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अध्याय 9 • मध्यकालीन भारतीय संस्कृति व कला
9.2 संगीत, चित्रकला एवं साहित्य – तानसेन, दरबारी संगीत, मुगल चित्रकला, फारसी व भारतीय साहित्य की मुख्य धारा
9.2 संगीत, चित्रकला एवं साहित्य – तानसेन, दरबारी संगीत, मुगल चित्रकला, फारसी व भारतीय साहित्य की मुख्य धारा
🎶 दरबारी संगीत, तानसेन, सूफी–भक्ति, मुगल मिनिएचर, फारसी–हिंदी साहित्य – सब एक फ्लो में
📝 UPSC / PCS / RO-ARO / UPSSSC / Police हेतु हाई–स्कोरर नोट्स + त्वरित पुनरावृत्ति + PYQs
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9.2 संगीत, चित्रकला एवं साहित्य – Deep Study Notes
Culture – High Yield Static Topic
परीक्षा से क्यों ज़रूरी? मध्यकालीन संगीत, चित्रकला व साहित्य से
लगभग हर परीक्षा में 3–4 सीधे MCQ और 1 लॉन्ग / विश्लेषणात्मक प्रश्न बनते हैं।
तानसेन, अमीर खुसरो, मुगल चित्रकला, अकबरनामा, भक्ति–संत – सबसे ज़्यादा पूछे जाने वाले नाम हैं।
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SMART ट्रिक:
“खुसरो – शुरुआत, तानसेन – दरबार, जहाँगीर – चित्रकार, तुलसी–कबीर–सूर – जनभाषा” इस लाइन को याद रखोगे तो पूरा टॉपिक क्रोनोलॉजी में बैठ जाएगा।
“खुसरो – शुरुआत, तानसेन – दरबार, जहाँगीर – चित्रकार, तुलसी–कबीर–सूर – जनभाषा” इस लाइन को याद रखोगे तो पूरा टॉपिक क्रोनोलॉजी में बैठ जाएगा।
🎶 मध्यकालीन संगीत – संक्षिप्त रूपरेखा
- मंदिर–आधारित संगीत से दरबारी संगीत की ओर परिवर्तन।
- सूफी खानकाह और भक्ति संतों ने लोकभाषा गीतों को लोकप्रिय बनाया।
- राग–रागिनी, ध्रुपद, ख्याल, कव्वाली, भजन आदि का विकास।
🎤 अमीर खुसरो – “हिन्दुस्तानी संगीत के जनक”
- दिल्ली सल्तनत के समय खिलजी व तुगलक दरबार से जुड़े सूफी कवि–संगीतकार।
- कव्वाली, ख्याल, तराना, गीतों की मिश्रित परम्परा से जुड़े।
- फारसी + भारतीय तत्वों के मेल से “हिन्दुस्तानी संगीत” की बुनियाद मजबूत की।
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एक्जाम टिप: “कव्वाली की परम्परा से किसका नाम जुड़ा है?” –
इस प्रकार के प्रश्न में उत्तर प्रायः अमीर खुसरो होता है।
🎼 तानसेन – अकबर दरबार के नवरत्न
- ग्वालियर क्षेत्र से संबंध; मूल नाम रामतनु पांडे (कई स्रोतों में)।
- अकबर के नवरत्नों में प्रमुख संगीतज्ञ; दरबारी रागों का विकास।
- ध्रुपद गायन शैली के महान उस्ताद; ग्वालियर घराने से जुड़ाव।
🎵 ध्रुपद, ख्याल व अन्य रूप
- ध्रुपद: गंभीर, भक्तिपूर्ण, शास्त्रीय गायन – विशेषकर कृष्ण–भक्ति पर केन्द्रित।
- ख्याल: अपेक्षाकृत मुक्त, कल्पनाशील, स्वरों की सजावट पर आधारित।
- मध्यकाल में दरबारों व सूफी दरगाहों के सहयोग से दोनों शैलियों का विकास।
🎨 मुगल चित्रकला – शुरुआत व विकास
- हुमायूँ के समय फारसी चित्रकार मीर सैय्यद अली व अब्दुस्समद का आगमन।
- अकबर के शासन में राजकीय चित्रशाला की स्थापना – अनेक भारतीय चित्रकार जुड़े।
- फारसी लघुचित्र कला + भारतीय रंग–संसार + यथार्थवादी चित्रण = मुगल मिनिएचर शैली।
🖼️ अकबर और चित्रकला विभाग
- अकबर ने इतिहास–ग्रंथों, महाकाव्यों, दार्शनिक ग्रंथों का चित्रांकित रूप तैयार कराया।
- अकबरनामा, हमज़ानामा, रज़्मनामा आदि के लिए भव्य चित्र–श्रृंखलाएँ।
- चित्रकारों की संयुक्त कार्य–प्रणाली – एक चित्र पर अलग–अलग कलाकारों का काम।
🌿 जहाँगीर – प्रकृति व यथार्थ चित्रकार
- जहाँगीर को स्वयं चित्रकला का गहरा शौक; चित्रकारों को संरक्षण।
- पशु–पक्षी, फूल–पत्तियाँ, प्राकृतिक दृश्य – अत्यधिक यथार्थवादी रूप में चित्रित।
- चित्रों में छाया–प्रकाश, चेहरे के भाव और व्यक्तित्व–चित्रण पर विशेष जोर।
🧭 राजपूत, पहाड़ी व दक्कनी चित्रकला
- राजपूत चित्रकला: रामायण–महाभारत, कृष्ण–लीला, राजदरबार – तेज रंग, मजबूत रेखाएँ।
- पहाड़ी शैली: कांगड़ा, गढ़वाल आदि – कोमल रंग, प्रेम व भक्ति विषय।
- दक्कनी: गोलकुंडा, बीजापुर – फारसी प्रभाव + स्थानीय पोशाक व परिवेश।
📜 फारसी साहित्य – इतिहास और दरबारी ग्रंथ
- बाबरनामा: बाबर की आत्मकथा (तुर्की/चगताई भाषा में)।
- अकबरनामा व आईन–ए–अकबरी: अबुल फ़ज़ल द्वारा अकबर के शासन का विस्तृत वर्णन।
- तुज़ुक–ए–जहाँगीरी: जहाँगीर की आत्मकथा – शासन, शौक व न्याय–दृष्टि का वर्णन।
📖 हिंदी / भक्ति साहित्य – कबीर, तुलसी, सूर
- कबीर: निर्गुण भक्ति, दोहे, साखी – समाज–सुधारक संदेश।
- तुलसीदास: रामचरितमानस, विनय पत्रिका – राम–भक्ति का लोकभाषा में विस्तार।
- सूरदास: सूरसागर – कृष्ण–भक्ति, बाल–लीला, साख्य भाव का सुंदर चित्रण।
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एक्जाम टिप: “किस संत/कवि की रचना कौन–सी?” –
इस तरह के मिलान–आधारित प्रश्न लगभग हर परीक्षा में पूछे जाते हैं।
🤝 गंगा–जमुनी तहज़ीब – मिश्रित संस्कृति
- सूफी संत, भक्ति संत, दरबारी कलाकार – सबने मिलकर साझा सांस्कृतिक वातावरण बनाया।
- संगीत में राग–रागिनी, भाषा में हिन्दवी/रीख़्ता, साहित्य में फारसी + भारतीय मेल।
- यही मिश्रित संस्कृति आगे चलकर आधुनिक भारतीय पहचान का आधार बनी।
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त्वरित पुनरावृत्ति – संगीत, चित्रकला एवं साहित्य
पेपर से पहले 5 मिनट रिवीजन
यह सेक्शन पूरी तरह हिंदी शब्दों में रखा गया है ताकि याद करना आसान हो। परीक्षा से पहले 1–2 बार इसे पढ़ लेने से पूरे टॉपिक की पकड़ मजबूत हो जाती है।
🎶 संगीत – मुख्य बिंदु
- मंदिर–आधारित संगीत से दरबारी संगीत की ओर परिवर्तन।
- सूफी दरगाहों पर कव्वाली और समा की परम्परा।
- भक्ति आंदोलन ने लोकभाषा गीतों को लोकप्रिय बनाया।
🎤 अमीर खुसरो
- सूफी कवि–संगीतकार, दिल्ली सल्तनत दरबार से जुड़े।
- फारसी और भारतीय धुनों का मिश्रण किया।
- कव्वाली, तराना, ग़ज़ल आदि से नाम जुड़ा।
🎼 तानसेन
- अकबर के नवरत्नों में प्रसिद्ध गायक।
- ध्रुपद गायन शैली के महान उस्ताद।
- कई रागों और दरबारी संगीत परंपरा से जुड़े।
🎵 ध्रुपद और ख्याल
- ध्रुपद – गंभीर, स्थिर, भक्तिपूर्ण गायन।
- ख्याल – कल्पनाशील, आलाप और तानों पर आधारित।
- दोनों शैलियाँ उत्तर भारत में विकसित हुईं।
🎨 मुगल चित्रकला
- फारसी लघुचित्र + भारतीय रंग–संसार।
- अकबर ने राजकीय चित्रशाला स्थापित की।
- इतिहास–ग्रंथों को चित्रांकित रूप दिया गया।
🌿 जहाँगीर की चित्र–रुचि
- प्रकृति, पशु–पक्षी, फूल–पत्तियों के चित्र पसंद।
- चेहरे के भाव और यथार्थ चित्रण पर जोर।
- चित्रकारों को उदार संरक्षण दिया।
📜 फारसी इतिहास–ग्रंथ
- अकबरनामा और आईन–ए–अकबरी – अबुल फ़ज़ल।
- तुज़ुक–ए–जहाँगीरी – जहाँगीर की आत्मकथा।
- दरबारी जीवन और शासन की महत्वपूर्ण झलक।
📖 हिंदी भक्ति साहित्य
- कबीर – निर्गुण भक्ति, दोहे और साखी।
- तुलसीदास – रामचरितमानस, राम–भक्ति।
- सूरदास – कृष्ण–भक्ति और बाल–लीला।
🤝 मिश्रित संस्कृति
- सूफी और भक्ति परंपरा ने दूरी कम की।
- संगीत, कविता और लोककला में मेल–मिलाप।
- इसी से गंगा–जमुनी तहज़ीब बनी।
💡 याद रखने का सूत्र
- “खुसरो–तानसेन–अकबरनामा–जहाँगीर–कबीर–तुलसी–सूर” – क्रम याद रखें।
- हर नाम के साथ एक–एक रचना या विशेषता जोड़ें।
- इसी से अधिकतर प्रश्न कवर हो जाते हैं।
❓
वन लाइनर PYQs – संगीत, चित्रकला एवं साहित्य (45 प्रश्न)
View / Hide Answer के साथ व्याख्या
इस सेक्शन में लगभग 45 महत्वपूर्ण वन लाइनर प्रश्न दिए गए हैं।
हर प्रश्न के बाद उत्तर + 2–3 पंक्ति की व्याख्या👁️ View Answer🙈 Hide Answer
1. तानसेन किस मुगल शासक के दरबार के नवरत्नों में शामिल थे?
उत्तर: अकबर के दरबार में।
व्याख्या: मियाँ तानसेन अकबर के नवरत्नों में गिने जाते हैं। वे दरबारी संगीत की सर्वोच्च हस्ती थे और ध्रुपद सहित कई रागों के विकास से जुड़े हैं।
व्याख्या: मियाँ तानसेन अकबर के नवरत्नों में गिने जाते हैं। वे दरबारी संगीत की सर्वोच्च हस्ती थे और ध्रुपद सहित कई रागों के विकास से जुड़े हैं।
2. तानसेन का मूल नाम क्या था?
उत्तर: रामतनु पांडे।
व्याख्या: परम्परा के अनुसार गायक तानसेन का जन्म नाम रामतनु पांडे माना जाता है, जो बाद में अकबर के दरबार में “मियाँ तानसेन” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
व्याख्या: परम्परा के अनुसार गायक तानसेन का जन्म नाम रामतनु पांडे माना जाता है, जो बाद में अकबर के दरबार में “मियाँ तानसेन” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
3. तानसेन मूलतः किस क्षेत्र/नगर से जुड़े माने जाते हैं?
उत्तर: ग्वालियर क्षेत्र से।
व्याख्या: संगीत परम्परा में तानसेन को ग्वालियर–क्षेत्र का माना जाता है, जहाँ ध्रुपद गायन की समृद्ध परम्परा रही है और आज भी ग्वालियर घराना प्रसिद्ध है।
व्याख्या: संगीत परम्परा में तानसेन को ग्वालियर–क्षेत्र का माना जाता है, जहाँ ध्रुपद गायन की समृद्ध परम्परा रही है और आज भी ग्वालियर घराना प्रसिद्ध है।
4. तानसेन के गुरु के रूप में किस संत–संगीतज्ञ का नाम लिया जाता है?
उत्तर: स्वामी हरिदास।
व्याख्या: परम्परा के अनुसार तानसेन ने वृंदावन के संत–संगीतज्ञ स्वामी हरिदास के सान्निध्य में संगीत शिक्षा प्राप्त की, जो भक्ति–और संगीत–धारा के बड़े नाम हैं।
व्याख्या: परम्परा के अनुसार तानसेन ने वृंदावन के संत–संगीतज्ञ स्वामी हरिदास के सान्निध्य में संगीत शिक्षा प्राप्त की, जो भक्ति–और संगीत–धारा के बड़े नाम हैं।
5. “मियाँ की टोड़ी” और “मियाँ की मल्हार” जैसे राग किस महान गायक से जुड़े माने जाते हैं?
उत्तर: मियाँ तानसेन से।
व्याख्या: कई रागों के नाम में “मियाँ” लगा होने से संकेत मिलता है कि उन्हें तानसेन ने विशेष रूप से विकसित/लोकप्रिय किया, जैसे मियाँ की टोड़ी, मियाँ की मल्हार, मियाँ की सारंग आदि।
व्याख्या: कई रागों के नाम में “मियाँ” लगा होने से संकेत मिलता है कि उन्हें तानसेन ने विशेष रूप से विकसित/लोकप्रिय किया, जैसे मियाँ की टोड़ी, मियाँ की मल्हार, मियाँ की सारंग आदि।
6. अमीर खुसरो किस शासक के समय प्रसिद्ध सूफी कवि–संगीतज्ञ के रूप में जाने जाते हैं?
उत्तर: अलाउद्दीन खिलजी के समय (साथ ही अन्य सुल्तानों के दरबार से भी जुड़े)।
व्याख्या: अमीर खुसरो दिल्ली सल्तनत के कई सुल्तानों के दरबार में रहे, जिनमें अलाउद्दीन खिलजी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। वे कव्वाली, तराना, नई राग–रचनाओं से जुड़े हैं।
व्याख्या: अमीर खुसरो दिल्ली सल्तनत के कई सुल्तानों के दरबार में रहे, जिनमें अलाउद्दीन खिलजी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। वे कव्वाली, तराना, नई राग–रचनाओं से जुड़े हैं।
7. अमीर खुसरो को परम्परागत रूप से किन दो वाद्यों/रूपों के विकास से जोड़ा जाता है? (प्रश्न–शैली के लिए उपयोगी तथ्य)
उत्तर: सितार, तबला (लोक–परम्परा); साथ ही तराना व कव्वाली की शैली।
व्याख्या: ऐतिहासिक बहसों के बावजूद प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर अमीर खुसरो को सितार, तबला, तराना और कव्वाली की परम्परा से जोड़ा जाता है, इसलिए objective स्तर पर यह जोड़ी याद रखी जाती है।
व्याख्या: ऐतिहासिक बहसों के बावजूद प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर अमीर खुसरो को सितार, तबला, तराना और कव्वाली की परम्परा से जोड़ा जाता है, इसलिए objective स्तर पर यह जोड़ी याद रखी जाती है।
8. “दरबारी कान्हड़ा” राग परम्परागत रूप से किस गायक से जोड़ा जाता है?
उत्तर: मियाँ तानसेन से।
व्याख्या: कथाओं के अनुसार गहन, गंभीर माहौल वाला राग दरबारी कान्हड़ा तानसेन की विशेष रचना/रूप में माना जाता है, जो विशेषकर रात के दरबारों में गाया जाता था।
व्याख्या: कथाओं के अनुसार गहन, गंभीर माहौल वाला राग दरबारी कान्हड़ा तानसेन की विशेष रचना/रूप में माना जाता है, जो विशेषकर रात के दरबारों में गाया जाता था।
9. ध्रुपद गायन शैली विशेष रूप से किस मुगल शासक के समय दरबारी संगीत की प्रमुख शैली बनी?
उत्तर: अकबर के समय।
व्याख्या: अकबर के दरबार में ध्रुपद शैली को विशेष संरक्षण मिला। तानसेन सहित कई गायक ध्रुपद के महान उस्ताद थे, जिससे यह दरबारी संगीत की मुख्य धारा बनी।
व्याख्या: अकबर के दरबार में ध्रुपद शैली को विशेष संरक्षण मिला। तानसेन सहित कई गायक ध्रुपद के महान उस्ताद थे, जिससे यह दरबारी संगीत की मुख्य धारा बनी।
10. मध्यकाल में “कव्वाली” शैली किस परम्परा से अधिक जुड़ी मानी जाती है – भक्ति या सूफी?
उत्तर: सूफी परम्परा से।
व्याख्या: दरगाहों में होने वाले सूफी समागमों में कव्वाली के माध्यम से ईश्वर–प्रेम, रहस्यवाद और भक्तिभाव व्यक्त किया जाता था। अमीर खुसरो को इसका प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है।
व्याख्या: दरगाहों में होने वाले सूफी समागमों में कव्वाली के माध्यम से ईश्वर–प्रेम, रहस्यवाद और भक्तिभाव व्यक्त किया जाता था। अमीर खुसरो को इसका प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है।
11. मुगल चित्रकला की वास्तविक शुरुआत किस मुगल शासक के समय मानी जाती है?
उत्तर: हुमायूँ के समय (फारसी चित्रकारों के आगमन से)।
व्याख्या: हुमायूँ ने फ़ारस से दो प्रसिद्ध चित्रकार – मिर सैय्यद अली और अब्दुस्समद – को भारत लाया, जिन्होंने आगे चलकर अकबर के दरबार में मुगल चित्रकला की नींव मजबूत की।
व्याख्या: हुमायूँ ने फ़ारस से दो प्रसिद्ध चित्रकार – मिर सैय्यद अली और अब्दुस्समद – को भारत लाया, जिन्होंने आगे चलकर अकबर के दरबार में मुगल चित्रकला की नींव मजबूत की।
12. मुगल चित्रकला को पूर्ण संरक्षण व विस्तार किस मुगल शासक के समय मिला?
उत्तर: अकबर के समय।
व्याख्या: अकबर ने चित्रकला विभाग स्थापित कर कई भारतीय–फारसी चित्रकारों को संरक्षण दिया। यही समय मुगल मिनिएचर पेंटिंग के स्वर्णकाल की शुरुआत माना जाता है।
व्याख्या: अकबर ने चित्रकला विभाग स्थापित कर कई भारतीय–फारसी चित्रकारों को संरक्षण दिया। यही समय मुगल मिनिएचर पेंटिंग के स्वर्णकाल की शुरुआत माना जाता है।
13. “हमज़ानामा” चित्र–श्रृंखला किस मुगल शासक के समय बनाई गई थी?
उत्तर: अकबर के समय।
व्याख्या: हमज़ानामा पैगम्बर मुहम्मद के चाचा हमज़ा की वीर गाथाओं पर आधारित चित्र–श्रृंखला थी, जिसमें सैकड़ों बड़े आकार की पेंटिंग्स बनवाई गईं। यह मुगल चित्रकला की शुरुआती महत्त्वपूर्ण रचना है।
व्याख्या: हमज़ानामा पैगम्बर मुहम्मद के चाचा हमज़ा की वीर गाथाओं पर आधारित चित्र–श्रृंखला थी, जिसमें सैकड़ों बड़े आकार की पेंटिंग्स बनवाई गईं। यह मुगल चित्रकला की शुरुआती महत्त्वपूर्ण रचना है।
14. जहाँगीर की चित्रकला–पसंद विशेष रूप से किस प्रकार की थी – धार्मिक, युद्ध–चित्र या प्रकृति–चित्र?
उत्तर: प्रकृति–चित्र और यथार्थवादी चित्रण।
व्याख्या: जहाँगीर को पक्षी, पशु, फूल, प्राकृतिक दृश्यों और वास्तविक व्यक्तिचित्रों से विशेष लगाव था। इसलिए उसके समय की चित्रकला में सूक्ष्म, वैज्ञानिक अवलोकन दिखाई देता है।
व्याख्या: जहाँगीर को पक्षी, पशु, फूल, प्राकृतिक दृश्यों और वास्तविक व्यक्तिचित्रों से विशेष लगाव था। इसलिए उसके समय की चित्रकला में सूक्ष्म, वैज्ञानिक अवलोकन दिखाई देता है।
15. “बादशाहनामा” और “जहाँगीरनामा” किस विधा से संबंधित मुगल ग्रंथ हैं?
उत्तर: दरबारी इतिहास/आत्मकथा–परम्परा से।
व्याख्या: जहाँगीरनामा (तुज़ुक–ए–जहाँगीरी) सम्राट जहाँगीर की आत्मकथा है, जबकि पदशाहनामा शाहजहाँ के शासन का इतिहास–ग्रंथ है, जिनकी कई पांडुलिपियाँ अलंकृत चित्रों से सजी हैं।
व्याख्या: जहाँगीरनामा (तुज़ुक–ए–जहाँगीरी) सम्राट जहाँगीर की आत्मकथा है, जबकि पदशाहनामा शाहजहाँ के शासन का इतिहास–ग्रंथ है, जिनकी कई पांडुलिपियाँ अलंकृत चित्रों से सजी हैं।
16. मुगल चित्रकला की एक प्रमुख विशेषता कौन–सी नहीं है – (क) सूक्ष्मता, (ख) सममिति, (ग) विशाल भित्ति–चित्र, (घ) रंगों की नज़ाकत?
उत्तर: (ग) विशाल भित्ति–चित्र।
व्याख्या: मुगल पेंटिंग मुख्यतः मिनिएचर (छोटी पांडुलिपि–चित्र) परम्परा है, जो सूक्ष्म रेखांकन, रंगों की नज़ाकत और यथार्थवादी चित्रण के लिए जानी जाती है – बड़े भित्ति–चित्र इसके लक्षण नहीं हैं।
व्याख्या: मुगल पेंटिंग मुख्यतः मिनिएचर (छोटी पांडुलिपि–चित्र) परम्परा है, जो सूक्ष्म रेखांकन, रंगों की नज़ाकत और यथार्थवादी चित्रण के लिए जानी जाती है – बड़े भित्ति–चित्र इसके लक्षण नहीं हैं।
17. “राजपूत चित्रकला” अधिकतर किस विषय–वस्तु पर केन्द्रित रहती थी – दरबारी जीवन या राम–कृष्ण–भक्ति?
उत्तर: राम–कृष्ण–भक्ति, नायिका–भेद, रास–लीला आदि।
व्याख्या: राजपूत/राजस्थानी और पहाड़ी चित्रकला में धार्मिक–भक्ति विषय, विशेषकर श्रीकृष्ण–लीला, रामकथाएँ, राग–रागिनी, नायिका–भेद प्रमुख रहे, जबकि मुगल पेंटिंग में दरबार व युद्ध–दृश्य अधिक थे।
व्याख्या: राजपूत/राजस्थानी और पहाड़ी चित्रकला में धार्मिक–भक्ति विषय, विशेषकर श्रीकृष्ण–लीला, रामकथाएँ, राग–रागिनी, नायिका–भेद प्रमुख रहे, जबकि मुगल पेंटिंग में दरबार व युद्ध–दृश्य अधिक थे।
18. “कांगड़ा” और “बसोली” किस प्रकार की चित्रकला–शैली से संबंधित नाम हैं?
उत्तर: पहाड़ी चित्रकला–शैली से।
व्याख्या: हिमालय के तराई क्षेत्रों में विकसित कांगड़ा, बसोली, गढ़वाल आदि पहाड़ी चित्र–शैलियाँ भक्ति–भाव, प्रकृति और कोमल रंगों के लिए जानी जाती हैं।
व्याख्या: हिमालय के तराई क्षेत्रों में विकसित कांगड़ा, बसोली, गढ़वाल आदि पहाड़ी चित्र–शैलियाँ भक्ति–भाव, प्रकृति और कोमल रंगों के लिए जानी जाती हैं।
19. “मालवा” और “दक्कन” स्कूल किस कला–क्षेत्र की क्षेत्रीय शाखाएँ हैं – स्थापत्य या चित्रकला?
उत्तर: चित्रकला की।
व्याख्या: मध्यकाल में मुगल के साथ–साथ मालवा, दक्कन, राजपूत, पहाड़ी आदि कई क्षेत्रीय चित्रकला–शैलियाँ विकसित हुईं, जिनके रंग, रेखा–शैली और विषय–वस्तु भिन्न–भिन्न रही।
व्याख्या: मध्यकाल में मुगल के साथ–साथ मालवा, दक्कन, राजपूत, पहाड़ी आदि कई क्षेत्रीय चित्रकला–शैलियाँ विकसित हुईं, जिनके रंग, रेखा–शैली और विषय–वस्तु भिन्न–भिन्न रही।
20. मुगल दरबार की आधिकारिक भाषा कौन–सी थी, जिसमें अधिकांश दरबारी इतिहास–ग्रंथ लिखे गए?
उत्तर: फारसी भाषा।
व्याख्या: मध्यकालीन भारत में विशेषकर मुगल काल में प्रशासन, दरबार और इतिहास–लेखन की प्रमुख भाषा फारसी थी, जिसके कारण कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ फारसी में उपलब्ध हैं।
व्याख्या: मध्यकालीन भारत में विशेषकर मुगल काल में प्रशासन, दरबार और इतिहास–लेखन की प्रमुख भाषा फारसी थी, जिसके कारण कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ फारसी में उपलब्ध हैं।
21. “बाबरनामा” मूलतः किस भाषा में लिखा गया था?
उत्तर: तुर्की (चगताई तुर्की) भाषा में।
व्याख्या: बाबर द्वारा लिखी आत्मकथा “तुज़ुक–ए–बाबरी” मूल रूप से तुर्की में थी, बाद में इसका फारसी अनुवाद हुआ और वही भारतीय इतिहास–अध्ययन का प्रमुख स्रोत बना।
व्याख्या: बाबर द्वारा लिखी आत्मकथा “तुज़ुक–ए–बाबरी” मूल रूप से तुर्की में थी, बाद में इसका फारसी अनुवाद हुआ और वही भारतीय इतिहास–अध्ययन का प्रमुख स्रोत बना।
22. “अकबरनामा” और “आइन–ए–अकबरी” किस विद्वान द्वारा लिखे गए थे?
उत्तर: अबुल फ़ज़्ल द्वारा।
व्याख्या: अबुल फ़ज़्ल अकबर के दरबार के प्रमुख इतिहासकार व नवरत्न थे। अकबरनामा में अकबर का इतिहास और आइन–ए–अकबरी में शासन–व्यवस्था, राजस्व, सेना, समाज का विवरण है।
व्याख्या: अबुल फ़ज़्ल अकबर के दरबार के प्रमुख इतिहासकार व नवरत्न थे। अकबरनामा में अकबर का इतिहास और आइन–ए–अकबरी में शासन–व्यवस्था, राजस्व, सेना, समाज का विवरण है।
23. “तुज़ुक–ए–जहाँगीरी” किस प्रकार का ग्रंथ है?
उत्तर: जहाँगीर की आत्मकथा (संस्मरण)।
व्याख्या: तुज़ुक–ए–जहाँगीरी में सम्राट जहाँगीर ने अपने शासन, घटनाओं, प्रकृति–प्रेम, न्याय–दृष्टि आदि के बारे में स्वयं लेखन किया, जो इतिहास के लिए महत्वपूर्ण स्रोत है।
व्याख्या: तुज़ुक–ए–जहाँगीरी में सम्राट जहाँगीर ने अपने शासन, घटनाओं, प्रकृति–प्रेम, न्याय–दृष्टि आदि के बारे में स्वयं लेखन किया, जो इतिहास के लिए महत्वपूर्ण स्रोत है।
24. “मुंतखब–उत–तवारीख” (इतिहास–ग्रंथ) किस विद्वान द्वारा लिखा गया था, जो अकबर की नीतियों के आलोचक भी थे?
उत्तर: बदायूँनी (अब्दुल कादिर बदायूँनी) द्वारा।
व्याख्या: बदायूँनी ने मुंतखब–उत–तवारीख में अकबर की दीन–ए–इलाही और उदार धार्मिक नीति की आलोचना भी की, जिससे यह अबुल फ़ज़्ल के अकबर–चित्रण का संतुलन प्रस्तुत करता है।
व्याख्या: बदायूँनी ने मुंतखब–उत–तवारीख में अकबर की दीन–ए–इलाही और उदार धार्मिक नीति की आलोचना भी की, जिससे यह अबुल फ़ज़्ल के अकबर–चित्रण का संतुलन प्रस्तुत करता है।
25. मध्यकाल में “भक्ति आंदोलन” की आरम्भिक प्रमुख शाखाओं में से दो कौन–सी थीं?
उत्तर: निर्गुण भक्ति व सगुण भक्ति।
व्याख्या: निर्गुण धारा (जैसे कबीर, दादू) निराकार ईश्वर पर बल देती है, जबकि सगुण धारा (जैसे रामानंदी, वल्लभ, कृष्ण–भक्त कवि) ईश्वर को साकार रूप में पूजती है।
व्याख्या: निर्गुण धारा (जैसे कबीर, दादू) निराकार ईश्वर पर बल देती है, जबकि सगुण धारा (जैसे रामानंदी, वल्लभ, कृष्ण–भक्त कवि) ईश्वर को साकार रूप में पूजती है।
26. “रामचरितमानस” के रचयिता कौन हैं और यह मुख्यतः किस भाषा/बोली में रचित है?
उत्तर: गोस्वामी तुलसीदास; अवधी बोली में।
व्याख्या: तुलसीदास ने रामचरितमानस को अवधी में लिखा, जिसने उत्तर भारत में राम–भक्ति और लोक–भाषा में साहित्य को अत्यधिक लोकप्रिय बनाया।
व्याख्या: तुलसीदास ने रामचरितमानस को अवधी में लिखा, जिसने उत्तर भारत में राम–भक्ति और लोक–भाषा में साहित्य को अत्यधिक लोकप्रिय बनाया।
27. “सूरसागर” और “सूरसारावली” किस भक्त–कवि की रचनाएँ मानी जाती हैं?
उत्तर: भक्त सूरदास की।
व्याख्या: सूरदास ने श्रीकृष्ण–भक्ति पर आधारित सख्य–माधुर्य भाव वाली रचनाएँ कीं, जिनमें ब्रज भाषा के पद अत्यंत लोकप्रिय हैं और भक्ति–साहित्य का महत्वपूर्ण भाग हैं।
व्याख्या: सूरदास ने श्रीकृष्ण–भक्ति पर आधारित सख्य–माधुर्य भाव वाली रचनाएँ कीं, जिनमें ब्रज भाषा के पद अत्यंत लोकप्रिय हैं और भक्ति–साहित्य का महत्वपूर्ण भाग हैं।
28. कबीर की रचनाएँ मुख्यतः किस रूप में प्रसिद्ध हैं – दोहा, साखी या चैपाई?
उत्तर: दोहा और साखी के रूप में।
व्याख्या: कबीर के संदेश छोटे–छोटे दोहों व साखियों में संकलित हैं, जिनमें वे निर्गुण भक्ति, जाति–भेद विरोध और आडम्बर–विरोधी विचार व्यक्त करते हैं।
व्याख्या: कबीर के संदेश छोटे–छोटे दोहों व साखियों में संकलित हैं, जिनमें वे निर्गुण भक्ति, जाति–भेद विरोध और आडम्बर–विरोधी विचार व्यक्त करते हैं।
29. “मीरा बाई” किस भक्ति–धारा की प्रसिद्ध कवयित्री हैं और उनकी भक्ति मुख्यतः किस देवता के प्रति है?
उत्तर: सगुण भक्ति–धारा; श्रीकृष्ण के प्रति।
व्याख्या: राजपूताना की राजकुमारी मीरा बाई ने कृष्ण–प्रेम पर अनेक पद लिखे, जिनमें विरह, समर्पण और प्रेम–उत्कटता व्यक्त होती है; वे वैष्णव भक्ति की प्रमुख कवयित्री हैं।
व्याख्या: राजपूताना की राजकुमारी मीरा बाई ने कृष्ण–प्रेम पर अनेक पद लिखे, जिनमें विरह, समर्पण और प्रेम–उत्कटता व्यक्त होती है; वे वैष्णव भक्ति की प्रमुख कवयित्री हैं।
30. “रहिम के दोहे” किस ऐतिहासिक व्यक्तित्व से जुड़े हैं, जो अकबर के दरबार में भी उच्च पद पर थे?
उत्तर: अब्दुर्रहीम खानखाना (रहीम) से।
व्याख्या: रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक सेनानायक और कवि थे, जिन्होंने नीति, प्रेम, भक्ति आदि विषयों पर ब्रज/हिंदी में प्रसिद्ध दोहे लिखे।
व्याख्या: रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक सेनानायक और कवि थे, जिन्होंने नीति, प्रेम, भक्ति आदि विषयों पर ब्रज/हिंदी में प्रसिद्ध दोहे लिखे।
31. “रीख़्ता/रेक़्ता” शब्द मध्यकाल में किस भाषा/साहित्य के लिए प्रयुक्त हुआ, जो आगे चलकर उर्दू कहलाया?
उत्तर: मिश्रित हिंदवी–फारसी/उर्दू साहित्य के लिए।
व्याख्या: दिल्ली व दक्कन में विकसित मिश्रित भाषा, जिसमें फारसी, अरबी व स्थानीय बोलियों के शब्द थे, उसे पहले “रीख़्ता/रेक़्ता” कहा जाता था; यही आगे चलकर उर्दू साहित्य का आधार बनी।
व्याख्या: दिल्ली व दक्कन में विकसित मिश्रित भाषा, जिसमें फारसी, अरबी व स्थानीय बोलियों के शब्द थे, उसे पहले “रीख़्ता/रेक़्ता” कहा जाता था; यही आगे चलकर उर्दू साहित्य का आधार बनी।
32. अमीर खुसरो किस संत के शिष्य माने जाते हैं, जिनकी दरगाह दिल्ली में स्थित है?
उत्तर: हजरत निज़ामुद्दीन औलिया के।
व्याख्या: अमीर खुसरो सूफी संत निज़ामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य और शायर थे, जिनका साहित्य व संगीत सूफी–भक्ति की सांस्कृतिक धारा का प्रतीक है।
व्याख्या: अमीर खुसरो सूफी संत निज़ामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य और शायर थे, जिनका साहित्य व संगीत सूफी–भक्ति की सांस्कृतिक धारा का प्रतीक है।
33. “आदि ग्रंथ” (गुरु ग्रंथ साहिब) में कई किस प्रकार के भक्ति–कवियों के पद भी संकलित हैं – केवल सिख गुरु या अन्य संत भी?
उत्तर: सिख गुरुओं के साथ–साथ कबीर, नामदेव आदि अन्य संतों के भी।
व्याख्या: गुरु ग्रंथ साहिब में धार्मिक–साम्प्रदायिक सीमाओं से ऊपर उठकर कई संत–कवियों के भजन संकलित हैं, जो मध्यकालीन साझा सांस्कृतिक धारा को दर्शाते हैं।
व्याख्या: गुरु ग्रंथ साहिब में धार्मिक–साम्प्रदायिक सीमाओं से ऊपर उठकर कई संत–कवियों के भजन संकलित हैं, जो मध्यकालीन साझा सांस्कृतिक धारा को दर्शाते हैं।
34. “कृष्ण भक्ति” की वल्लभ संप्रदाय परम्परा में मुख्यतः किस भाषा/बोली में पद रचे गए – ब्रज, अवधी या फारसी?
उत्तर: ब्रज भाषा में।
व्याख्या: वल्लभाचार्य और उनके परम्परा–कवियों (जैसे सूर, नंददास आदि) ने श्रीकृष्ण की बाल–लीला, रास, नायिका–भेद आदि का वर्णन ब्रज भाषा के मधुर पदों में किया।
व्याख्या: वल्लभाचार्य और उनके परम्परा–कवियों (जैसे सूर, नंददास आदि) ने श्रीकृष्ण की बाल–लीला, रास, नायिका–भेद आदि का वर्णन ब्रज भाषा के मधुर पदों में किया।
35. “अरबी–फारसी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी–सदृश भाषा” को मध्यकाल में क्या कहा जाता था, जिसे आज उर्दू के पूर्वरूप के रूप में देखा जाता है?
उत्तर: रेख़्ता/हिंदवी।
व्याख्या: फ़ारसी लिपि में लिखी हिंदवी/रेख़्ता भाषा में फारसी–अरबी शब्दों का घनिष्ठ मिश्रण था, जो आगे चलकर उर्दू साहित्य की मुख्य भाषा बनी।
व्याख्या: फ़ारसी लिपि में लिखी हिंदवी/रेख़्ता भाषा में फारसी–अरबी शब्दों का घनिष्ठ मिश्रण था, जो आगे चलकर उर्दू साहित्य की मुख्य भाषा बनी।
36. “महाभारत” का फारसी अनुवाद अकबर के समय किस नाम से किया गया था?
उत्तर: रज़्मनामा।
व्याख्या: अकबर ने विभिन्न धर्मग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराया, जिसमें महाभारत का अनुवाद “रज़्मनामा” (युद्ध–ग्रंथ) नाम से प्रसिद्ध हुआ और चित्रित पांडुलिपि भी बनी।
व्याख्या: अकबर ने विभिन्न धर्मग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराया, जिसमें महाभारत का अनुवाद “रज़्मनामा” (युद्ध–ग्रंथ) नाम से प्रसिद्ध हुआ और चित्रित पांडुलिपि भी बनी।
37. “संगीत रत्नाकर” जैसा महत्त्वपूर्ण ग्रंथ किस विद्वान ने लिखा था (यद्यपि यह प्रारंभिक मध्यकालीन कृति है)?
उत्तर: पंडित शारंगदेव ने।
व्याख्या: संगीत रत्नाकर में संगीत के सैद्धांतिक पहलुओं, राग, ताल आदि का विस्तृत विवेचन है। आगे चलकर उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में इसका आधार–ग्रंथ के रूप में महत्व है।
व्याख्या: संगीत रत्नाकर में संगीत के सैद्धांतिक पहलुओं, राग, ताल आदि का विस्तृत विवेचन है। आगे चलकर उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में इसका आधार–ग्रंथ के रूप में महत्व है।
38. “राग–रागिनी चित्र–श्रृंखलाएँ” विशेष रूप से किस चित्रकला–परम्परा से अधिक जुड़ी हैं – मुगल या राजपूत/पहाड़ी?
उत्तर: राजपूत/पहाड़ी चित्रकला से।
व्याख्या: राजस्थानी व पहाड़ी चित्रकारों ने संगीत–रागों को मानवीकृत रूप में चित्रित किया, जिन्हें राग–रागिनी श्रृंखला कहा जाता है; यह संगीत व चित्रकला का सुंदर संयोजन है।
व्याख्या: राजस्थानी व पहाड़ी चित्रकारों ने संगीत–रागों को मानवीकृत रूप में चित्रित किया, जिन्हें राग–रागिनी श्रृंखला कहा जाता है; यह संगीत व चित्रकला का सुंदर संयोजन है।
39. “भक्ति–संत और सूफी–संत दोनों ने किस समान उद्देश्य के लिए लोक–भाषाओं का प्रयोग किया?”
उत्तर: सामान्य जनता तक आध्यात्मिक संदेश पहुँचाने के लिए।
व्याख्या: संस्कृत, अरबी, फारसी की विद्वत–परम्परा से बाहर निकलकर भक्ति व सूफी संतों ने अवधी, ब्रज, पंजाबी, राजस्थानी आदि बोलियों में रचनाएँ कीं, जिससे उनका संदेश आम जनता तक सीधे पहुँच सका।
व्याख्या: संस्कृत, अरबी, फारसी की विद्वत–परम्परा से बाहर निकलकर भक्ति व सूफी संतों ने अवधी, ब्रज, पंजाबी, राजस्थानी आदि बोलियों में रचनाएँ कीं, जिससे उनका संदेश आम जनता तक सीधे पहुँच सका।
40. “मध्यकालीन भारतीय संस्कृति” की सबसे बड़ी विशेषता क्या मानी जाती है – टकराव या सांस्कृतिक सम्मिश्रण (सिन्थेसिस)?
उत्तर: सांस्कृतिक सम्मिश्रण (सिन्थेसिस)।
व्याख्या: संगीत, चित्रकला, साहित्य, स्थापत्य – हर क्षेत्र में भारतीय, फारसी, तुर्क, मध्य एशियाई परम्पराएँ मिलकर नई “इंडो–इस्लामिक” मिश्रित संस्कृति गढ़ती हैं, जो मध्यकाल की पहचान बनती है।
व्याख्या: संगीत, चित्रकला, साहित्य, स्थापत्य – हर क्षेत्र में भारतीय, फारसी, तुर्क, मध्य एशियाई परम्पराएँ मिलकर नई “इंडो–इस्लामिक” मिश्रित संस्कृति गढ़ती हैं, जो मध्यकाल की पहचान बनती है।
41. “इकतारा और दोतारा” जैसे लोक–वाद्य मुख्यतः किस प्रकार की भक्ति–धारा के गायक–संतों से जुड़े हैं?
उत्तर: निर्गुण और लोक–भक्ति संतों (कबीर–पंथी, नाथ–साधु आदि) से।
व्याख्या: गाँव–देहात में घूम–घूमकर संदेश देने वाले संत–गायक सरल लोक–वाद्यों जैसे इकतारा/दोतारा के सहारे भजन, भजन–साखी गाते थे।
व्याख्या: गाँव–देहात में घूम–घूमकर संदेश देने वाले संत–गायक सरल लोक–वाद्यों जैसे इकतारा/दोतारा के सहारे भजन, भजन–साखी गाते थे।
42. “सूफी संगीत में उपयोग की जाने वाली सामूहिक गायन–शैली” को क्या कहा जाता है?
उत्तर: समा/कव्वाली।
व्याख्या: सूफी दरगाहों में होने वाले सामूहिक गायन को समा कहा जाता है, जहाँ कव्वाली के माध्यम से ईश्वर–प्रेम और सूफी–संदेश गाया जाता है; इसमें ताली/हाथ की लय भी महत्वपूर्ण होती है।
व्याख्या: सूफी दरगाहों में होने वाले सामूहिक गायन को समा कहा जाता है, जहाँ कव्वाली के माध्यम से ईश्वर–प्रेम और सूफी–संदेश गाया जाता है; इसमें ताली/हाथ की लय भी महत्वपूर्ण होती है।
43. “दोहा–चौपाई–सोरठा” की मिश्रित शैली विशेष रूप से किस हिंदी महाकाव्य में दिखाई देती है – रामचरितमानस या सूरत–शतक?
उत्तर: रामचरितमानस में।
व्याख्या: तुलसीदास ने रामचरितमानस में दोहा–चौपाई की अदल–बदल शैली अपनाई, साथ में कभी–कभी सोरठा भी प्रयोग किया, जिससे काव्य में विविध लय बनी रहती है।
व्याख्या: तुलसीदास ने रामचरितमानस में दोहा–चौपाई की अदल–बदल शैली अपनाई, साथ में कभी–कभी सोरठा भी प्रयोग किया, जिससे काव्य में विविध लय बनी रहती है।
44. “हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल” को सामान्यतः किस व्यापक ऐतिहासिक काल से जोड़ा जाता है – मध्यकाल, प्राचीन या आधुनिक?
उत्तर: मध्यकाल से।
व्याख्या: हिंदी साहित्य–इतिहास में भक्तिकाल (लगभग 14वीं–17वीं सदी) मध्यकालीन भारतीय इतिहास के साथ–साथ चलता है, जब सूफी–भक्ति, मुगल–संस्कृति और लोक–भाषाएँ फल–फूल रही थीं।
व्याख्या: हिंदी साहित्य–इतिहास में भक्तिकाल (लगभग 14वीं–17वीं सदी) मध्यकालीन भारतीय इतिहास के साथ–साथ चलता है, जब सूफी–भक्ति, मुगल–संस्कृति और लोक–भाषाएँ फल–फूल रही थीं।
45. परीक्षा की दृष्टि से “संगीत–चित्रकला–साहित्य” पढ़ते समय किन मुख्य की–वर्ड्स पर विशेष फोकस करना चाहिए?
उत्तर: तानसेन, अमीर खुसरो, ध्रुपद, कव्वाली, मुगल चित्रकला, हमज़ानामा, जहाँगीर की प्रकृति–चित्र शैली, राजपूत/पहाड़ी स्कूल, बाबरनामा, अकबरनामा, आइन–ए–अकबरी, तुज़ुक–ए–जहाँगीरी, कबीर, तुलसी, सूर, मीरा, रहीम, रेख़्ता/उर्दू आदि।
व्याख्या: PYQs में बार–बार इन्हीं नामों और शब्दों से जुड़े तथ्य पूछे जाते हैं; इसलिए रिवीजन करते समय इन्हें हाईलाइट कर अलग–से लिस्ट बनाकर याद रखना “हाई–स्कोर” रणनीति है।
व्याख्या: PYQs में बार–बार इन्हीं नामों और शब्दों से जुड़े तथ्य पूछे जाते हैं; इसलिए रिवीजन करते समय इन्हें हाईलाइट कर अलग–से लिस्ट बनाकर याद रखना “हाई–स्कोर” रणनीति है।
