Keyword: Jain Dharma Notes in Hindi
जैन धर्म श्रमण परंपरा से निकला एक प्राचीन धर्म है, जो मुख्यतः अहिंसा, अपरिग्रह, आत्मसंयम और कर्म सिद्धांत पर आधारित है। इसका विकास वैदिक ब्राह्मणवाद के समानांतर हुआ।
- कालखंड – मुख्य रूप से 6वीं–5वीं शताब्दी ई.पू. में जैन धर्म संगठित रूप में उभरता है।
- भौगोलिक क्षेत्र – बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मगध, अंग, विदेह, वज्जि महाजनपदों के क्षेत्र।
- जैन परंपरा में धर्म का प्रारंभ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) से माना जाता है, परन्तु ऐतिहासिक रूप से 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ और 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी स्पष्ट रूप से इतिहास में मिलते हैं।
Exam Tip: “Mahavira is not the founder of Jainism” – यह कथन बार-बार पूछा जाता है।
‘जैन’ शब्द जिन से बना है। जिन = जिसने इंद्रियों, मन व आसक्तियों पर विजय पायी हो।
- जिन = विजेता (Conqueror) ⇒ जो राग-द्वेष पर विजय पाए, वह जिन कहलाता है।
- जिन के अनुयायी = जैन।
- अंतिम लक्ष्य = मोक्ष / केवलज्ञान – जन्म-मरण के चक्र से पूर्ण मुक्ति।
जैन धर्म के अनुसार हर जीव (आत्मा) में अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत शक्ति की संभावना है, परंतु वह कर्मों के बंधन से ढका हुआ है।
Important for: UPSC / State PSC Pre + Mains
तीर्थंकर = वह महान आत्मा जो तीर्थ (धर्म का मार्ग) स्थापित करे और जीवों को मोक्ष की राह बताए।
- 1st तीर्थंकर – ऋषभदेव (आदिनाथ)
- प्रतीक चिह्न – बैल
- कथन – उन्होंने मानव को कृषि, लेखन, गणित, नगरी जीवन सिखाया (जैन परंपरा)।
- 23rd तीर्थंकर – पार्श्वनाथ
- जन्म – वाराणसी, पिता – अश्वसेन।
- चार महाव्रत – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह की शिक्षा।
- 24th तीर्थंकर – वर्धमान महावीर
- जैन धर्म को संगठित, प्रसारित करने वाले – परंतु संस्थापक नहीं।
- उन्होंने पाँचवाँ व्रत – ब्रह्मचर्य जोड़ा।
- जन्म – कुंडग्राम (वैशाली के निकट) में, ईसा पूर्व 540 के आसपास (परंपरानुसार)।
- पिता – सिद्धार्थ (लिच्छवि-क्षत्रिय), माता – त्रिशला / प्रियकरणी (लिच्छवि गण की राजकुमारी)।
- वंश – ज्ञातृक / नाथ वंश, गणराज्यीय पृष्ठभूमि।
- गृहस्थ जीवन – विवाह, एक पुत्री अनोया / प्रियदर्शना का उल्लेख।
- संन्यास – 30 वर्ष की आयु में समस्त संपत्ति त्यागकर श्रमण बन गए।
- तप व साधना – 12 वर्ष तक कठोर तपस्या, नग्न साधु के रूप में विचरण।
- केवलज्ञान (सर्वज्ञता) – 42 वर्ष की आयु में, जृम्भिकग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर प्राप्त हुआ।
- धर्मोपदेश अवधि – 30 वर्ष तक, मगध, वैशाली, मिथिला, चंपा, श्रावस्ती आदि में।
- निर्वाण – 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में।
Buddhist texts में Mahavira को “निगंठ नातपुत्त” कहा गया है – यह भी exam favourite है।
Conceptual Zone – MCQ + Mains दोनों में पूछताछ
- आत्मा (जीव) – अनादि, अनंत, चेतन तत्व। प्रत्येक जीव में अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख, शक्ति की क्षमता।
- अजीव – द्रव्य जो चेतन नहीं हैं – धर्म, अधर्म, आकाश, पदार्थ (पुद्गल), काल।
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कर्म सिद्धांत –
- कर्म = सूक्ष्म भौतिक कण जो आत्मा से चिपकते हैं।
- पाप-पुण्य दोनों ही कर्मबन्ध का कारण – अतः निर्लेपता आदर्श।
- मोक्ष – जब सभी कर्मकण आत्मा से झड़ जाते हैं, तो आत्मा सिद्ध लोक में स्थित होकर अनंत ज्ञान व सुख प्राप्त करती है।
रत्नत्रय = मोक्ष का मार्ग
- सम्यक दर्शन – सत्य व तत्त्वों में श्रद्धा।
- सम्यक ज्ञान – तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान, मिथ्या ज्ञान से मुक्त।
- सम्यक चरित्र – आचरण की शुद्धता, व्रतों का पालन।
पंच महाव्रत (विशेषकर मुनियों के लिए कठोर रूप में):
- अहिंसा – किसी भी जीव को हिंसा न करना (मन, वचन, कर्म से)।
- सत्य – असत्य भाषण से बचना।
- अस्तेय – चोरी न करना, अपरिग्रहित वस्तु न लेना।
- ब्रह्मचर्य – इंद्रिय संयम, काम से विरत। (पार्श्वनाथ के समय चार व्रत थे; महावीर ने इसे जोड़ा।)
- अपरिग्रह – वस्तुओं, धन, संबंधों में न्यूनतम आसक्ति।
गृहस्थ के लिए 12 व्रत – 5 अणुव्रत (लघु रूप), 3 गुणव्रत, 4 शिक्षाव्रत – Prelims में कभी-कभी पूछा जाता है।
- अनेकांतवाद – सत्य/वस्तु अनेक पक्षों से जानी जा सकती है; कोई भी एक दृष्टि पूर्ण नहीं। Reality is many-sided.
- स्यादवाद – “किसी दृष्टि से” – किसी कथन की सात संभावित अवस्थाएं (सप्तभंगी नय) – स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, स्यात् अस्ति-नास्ति, स्यात् अवक्तव्य आदि।
- नयवाद – किसी वस्तु को समझने के विभिन्न आंशिक दृष्टिकोण (नय) – जैसे द्रव्यार्थिक नय, पर्य्यायार्थिक नय आदि।
अनेकांतवाद पर परीक्षा में अक्सर MCQ आता है – इसे “Saptabhangi theory” से जोड़कर भी पूछा जाता है।
संघ = साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका का सुव्यवस्थित संगठन
- महावीर ने संघ को चार भागों में संगठित किया – मुनि, आर्यिका (साध्वी), श्रावक, श्राविका।
- प्रारंभिक जैन भिक्षु नग्न रहते थे – बाद में विभाजन।
मुख्य दो संप्रदाय (लगभग 1st century BCE–1st century CE के बीच विभाजन)
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दिगंबर
- दिगंबर = “दिग् + अंबर” (आकाश वस्त्र) – मुनि नग्न।
- महिला मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती; पहले पुरुष जन्म लेना होगा।
- मूल ग्रंथ → शतक, काषायपाहुड़ा आदि; बाद में समयसार (कुंदकुंदाचार्य)।
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श्वेतांबर
- श्वेतांबर = श्वेत वस्त्र धारण करने वाले।
- महिलाओं के मोक्ष में बाधा नहीं।
