यद्यपि उन्हें बदले में काफी लाभ भी मिला।
20. UPSC/PCS जैसे परीक्षाओं में अकबर की राजपूत नीति से जुड़े प्रश्न किस प्रकार से अधिक पूछे जाते हैं? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: संघ लोक सेवा आयोग व राज्य PCS में केवल तथ्य नहीं, बल्कि नीति के उद्देश्य, परिणाम और तुलना–आधारित प्रश्न अधिक पूछे जाते हैं।
21. “अकबर की सफलता का आधा राज उसकी राजपूत नीति में निहित था” – यह कथन किस प्रकार के प्रश्नों के लिए उपयोगी है? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: यह लाइन निष्कर्ष या परिचय में लिखकर आप अकबर की राजपूत नीति की महत्ता को बहुत प्रभावी ढंग से दिखा सकते हैं।
22. किस राजपूत राज्य से राजपूत सेनापति “मान सिंह” संबंधित थे, जो अकबर की सेना के प्रमुख सेनानायकों में से एक थे? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: मान सिंह कछवाहा राजपूत थे, जिन्हें अकबर ने उच्च मनसब व व्यापक सैन्य–राजनीतिक अधिकार दिए।
23. अकबर की राजपूत नीति ने अफ़गान विद्रोहों पर किस प्रकार प्रभाव डाला? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राजपूतों के सहयोग से अकबर के पास मजबूत, अनुशासित और स्थानीय स्थिति से परिचित सेना रही, जिससे अफ़गान विद्रोहों को दबाना सरल हो गया।
24. किस राजपूत रियासत के साथ अकबर की नीति को “सम्मान + स्वायत्तता + केंद्रीय निष्ठा” के संतुलन का आदर्श उदाहरण माना जाता है? (Example based question) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: आमेर के उदाहरण में – राजा भारमल को सम्मान, जागीर, मनसब, विवाह–संबंध; बदले में वह सम्राट के प्रति वफादार और सैन्य सहयोगी बना – यह संतुलन ही अकबर की राजपूत नीति का आदर्श रूप है।
25. क्या अकबर ने राजपूतों को केवल सैन्य क्षेत्र तक सीमित रखा या प्रशासन में भी शामिल किया? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: कई राजपूत मनसबदार प्रांतों के सूबेदार, किलेदार और उच्च प्रशासनिक पदों पर भी रहे; इससे उनकी भागीदारी “पूर्ण साझेदारी” के रूप में दिखती है।
26. राजपूतों के प्रति अकबर की नीति ने उसकी धार्मिक छवि पर क्या प्रभाव डाला? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: मंदिरों व परंपराओं के प्रति अपेक्षाकृत उदार रवैया, जजिया व तीर्थ–कर हटाने जैसे कदम – सब मिलकर उसकी धार्मिक छवि को सकारात्मक बनाते हैं।
27. मेवाड़ के संदर्भ में अकबर की नीति “संधि + बल प्रयोग” दोनों का मिश्रण क्यों कही जाती है? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: मेवाड़ से बार–बार वार्ता व दूतावास के प्रयास हुए; अधीनता न मिलने पर अकबर ने सैन्य बल का उपयोग किया – इससे उसकी नीति की यथार्थ–आधारित प्रकृति स्पष्ट होती है।
28. अकबर की राजपूत नीति के कारण मुगल साम्राज्य की सीमा–वृद्धि पर क्या प्रभाव पड़ा? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राजपूत सेनापतियों की मदद से अकबर बंगाल, गुजरात, अफगान क्षेत्र, दक्कन आदि में सफल अभियान चला सका; इससे साम्राज्य की भौगोलिक सीमा बहुत बढ़ी।
29. कई इतिहासकार अकबर की राजपूत नीति को “भारतीयकरण (Indianisation) of Mughal Empire” क्यों कहते हैं? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: राजपूत अभिजात वर्ग की सक्रिय भागीदारी ने मुगल साम्राज्य को भारतीय सामाजिक–राजनीतिक संरचना में गहराई से जड़ जमाने में मदद की।
30. अकबर की राजपूत नीति का दीर्घकालिक प्रभाव औरंगज़ेब के काल तक किस रूप में दिखाई देता है? (संक्षेप में) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: अकबर की नीति ने भरोसा बनाया, पर बाद के दौर (विशेषकर औरंगज़ेब) में कुछ नीतियों के कारण यह गठबंधन कमजोर होना शुरू हुआ – यह भी आधुनिक इतिहास लेखन का महत्वपूर्ण बिंदु है।
31. Objective Exams (UPSSSC/Police आदि) में अकबर की राजपूत नीति से सबसे सामान्य प्रश्न–ढांचा क्या है? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: इसलिए विद्यार्थियों को छोटे table बना कर – आमेर, बीकानेर, जोधपुर, मेवाड़ आदि के साथ संबंध अलग–अलग याद रखने चाहिए।
32. अकबर की राजपूत नीति के अध्ययन के लिए कौन–से तीन heading सबसे उपयोगी माने जाएँ? (Answer writing टिप्स) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: Mains या वर्णनात्मक उत्तर लिखते समय इन तीन sub–heading से उत्तर संतुलित और संरचित बनता है।
33. अकबर की राजपूत नीति को “Win–Win Policy” क्यों कहा जा सकता है? (Objective की व्याख्या रूप में) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: दोनों पक्षों को लाभ – मुगलों को स्थिर सहयोगी, राजपूतों को सुरक्षा, सम्मान व संसाधन – यही Win–Win स्थिति है।
34. किस युद्ध के बाद इतिहासकार मानते हैं कि अकबर की राजपूत नीति का “शक्ति प्रदर्शन” पक्ष सबसे स्पष्ट दिखाई देता है – हल्दीघाटी या चित्तौड़? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: चित्तौड़ किले पर भारी सैन्य बल, तोपख़ाना और लगातार घेराबंदी – यह दिखाता है कि अकबर केवल संधि नहीं, बल्कि शक्ति–प्रदर्शन के लिए भी तैयार था।
35. “अकबर की राजपूत नीति ने मध्यकालीन भारतीय राजनीति को नई दिशा दी” – यह कथन किस संदर्भ में सही है? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: इससे पहले की राजनीति अधिकतर युद्ध–दमन–विद्रोह के चक्र में घूमती रही; अकबर ने सहयोग व समावेश से नया मॉडल प्रस्तुत किया।
36. Objective तैयारी के लिए विद्यार्थियों को अकबर की राजपूत नीति में न्यूनतम कौन–से चार नाम याद रखने चाहिए? (एक तरह का Ready–List) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: इन चार नामों से जुड़ी घटनाएँ – आमेर संधि, हल्दीघाटी, पूर्व–पृष्ठभूमि – अधिकांश परीक्षा प्रश्नों के लिए पर्याप्त तथ्य देते हैं।
37. हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ की सेना की एक प्रमुख विशेषता क्या थी, जो सैद्धांतिक प्रश्नों में पूछी जाती है? (War Strategy/Style) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: मेवाड़ की सेना संख्या में कम थी पर भूगोल से परिचित, जिसने बाद के दौर में भी मुगलों के विरुद्ध संघर्ष को संभव बनाया।
38. किस प्रकार के प्रश्नों के लिए विद्यार्थियों को “आ–बी–जो–मे” जैसी ट्रिक विशेष रूप से मददगार होगी? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: जब विकल्पों में विभिन्न राजपूत रियासतों और उनके संबंध/शासकों को मिलान करना हो, तब ऐसी ट्रिक तेज़ recall में बहुत मदद करती है।
39. यूपी–पुलिस/UPSSSC जैसी परीक्षाओं के लिए अकबर की राजपूत नीति से कम से कम कितने तथ्य बार–बार revise करने चाहिए? 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: इतने तथ्य होने पर कोई भी 1–2 MCQs आसानी से सही किए जा सकते हैं; इसी पेज पर दिए Quick Revision व PYQ सेक्शन से यह संख्या कवर हो जाती है।
40. “अकबर की राजपूत नीति ने उसके साम्राज्य को विदेशी न लगकर भारतीय बना दिया” – यह कथन किस प्रकार की समझ को व्यक्त करता है? (Conceptual Question) 👁️उत्तर देखें
व्याख्या: जब राजपूत, हिंदू, जैन आदि समुदाय सत्ता–संरचना का हिस्सा बन गए, तब मुगल शासन केवल बाहरी आक्रमणकारी न रहकर भारतीय समाज–राजनीति का अंग बन गया – यही Indianisation है।
