ऋग्वैदिक काल : प्राचीन भारत (Ancient History: Rigvedic period) full Notes for competitive Exams

ऋग्वैदिक काल : प्राचीन भारत (Ancient History: Rigvedic period) full Notes for competitive Exams

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ऋग्वैदिक काल (Rigvedic Period) – सम्पूर्ण नोट्स
UPSC | State PSC | Teaching | One-Day Exams
📘 भाग 1 – ऋग्वैदिक काल के विस्तृत नोट्स
आधार: ऋग्वेद की सूक्तियाँ, वैदिक परम्परा, आधुनिक इतिहासकारों के शोध

भारतीय इतिहास का प्रारम्भिक साहित्यिक युग वैदिक युग कहलाता है। वैदिक युग को दो भागों में बाँटा जाता है – ऋग्वैदिक (प्रारम्भिक वैदिक) काल तथा उत्तर वैदिक काल। ऋग्वैदिक काल लगभग 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. तक का समय माना जाता है, जब मुख्यतः ऋग्वेद की रचना हुई।

परिचय एवं प्रमुख स्रोत
  • ऋग्वैदिक काल = प्रारम्भिक आर्य समाज का वास्तविक चित्र; सबसे प्राचीन वैदिक संहिता ऋग्वेद मुख्य स्रोत।
  • ऋग्वेद में कुल लगभग 1028 सूक्त, 10 मंडल; अधिकांश सूक्त देवताओं की स्तुति में हैं।
  • ऋग्वेद के अतिरिक्त – अथर्ववेद के कुछ प्रारम्भिक मंत्र, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद और बाद के स्मृति-साहित्य से भी संदर्भ मिलते हैं।
  • पुरातात्त्विक दृष्टि से – उत्तर-पश्चिम भारत एवं पंजाब की नदियों के किनारे मिले अवशेष इस काल के भौतिक जीवन पर रोशनी डालते हैं।
याद रखें: UPSC/PSC में अक्सर पूछा जाता है कि – सबसे प्राचीन वैदिक ग्रंथ कौन-सा है?ऋग्वेद और यह मुख्य रूप से देवताओं के स्तुति-सूक्तों का संग्रह है।
भौगोलिक विस्तार (Sapta-Sindhu क्षेत्र)
  • ऋग्वैदिक आर्य मुख्य रूप से सप्त-सिंधु क्षेत्र में बसे थे – अर्थात सात नदियों का क्षेत्र।
  • इन नदियों में प्रमुख – सिन्धु (इंडस), सरस्वती, विपाश (ब्यास), शतद्रु (सतलज), पारुष्णी (रावी), वितस्ता (झेलम), असिक्नी (चिनाब)
  • इस क्षेत्र के लिए “ऋग्वैदिक आर्यों का गृह क्षेत्र” या “पंचनद प्रदेश + सरस्वती क्षेत्र” भी कहा जाता है।
  • पूर्व की ओर विस्तार – गंगा-घाटी की ओर धीरे-धीरे हुआ, जो मुख्य रूप से उत्तर वैदिक काल की विशेषता है।
राजनीतिक व्यवस्था – जन, विश, ग्राम, राजा

ऋग्वैदिक समाज की राजनीतिक इकाइयाँ क्रमशः कुल → ग्राम → विश → जन थीं।

इकाई अर्थ / विवरण
कुल संयुक्त परिवार; मुखिया को कुलपति कहा गया।
ग्राम कई कुल मिलकर ग्राम; मुखिया – ग्रामणी
विश कई ग्राम मिलकर विश; इसे कभी-कभी क्लान या गोत्र समूह की तरह भी समझा जाता है।
जन कई विश मिलकर जन (Tribe); जैसे – भरत, पुरु, यदु, तुर्वस, अन, द्रुह्य इत्यादि।
राजा (Rajan) एवं अन्य पद
  • जन का प्रधान राजन (राजा) कहलाता था – यह अभी पूर्णतः निरंकुश सम्राट नहीं था, बल्कि जन-प्रधान प्रकृति का मुखिया था।
  • राजा का मुख्य कार्य – जन की रक्षा, युद्ध संचालन, यज्ञों में भाग, न्याय
  • राजसूय, वाजपेय जैसे राजसूयक यज्ञों की परम्परा बाद के उत्तर वैदिक काल में अधिक विकसित हुई।
  • राजा की सहायता के लिए –
  • पुरोहित – धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ, मन्त्र-उच्चारण; कभी-कभी सबसे अधिक प्रभावशाली पद।
  • सेनानी – सेना का प्रमुख, युद्ध संचालन।
  • ग्रामणी – ग्रामों का मुखिया, प्रशासन में राजा की सहायता।
  • कुछ सूक्तों में सभापति/समितिपति जैसे पदों का उल्लेख मिलता है।
सभा, समिति एवं विदथा

ऋग्वेद में जनसत्ता / लोकभावना को दर्शाने वाली प्रमुख संस्थाएँ –

  • सभा – अपेक्षाकृत छोटा एवं विशिष्ट वर्ग, संभवतः कुलीनों की सभा; न्याय एवं महत्वपूर्ण मामलों की चर्चा।
  • समिति – अधिक लोकात्मक / जनसाधारण की सभा; राजा के चयन, नीति-निर्माण में भूमिका।
  • विदथा – यज्ञ, युद्ध, उत्सव आदि के लिए सामूहिक मंच; कुछ विद्वान इसे बहु-उद्देश्यीय संस्था मानते हैं।
Prelims Point: ऋग्वेद में वर्णित सभा और समिति – दोनों को कभी-कभी लोकतांत्रिक तत्व के रूप में दिखाया जाता है। यह प्रश्न बार-बार UPSC/PSC में पूछा गया है।
कर एवं दण्ड-व्यवस्था
  • राजा का निर्वाह मुख्यतः जन की स्वैच्छिक भेंट (बली) पर आधारित था, अभी संगठित भूमि-राजस्व की व्यवस्था नहीं थी।
  • युद्ध में जीती गई लूट-सामग्री, पशु एवं अन्य सम्पत्ति को “सम” में बांटा जाता था – राजा, पुरोहित, सेनानी और योद्धाओं में।
  • अपराधों के लिए आर्थिक दण्ड का उल्लेख है; परन्तु विस्तृत विधि-व्यवस्था उत्तर वैदिक काल की विशेषता है।
सामाजिक व्यवस्था – परिवार, स्त्रियों की स्थिति, वर्ण-प्रथा
परिवार एवं विवाह
  • समाज की मूल इकाई कुल (संयुक्त परिवार) था, जिसके मुखिया कुलपति थे।
  • समाज पितृसत्तात्मक था; वंश पिता के नाम से चलता था।
  • गोत्र एवं प्रवर की अवधारणा प्रारम्भिक रूप में मिलती है।
  • विवाह – एक पत्नी प्रथा (एकपत्नीवाद) प्रमुख; बहुपत्नीवाद दुर्लभ पर पूर्णतः अनुपस्थित नहीं।
  • स्वयंवर जैसी परम्पराएँ के संकेत मिलते हैं, जहाँ कन्या वर का चयन कर सकती थी।
  • सती-प्रथा, पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह जैसे कुप्रथाएँ इस काल में नहीं मिलतीं।
स्त्रियों की स्थिति
  • ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति तुलनात्मक रूप से उच्च मानी जाती है।
  • स्त्रियाँ यज्ञ में भाग ले सकती थीं, अनेक स्त्रियाँ ऋषिकाएँ (जैसे – घोषा, लोपामुद्रा, अपाला) के रूप में मन्त्र-रचयिता थीं।
  • शिक्षा में स्त्रियों की भागीदारी; “उपनयन-संस्कार” का अधिकार कई स्त्रियों को भी था।
  • कुछ स्त्रियाँ सभा एवं समिति में भी भाग लेती थीं – यह बात इस काल की प्रगतिशील सामाजिक संरचना को दर्शाती है।
वर्ण-व्यवस्था (प्रारम्भिक रूप)
  • ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में चार वर्णों का उल्लेख – ब्राह्मण, क्षत्रिय (राजन्य), वैश्य, शूद्र
  • परन्तु इस काल में वर्ण-व्यवस्था अभी कठोर एवं जन्म-आधारित नहीं थी; यह मुख्यतः कर्म-आधारित सामाजिक वर्गीकरण के रूप में दिखती है।
  • वर्ण के आधार पर व्यवसाय में कुछ विभाजन अवश्य था, परन्तु वर्णों के बीच आवागमन की सम्भावना बनी रही।
  • शूद्रों की स्थिति बाद के उत्तर वैदिक काल की अपेक्षा इतनी निम्न नहीं दिखती, हालांकि उनके अधिकार सीमित थे।
आर्थिक जीवन – गो-आधारित अर्थव्यवस्था
पशुपालन
  • ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था की मेरुदण्ड पशुपालन था – विशेषकर गाय
  • गाय को सम्पत्ति का मुख्य माप माना गया – ऋग्वेद में गो, गोत्र, गोमेध, गोप आदि शब्द बार-बार आए हैं।
  • अन्य पशु – घोड़ा (अश्व), भेड़, बकरी, ऊँट, कुत्ता इत्यादि।
  • युद्ध को भी कभी-कभी “गो-पृथक्-युद्ध” (गायों के लिए संघर्ष) कहा गया है।
कृषि एवं अन्य व्यवसाय
  • हालांकि पशुपालन प्रधान था, परन्तु कृषि का महत्त्व भी धीरे-धीरे बढ़ रहा था – धान्य, जौ आदि का उल्लेख मिलता है।
  • कृषि-उपकरण अपेक्षाकृत साधारण – लकड़ी का हल, बैलों द्वारा हल चलाना, वर्षा पर आधारित खेती।
  • शिल्पकार – तक्षक (बढ़ई), कर्मार (कुम्हार/लोहार), सुवर्णकार (स्वर्णकारी), चरमकार आदि।
  • वाणिज्य – स्थानीय एवं सीमित; विनिमय की प्रमुख इकाई भी गाय ही रही, सिक्के अभी व्यापक रूप से प्रचलित नहीं।
Exam Point: ऋग्वैदिक काल की अर्थव्यवस्था को अक्सर “गो-आधारित अर्थव्यवस्था” कहा जाता है – यह UPSC/PSC Prelims में सीधे पूछा जा चुका है।
धर्म एवं देवता – प्रकृति-पूजा

ऋग्वैदिक आर्यों की धार्मिक मान्यताएँ सरल, यज्ञ-प्रधान और प्रकृति-पूजा पर आधारित थीं।

मुख्य देवता
इन्द्र – युद्ध एवं वज्र के देवता अग्नि – यज्ञ-अग्नि, मध्यस्थ देवता वरुण – ऋत (नैतिक व्यवस्था) के देवता सोम – सोम-रस के देवता रुद्र, मरुत – तूफान/वायु देवता सूर्य, मित्र, पूषा, उषा (भोर)
  • इन्द्र – सबसे अधिक सूक्त इन्द्र के नाम; इन्हें “पुरन्दर” (किलों को नष्ट करने वाले) कहा गया, जिन्होंने वृत्र नामक असुर को पराजित किया।
  • अग्नि – देवताओं और मनुष्यों के बीच संदेशवाहक; यज्ञ में सबसे महत्वपूर्ण।
  • वरुणऋत (ऋतु/कॉस्मिक ऑर्डर) के रक्षक; पाप और दण्ड के देवता।
  • सोम – सोम-रस के रूप में यज्ञ-पेय; स्पष्टीकरण अभी भी विवादित, पर धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण।
धार्मिक विशेषताएँ
  • पूजा का मुख्य साधन – यज्ञ, मन्त्र-उच्चारण, स्तुति-सूक्त, हवन।
  • मूर्ति-पूजा, मंदिर-निर्माण का उल्लेख इस काल में नहीं मिलता।
  • देवताओं की अवधारणा – मानवीकरण (Anthropomorphic), परन्तु अभी पूर्ण बहुदेववाद; एकेश्वरवाद के प्रारम्भिक बीज भी कुछ सूक्तों में दिखते हैं।
  • पुनर्जन्म, कर्म-सिद्धान्त जैसे विचार प्रारम्भिक रूप में; पूर्ण विकसित दर्शन बाद की वैदिक एवं उपनिषद परम्परा में मिलता है।
शिक्षा, भाषा एवं संस्कृति
  • शिक्षा मुख्यतः गुरुकुल-व्यवस्था में मौखिक परम्परा (श्रुति) के रूप में; लिखित ग्रन्थों का उल्लेख नहीं।
  • भाषा – वैदिक संस्कृत, जो शास्त्रीय संस्कृत से कुछ भिन्न है।
  • संगीत, नृत्य, वाद्ययंत्र (वीणा, डफ इत्यादि) का उल्लेख; युद्ध-गीत, स्तुति-गीत, लौरियाँ।
  • युद्ध में रथ, अश्व, तीर-धनुष, भाले आदि का प्रयोग; रथ की विशेष महत्ता।
निष्कर्ष: ऋग्वैदिक काल हमें एक सरल, गो-आधारित, यज्ञ-प्रधान, अपेक्षाकृत समानतावादी आर्य समाज की झलक देता है, जहाँ स्त्रियों की स्थिति अच्छी, वर्ण-व्यवस्था लचीली और राजनीति में सभा-समिति जैसे लोकतांत्रिक तत्व दिखते हैं। उत्तर वैदिक काल में यही समाज अधिक जटिल, वर्गीकृत और अनुष्ठान-प्रधान हो जाता है – जो परीक्षा में तुलनात्मक अध्ययन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
भाग 2 – ऋग्वैदिक काल क्विक रिविजन नोट्स
Last Minute Revision – Prelims + Mains दोनों के लिए उपयोगी
समय व क्षेत्र Basics
  • समय: लगभग 1500–1000 ई.पू.
  • क्षेत्र: सप्त-सिंधु (Punjab + NW India)
  • मुख्य नदी: सिन्धु, सरस्वती, रावी, सतलज आदि
मुख्य स्रोत
  • सबसे प्राचीन ग्रन्थ – ऋग्वेद
  • 10 मंडल, ~1028 सूक्त
  • देवताओं की स्तुति-सूक्तों का संग्रह
राजनीतिक इकाइयाँ IMPORTANT
  • क्रम: कुल → ग्राम → विश → जन
  • ग्राम का मुखिया – ग्रामणी
  • जन का मुखिया – राजन
लोकतांत्रिक संस्थाएँ
  • सभा – कुलीन सभा, न्याय/महत्वपूर्ण निर्णय
  • समिति – जनसभा, राजा का चयन
  • विदथा – यज्ञ, युद्ध, उत्सव का मंच
आर्थिक जीवन
  • मुख्य आधार – पशुपालन (विशेषकर गौ)
  • कृषि – जौ, गेहूँ; वर्षा-आश्रित
  • व्यापार – सीमित, विनिमय-आधारित
समाज व परिवार
  • संयुक्त परिवार – कुल, कुलपति
  • पितृसत्तात्मक व्यवस्था
  • गोत्र, कुटुम्ब, वंश की अवधारणा
स्त्रियों की स्थिति Exam Favourite
  • ऋषिकाएँ – घोषा, लोपामुद्रा, अपाला
  • यज्ञ व शिक्षा में भागीदारी
  • सती-प्रथा, पर्दा, बाल-विवाह नहीं
वर्ण-प्रथा
  • पुरुष-सूक्त में 4 वर्णों का उल्लेख
  • अब भी कर्म-आधारित, लचीली
  • अभी कठोर जाति-प्रथा नहीं
मुख्य देवता
  • इन्द्र – युद्ध, वज्र; सर्वाधिक सूक्त
  • अग्नि – यज्ञ-अग्नि, देव-दूत
  • वरुण – ऋत के देवता
  • सोम – सोम-रस के देवता
धर्म की विशेषताएँ
  • प्रकृति-पूजा, यज्ञ-प्रधान
  • मूर्ति-पूजा, मंदिर नहीं
  • कर्म व पुनर्जन्म की प्रारम्भिक धारणा
युद्ध व सेना
  • मुख्य – रथ, अश्व, तीर-धनुष
  • सेनापति – सेनानी
  • युद्ध का उद्देश्य – गो-वध, चरागाह, प्रतिष्ठा
ऋग्वैदिक बनाम उत्तर वैदिक (सुपर शॉर्ट)
  • ऋग्वैदिक – गो-आधारित, सरल, कम अनुष्ठान
  • उत्तर वैदिक – कृषि-प्रधान, जटिल यज्ञ, कठोर वर्ण
  • यह तुलनात्मक प्रश्न अक्सर Mains में आता है।
📝 भाग 3 – Previous Year One Liner Questions (Show / Hide Answer)
40+ One Liner | Show Answer पर क्लिक करें – साथ में छोटी व्याख्या भी
Q1. ऋग्वैदिक काल का प्रमुख साहित्यिक स्रोत कौन-सा है?
उत्तर: ऋग्वेद
ऋग्वेद सबसे प्राचीन वैदिक संहिता है, जिसमें अधिकतर सूक्त देवताओं की स्तुति से संबंधित हैं।
Q2. ऋग्वैदिक काल में आर्यों का मुख्य निवास क्षेत्र क्या कहलाता है?
उत्तर: सप्त-सिंधु क्षेत्र
पंजाब तथा उत्तर-पश्चिम भारत की सात नदियों वाला क्षेत्र ऋग्वैदिक आर्यों का गृह-क्षेत्र माना जाता है।
Q3. “जन” शब्द ऋग्वैदिक काल में किसके लिए प्रयुक्त होता था?
उत्तर: जनजाति / Tribe
कई विश मिलकर एक जन बनाते थे – जैसे भरत, पुरु, यदु आदि।
Q4. ऋग्वैदिक ग्राम का मुखिया किसे कहा जाता था?
उत्तर: ग्रामणी
ग्रामणी ग्रामों का नेतृत्व करता था और राजा की प्रशासनिक सहायता भी करता था।
Q5. ऋग्वैदिक समाज में “राजन” किस पद को कहते थे?
उत्तर: जन का मुखिया / राजा
राजन युद्ध, रक्षा, न्याय तथा यज्ञों का नेतृत्व करता था, परन्तु पूर्ण निरंकुश नहीं था।
Q6. ऋग्वैदिक काल की दो प्रमुख सभा-संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर: सभा और समिति
सभा को कुलीनों की, समिति को जनसाधारण की सभा माना जाता है; दोनों से आरंभिक लोकतांत्रिक सोच झलकती है।
Q7. ऋग्वैदिक काल में “विदथा” शब्द का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर: यज्ञ, युद्ध और उत्सव से जुड़ी सभा
विदथा एक बहु-उद्देश्यीय संस्था थी जहाँ धार्मिक एवं सांसारिक दोनों विषयों पर विचार होता था।
Q8. ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या था?
उत्तर: पशुपालन (विशेषकर गौ-पालन)
गाय को धन-सम्पत्ति का मुख्य मानक माना जाता था, इसलिए अर्थव्यवस्था को गो-आधारित कहा जाता है।
Q9. ऋग्वेद में “गो” शब्द का क्या महत्व है?
उत्तर: गाय एवं सम्पत्ति का प्रतीक
गो शब्द धन, समृद्धि और प्रतिष्ठा – तीनों का द्योतक है; गायों के लिए युद्ध भी होते थे।
Q10. ऋग्वैदिक काल में राजा के भरण-पोषण का मुख्य साधन क्या था?
उत्तर: स्वैच्छिक भेंट – बली
अभी नियमित भूमि-राजस्व की व्यवस्था विकसित नहीं हुई थी; बली, दान और युद्ध-लूट प्रमुख स्रोत थे।
Q11. ऋग्वैदिक समाज की मूल इकाई क्या थी?
उत्तर: कुल (संयुक्त परिवार)
कुलपति परिवार का मुखिया होता था और आर्थिक-सामाजिक निर्णय वही लेता था।
Q12. ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों के लिए प्रयुक्त “ऋषिका” शब्द किसका द्योतक है?
उत्तर: मंत्र-रचयिता विदुषी स्त्री
घोषा, लोपामुद्रा, अपाला जैसी कई स्त्रियाँ ऋषिका के रूप में विख्यात थीं और उन्होंने सूक्तों की रचना की।
Q13. किस सूक्त में चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का उल्लेख मिलता है?
उत्तर: पुरुष सूक्त (ऋग्वेद का 10वाँ मंडल)
यहीं से प्रारम्भिक वर्ण-विभाजन की धारणा मिलती है, परन्तु यह अभी कठोर जाति-प्रथा नहीं है।
Q14. ऋग्वैदिक काल में विवाह-व्यवस्था मुख्य रूप से कैसी थी?
उत्तर: एक-पत्नी प्रथा प्रमुख
बहुपत्नीवाद के कुछ अपवाद मिलते हैं, परन्तु सामान्यतः एक पत्नी प्रचलित रही।
Q15. ऋग्वैदिक काल में किस प्रकार की पूजा सर्वोपरि थी – मूर्ति-पूजा या यज्ञ-पूजा?
उत्तर: यज्ञ-पूजा / अग्नि-पूजा
मूर्ति और मंदिर-पूजा का उल्लेख नहीं; हवन, मन्त्र-उच्चारण और स्तुति-सूक्त ही मुख्य साधन थे।
Q16. किस ऋग्वैदिक देवता को “पुरन्दर” कहा गया है?
उत्तर: इन्द्र
इन्द्र को किले तोड़ने वाला (पुरन्दर) कहा गया है; उन्होंने वृत्र नामक असुर को हराया।
Q17. ऋग्वैदिक काल में देवताओं और मनुष्यों के बीच संदेशवाहक किसे माना गया?
उत्तर: अग्नि
अग्नि देवताओं तक यज्ञ-हवि पहुँचाते हैं, इसलिए उन्हें देवदूत माना जाता है।
Q18. ऋग्वैदिक मंत्रों में “ऋत” शब्द का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर: नैतिक-ब्रह्मांडीय व्यवस्था से
ऋत – विश्व-व्यापी अनुशासन या कॉस्मिक ऑर्डर; इसके रक्षक वरुण देवता माने गए हैं।
Q19. ऋग्वैदिक समाज में पाई जाने वाली प्रमुख जातीय जनजाति का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: भरत / पुरु / यदु (कोई एक)
ऋग्वेद में कई जनों – भरत, पुरु, यदु, तुर्वस, द्रुह्य, अन – का उल्लेख मिलता है।
Q20. ऋग्वैदिक काल में सिक्कों के स्थान पर लेन-देन की मुख्य इकाई क्या थी?
उत्तर: गाय / पशुधन
सिक्कों का प्रचलन बाद में आया; प्रारम्भिक वैदिक युग में गाय ही धन का मुख्य मानक रही।
Q21. ऋग्वैदिक काल में “तक्षक” शब्द किस व्यवसाय से जुड़ा है?
उत्तर: बढ़ई / Carpenter
तक्षक लकड़ी के औजार एवं रथ आदि तैयार करते थे; ये महत्वपूर्ण शिल्पकार थे।
Q22. “कर्मार” शब्द का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर: लोहार / कुम्हार प्रकार के धातुकर्मी
कर्मार धातु-उपकरण और औजार बनाते थे; कृषि एवं युद्ध दोनों में इनकी भूमिका रही।
Q23. ऋग्वैदिक आर्यों की प्रमुख धातु कौन-सी थी?
उत्तर: ताम्र / कास्य (ब्रॉन्ज)
लौह का व्यापक प्रयोग उत्तर वैदिक व बाद के काल की विशेषता है, ऋग्वैदिक युग में ताम्र प्रमुख रहा।
Q24. ऋग्वैदिक काल में “अश्वमेध” यज्ञ का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: क्षेत्रीय प्रभुत्व की स्वीकृति
अश्वमेध की परम्परा उत्तर वैदिक में ज्यादा विकसित दिखती है, पर मूल विचार – राजा के साम्राज्य का विस्तार – यहीं से जुड़ा है।
Q25. ऋग्वैदिक काल में उपयोग की जाने वाली भाषा को क्या कहा जाता है?
उत्तर: वैदिक संस्कृत
यह शास्त्रीय संस्कृत से कुछ भिन्न है – व्याकरण, शब्दावली और उच्चारण में।
Q26. ऋग्वैदिक शिक्षा-प्रणाली मुख्यतः किस पर आधारित थी – लिखित ग्रंथों पर या मौखिक परम्परा पर?
उत्तर: मौखिक परम्परा (श्रुति)
वेदों का श्रुति-रूप पीढ़ी-दर-पीढ़ी मुखाग्र रूप से सुरक्षित रखा गया, लिखित रूप बाद में आया।
Q27. ऋग्वेद में उषा किसकी देवता हैं?
उत्तर: भोर / प्रातःकाल की देवी
उषा को जगत को जगाने वाली, सौन्दर्य और नवचेतना की देवी कहा गया है।
Q28. ऋग्वैदिक युद्धों में मुख्य सवार वाहक कौन-सा था?
उत्तर: रथ और अश्व
रथ-युद्ध ऋग्वैदिक सेना की विशेष पहचान थी, जिससे गति और आक्रमण-शक्ति बढ़ जाती थी।
Q29. ऋग्वेद के अधिकांश सूक्त किन विषयों से संबंधित हैं?
उत्तर: देवताओं की स्तुति-प्रार्थना
इन्हें स्तोत्र या सूक्त कहा जाता है, जो यज्ञ एवं अनुष्ठानों में गाए/पढ़े जाते थे।
Q30. ऋग्वैदिक समाज मूलतः किस प्रकार का था – नगर-प्रधान या ग्राम-प्रधान?
उत्तर: ग्राम-प्रधान / ग्रामीण समाज
शहर-संस्कृति अभी विकसित नहीं, जीवन मुख्यतः गाँव, चरागाह और कृषि-भूमि के आसपास केंद्रित था।
Q31. ऋग्वैदिक समाज में विधवा-विवाह और पुनर्विवाह की अनुमति थी या नहीं?
उत्तर: हाँ, सीमित रूप में स्वीकृति
विधवा-विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध के प्रमाण नहीं; यह प्रतिबंध बाद की सामाजिक कठोरता में बढ़ा।
Q32. ऋग्वैदिक काल में कौन-सी सामाजिक बुराइयाँ प्रायः अनुपस्थित थीं?
उत्तर: सती-प्रथा, पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह
इन कुप्रथाओं का विकास उत्तर वैदिक एवं बाद के काल में धीरे-धीरे हुआ।
Q33. ऋग्वैदिक देवता वरुण किसके देवता माने जाते हैं?
उत्तर: ऋत (नैतिक-ब्रह्मांडीय व्यवस्था) के देवता
वे पापों पर निगरानी रखते हैं और अपराध करने वालों को दण्डित करते हैं।
Q34. ऋग्वैदिक समाज में “गोत्र” की अवधारणा किससे जुड़ी है?
उत्तर: वंश/कुल की पहचान से
गोत्र विवाह-नियमों और पारिवारिक पहचान के लिए महत्त्वपूर्ण सामाजिक इकाई था।
Q35. ऋग्वैदिक काल में किस यज्ञ-पेय का विशेष महत्व था?
उत्तर: सोम-रस
सोम को एक पवित्र पेय माना गया, जिसे देवताओं को अर्पित तथा यजमान द्वारा ग्रहण किया जाता था।
Q36. ऋग्वैदिक समाज में प्रमुख मनोरंजन के साधन कौन-से थे?
उत्तर: गीत, नृत्य, वाद्य, पासा-खेल आदि
यज्ञ-समारोह, उत्सव और युद्ध-विजय के अवसर पर नृत्य-संगीत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
Q37. ऋग्वैदिक काल में ‘नदी’ शब्द का प्रयोग किस विशेष नदी के लिए भी किया गया है?
उत्तर: सरस्वती
सरस्वती को कभी-कभी “नदीनां श्रेष्ठा” कहा गया है; उसे नदी शब्द से विशिष्ट सम्मान दिया गया।
Q38. ऋग्वैदिक आर्यों और दस्युओं या दासों के संघर्ष मुख्य रूप से किसके लिए होते थे?
उत्तर: गो-सम्पत्ति और चरागाह के लिए
ये संघर्ष आर्थिक हितों से प्रेरित थे, न कि केवल धार्मिक कारणों से।
Q39. ऋग्वैदिक काल में राजा के चुनाव में किस सभा की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है?
उत्तर: समिति
समिति को जनता की सभा कहा गया है, जो राजन के चयन व नीतिगत निर्णयों में भाग लेती थी।
Q40. ऋग्वैदिक काल में न्याय-व्यवस्था में किस संस्था को महत्वपूर्ण माना जाता है – सभा या विदथा?
उत्तर: सभा
सभा को अपेक्षाकृत छोटी, विशिष्ट और न्याय-सम्बन्धी मामलों में अधिक अधिकार प्राप्त संस्था माना जाता है।
Q41. ऋग्वैदिक काल में राजा के साथ यज्ञ में प्रमुख भागी कौन-सा पद होता था?
उत्तर: पुरोहित
पुरोहित न केवल धार्मिक नेता था, बल्कि राजन का राजनीतिक सलाहकार भी होता था।
Q42. ऋग्वैदिक समाज में मुख्य भोजन-अनाज किसका उल्लेख अधिक मिलता है – चावल या जौ?
उत्तर: जौ (यव)
जौ का उल्लेख बार-बार मिलता है, जबकि चावल का उल्लेख सीमित और उत्तर वैदिक की ओर बढ़ता है।
Q43. ऋग्वैदिक समाज में “दस्यु” शब्द से सामान्यतः किसका बोध होता है?
उत्तर: अनार्य / शत्रु / लुटेरा
दस्यु वे जन थे जो आर्य धार्मिक-सामाजिक मान्यताएँ नहीं मानते थे और अक्सर विरोधी के रूप में वर्णित हैं।
Q44. ऋग्वैदिक काल में “सम” शब्द का प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर: युद्ध की लूट / संपत्ति के बँटवारे के लिए
युद्ध में प्राप्त लूट को सम के रूप में राजा, पुरोहित, सेनानी और योद्धाओं में बाँटा जाता था।
Q45. ऋग्वैदिक काल की कौन-सी विशेषता उसे उत्तर वैदिक काल से अलग करती है?
उत्तर: सरल, कम अनुष्ठान-प्रधान और अपेक्षाकृत समानतावादी समाज
उत्तर वैदिक काल की तुलना में ऋग्वैदिक समाज में यज्ञ कम जटिल, वर्ण-व्यवस्था लचीली और स्त्रियों की स्थिति बेहतर थी।
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