गौतम बुद्ध का जीवन परिचय From Birth to Mahaparinirvana
गौतम बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ था। इनका जन्म लुम्बिनी (आधुनिक नेपाल) के पास 563 ईसा पूर्व (परंपरागत तिथि) में हुआ माना जाता है। इनके पिता शुद्धोदन शाक्य गण के प्रमुख (राजा नहीं, गणपति) थे और माता महामाया कोलिय वंश की राजकुमारी थीं।
जन्म के सात दिन बाद ही महामाया की मृत्यु हो गई, जिसके बाद सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया। सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा (नामान्तर – भद्दकच्छा) से हुआ और इनके पुत्र का नाम राहुल था।
महा-अभिनिष्क्रमण से बोधि-प्राप्ति तक
सिद्धार्थ को जीवन के दुःख, रोग, जरा और मृत्युदर्शन ने अत्यधिक व्यथित किया। 29 वर्ष की आयु में इन्होंने रात के समय घोड़ा कन्थक और सारथी चन्न के साथ गृहत्याग किया, जिसे बौद्ध परंपरा में “महा-अभिनिष्क्रमण” कहा जाता है।
इन्होंने विभिन्न आचार्यों से शिक्षा ली और फिर उरुवेला (बोधगया के पास) में कठोर तपस्या की। लगभग 6 वर्षों की तपस्या के बाद इन्हें यह बोध हुआ कि अत्यधिक तपस्या भी दुखों से मुक्ति का मार्ग नहीं है। इसके बाद इन्होंने मध्य मार्ग अपनाया।
प्रथम उपदेश और धर्मचक्र-प्रवर्तन
बोधि प्राप्ति के बाद बुद्ध ने सर्वप्रथम सारनाथ (ऋषिपत्तन, मृगदाव) में अपने पूर्व साथियों को प्रथम उपदेश दिया। यह घटना “धर्मचक्र-प्रवर्तन” कहलाती है।
बुद्ध के प्रथम पाँच शिष्य – कौण्डिन्य, अश्वज्जित, वप्प, भद्दिय, महामान थे। इनके द्वारा बौद्ध संघ का प्रारंभिक स्वरूप बना।
चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) Core Philosophy
- दुःख: संसार में जन्म, जरा, रोग, मृत्यु आदि सब दुःखमय हैं।
- दुःख-समुदय: तृष्णा (कामना, आसक्ति) ही दुःख का कारण है।
- दुःख-निरोध: तृष्णा के त्याग से दुःख का पूर्ण नाश सम्भव है।
- दुःख-निरोध मार्ग: अष्टांगिक मार्ग के द्वारा दुःख-निरोध सम्भव है।
आर्य अष्टांगिक मार्ग
बुद्ध ने अति भोग-विलास और अति तपस्या – दोनों के विरुद्ध मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया और आर्य अष्टांगिक मार्ग को दुःख-निरोध का व्यावहारिक साधन बताया:
- सम्यक दृष्टि (Right View)
- सम्यक संकल्प (Right Resolve)
- सम्यक वाक (Right Speech)
- सम्यक कर्मांत (Right Action)
- सम्यक आजीव (Right Livelihood)
- सम्यक व्यायाम (Right Effort)
- सम्यक स्मृति (Right Mindfulness)
- सम्यक समाधि (Right Concentration)
त्रिरत्न, पंचशील एवं बौद्ध संघ
1. बुद्ध – जाग्रत, आदर्श पुरुष
2. धम्म (धर्म) – उपदेशों की संहिता
3. संघ – भिक्षु समुदाय
बौद्ध अनुयायी “बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि” का उच्चारण करते हैं।
पंचशील: सामान्य गृहस्थ अनुयायी के लिए पाँच नैतिक नियम –
- प्राणी हिंसा न करना
- चोरी न करना
- कुशील (कुसंगत) कामों में न पड़ना
- झूठ न बोलना
- मद्य-पान / नशा न करना
बुद्ध के समय बौद्ध संघ अनुशासित भिक्षु-संघ के रूप में विकसित हुआ। संघ में प्रवेश की न्यूनतम आयु प्रायः 20 वर्ष मानी जाती है। स्त्रियों के संघ में प्रवेश के लिए आनंद ने विशेष आग्रह किया; अंततः महाप्रजापति गौतमी पहली भिक्षुणी बनीं।
बुद्ध का महापरिनिर्वाण
बुद्ध ने लगभग 45 वर्ष तक उपदेश दिया और अंततः 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर (कुशीनारा) में उनका महापरिनिर्वाण हुआ (परंपरागत तिथि – लगभग 483 ईसा पूर्व के आसपास मानी जाती है)। कुशीनगर आधुनिक उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मंडल में स्थित है।
महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ एवं त्रिपिटक
बौद्ध साहित्य का प्राचीनतम एवं मूल रूप पाली भाषा में उपलब्ध है जिसे “त्रिपिटक” कहा जाता है – विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक।
- विनय पिटक: संघ के अनुशासन, नियम, भिक्षुओं / भिक्षुणियों के आचार-विचार से संबंधित।
- सुत्त पिटक: बुद्ध एवं प्रमुख भिक्षुओं के उपदेश, संवाद, धार्मिक कथाएँ – इसमें धम्मपद जैसी रचनाएँ शामिल हैं।
- अभिधम्म पिटक: दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक एवं तात्त्विक व्याख्याएँ; बौद्ध सिद्धांतों का विश्लेषणात्मक रूप।
ललितविस्तर, महावस्तु, दिव्यावदान – बुद्ध के जीवन वृत्तांत एवं कथाओं पर आधारित।
महायान ग्रंथ: प्रज्ञापारमिता, लंकावतार, सुखावतीव्यूह आदि।
हिनयान (थेरवाद) एवं महायान
समय के साथ बौद्ध धर्म दो प्रमुख धाराओं में विभाजित हुआ – हिनयान (थेरवाद) एवं महायान।
- हिनयान / थेरवाद: प्रारंभिक, अधिक परंपरावादी; व्यक्तिगत मोक्ष (अरहंत आदर्श) पर बल; पाली ग्रंथ; श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड आदि में प्रचलित।
- महायान: बोधिसत्त्व आदर्श, करुणा, सभी प्राणियों के मोक्ष पर बल; संस्कृत साहित्य; चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत आदि में विकसित।
बौद्ध परिषदें – First से Fourth Council तक
• स्थान – राजगृह (सप्तपर्णी गुफा)
• समय – बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद (लगभग 483–477 ई.पू.)
• अध्यक्ष – महाकश्यप
• संरक्षक – अजातशत्रु (मगध शासक)
• उद्देश्य – बुद्ध के उपदेशों का मौखिक संकलन – उपदेश (सुत्त) ~ आनंद द्वारा, विनय ~ उपालि द्वारा।
• स्थान – वैशाली
• समय – लगभग 100 वर्ष बाद (c. 383 ई.पू. अनुमानित)
• संरक्षक – कालाशोक (शिशुनाग वंश)
• मुख्य कारण – संघ के भीतर अनुशासन (विनय) से संबंधित मतभेद, भिक्षुओं द्वारा 10 विवादित आचरण।
• परिणाम – बौद्ध संघ में प्रारंभिक विभाजन की पृष्ठभूमि (स्थविरवाद बनाम महासांघिक)।
• स्थान – पाटलिपुत्र (अशोक की राजधानी)
• समय – अशोक के शासनकाल में (c. 250 ई.पू. के आसपास)
• अध्यक्ष – मोग्गलिपुत्त तिस्स
• उद्देश्य – संघ को शुद्ध करना, बाहरी विचारों का निष्कासन, सिद्धांतों का पुनर्निर्धारण।
• ग्रंथ – परंपरा के अनुसार कथावत्थु (अभिधम्म पिटक का भाग) का संबंध इस परिषद से जोड़ा जाता है।
• स्थान – श्रीलंका (अलुविहारे)
• समय – लगभग 1वीं शताब्दी ई.पू.
• महत्व – पहली बार त्रिपिटक को ताड़पत्रों पर लिखित रूप में संकलित किया गया (पाली टिपिटक)।
चतुर्थ बौद्ध परिषद (कनिष्क, महायान परंपरा)
• स्थान – कश्मीर (कंदवलवन / कुण्डलवन)
• संरक्षक – कुषाण सम्राट कनिष्क
• अध्यक्ष – परंपरा अनुसार वसू्मित्र (या पार्श्व आदि का उल्लेख)
• महत्व – महायान विचारों को संगठित रूप; संस्कृत बौद्ध साहित्य की उन्नति।
परीक्षा हेतु मुख्य बिंदु (UPSC / State PSC / SSC)
- जन्म – लुम्बिनी; पिता – शुद्धोदन (शाक्य गण); माता – महामाया; पालन – महाप्रजापति गौतमी।
- विवाह – यशोधरा; पुत्र – राहुल; गृहत्याग – 29 वर्ष; बोधि – 35 वर्ष (उरुवेला, बोधगया)।
- प्रथम उपदेश – सारनाथ (धर्मचक्र-प्रवर्तन); प्रथम पाँच शिष्य – कौण्डिन्य प्रमुख।
- त्रिरत्न, पंचशील, अष्टांगिक मार्ग – नैतिक / व्यावहारिक आधार।
- महापरिनिर्वाण – कुशीनगर, लगभग 80 वर्ष की आयु।
- त्रिपिटक – विनय, सुत्त, अभिधम्म; धम्मपद – पाली भाषा में।
- प्रथम परिषद – राजगृह (महाकश्यप); द्वितीय – वैशाली; तृतीय – पाटलिपुत्र (अशोक); चतुर्थ – कश्मीर (कनिष्क) एवं श्रीलंका (लिखित टिपिटक)।
- हिनयान / थेरवाद – अरहंत आदर्श; महायान – बोधिसत्त्व आदर्श, करुणा और सार्वभौमिक मोक्ष।
बौद्ध धर्म – Quick Revision Points
- गौतम बुद्ध का जन्म – लुम्बिनी, 563 ई.पू. (परंपरा)।
- पिता शुद्धोदन – शाक्य गण के प्रमुख, राजधानी – कपिलवस्तु।
- माता – महामाया; पालन-पोषण – महाप्रजापति गौतमी।
- बुद्ध का बाल्यनाम – सिद्धार्थ; जातक कथाएँ – पूर्वजन्म कथाएँ।
- विवाह – यशोधरा; पुत्र – राहुल।
- गृहत्याग (महा-अभिनिष्क्रमण) – 29 वर्ष, घोड़ा – कन्थक, सारथी – चन्न।
- कठोर तपस्या – लगभग 6 वर्ष; स्थान – उरुवेला (बोधगया के आसपास)।
- बोधि-प्राप्ति – 35 वर्ष, बोधगया; नीरंजना नदी के तट पर पीपल वृक्ष के नीचे।
- प्रथम उपदेश – सारनाथ (ऋषिपत्तन, मृगदाव); घटना – धर्मचक्र-प्रवर्तन।
- प्रथम पाँच शिष्य – कौण्डिन्य, वप्प, भद्दिय, महनाम, अश्वज्जित।
- बुद्ध का मुख्य मार्ग – मध्यम मार्ग (Middle Path)।
- चार आर्य सत्य – दुःख, दुःख-समुदय, दुःख-निरोध, दुःख-निरोध मार्ग।
- आर्य अष्टांगिक मार्ग – सम्यक दृष्टि से सम्यक समाधि तक आठ अंग।
- त्रिरत्न – बुद्ध, धम्म, संघ।
- पंचशील – हिंसा, चोरी, कुशील काम, झूठ, नशा – से विरत रहना।
- महापरिनिर्वाण – कुशीनगर, 80 वर्ष की आयु के आस-पास।
- प्रथम परिषद – राजगृह; अध्यक्ष – महाकश्यप; संरक्षक – अजातशत्रु।
- द्वितीय परिषद – वैशाली; संरक्षक – कालाशोक; विनय विवाद।
- तृतीय परिषद – पाटलिपुत्र; संरक्षक – अशोक; अध्यक्ष – मोग्गलिपुत्त तिस्स।
- चतुर्थ परिषद (कनिष्क) – कश्मीर; महायान की उन्नति।
- चतुर्थ परिषद (श्रीलंका) – अलुविहारे; त्रिपिटक का लिखित संकलन (पाली में)।
- त्रिपिटक – विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक।
- धम्मपद – पाली भाषा में नैतिक पद्यग्रंथ।
- ललितविस्तर, महावस्तु, दिव्यावदान – बुद्धचरित एवं कथाएँ (संस्कृत / मिश्रित)।
- हिनयान / थेरवाद – श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड आदि में प्रचलित।
- महायान – चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत आदि में विकसित।
- हिनयान – अरहंत आदर्श; महायान – बोधिसत्त्व आदर्श।
- अशोक – धम्म नीति, स्तम्भ / शिलालेख, बौद्ध धर्म का विशाल प्रसार।
- बुद्ध ने पशुबलि, वर्ण-आधारित ऊँच-नीच, और कर्मकांड का विरोध किया।
- बौद्ध धर्म – तर्कसंगत, आचरण-प्रधान, सामाजिक समता पर आधारित धर्म।
One Liner PYQs – बौद्ध धर्म (40 प्रश्न) Show / Hide Answers
उत्तर: लुम्बिनी (आधुनिक नेपाल)।
संक्षिप्त व्याख्या: लुम्बिनी शाक्य गण के क्षेत्र में स्थित था; यहीं अशोक का स्तम्भलेख भी मिलता है जो बुद्ध जन्मस्थल की पुष्टि करता है।
उत्तर: सिद्धार्थ।
संक्षिप्त व्याख्या: सिद्धार्थ का अर्थ है – “जिसकी सिद्धि हो चुकी हो”; यही आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए।
उत्तर: शाक्य गण के।
संक्षिप्त व्याख्या: शाक्य एक गणतंत्रीय समुदाय था; शुद्धोदन गणप्रमुख थे, इसलिए उन्हें गणपति माना जाता है।
उत्तर: महाप्रजापति गौतमी ने।
संक्षिप्त व्याख्या: महाप्रजापति गौतमी बुद्ध की मौसी थीं; बाद में पहली भिक्षुणी के रूप में बौद्ध संघ में सम्मिलित हुईं।
उत्तर: पत्नी – यशोधरा, पुत्र – राहुल।
संक्षिप्त व्याख्या: गृहत्याग के समय राहुल शैशवावस्था में थे; बौद्ध साहित्य में इन्हें प्रतीकात्मक रूप से “बंधन” के रूप में भी लिया गया।
उत्तर: लगभग 29 वर्ष की आयु में।
संक्षिप्त व्याख्या: वैराग्य की भावना वृद्ध, रोगी, मृतक और संन्यासी को देखकर उत्पन्न हुई; इन्हें ‘चतुर्दर्शन’ कहा जाता है।
उत्तर: लगभग 6 वर्ष तक।
संक्षिप्त व्याख्या: उरुवेला क्षेत्र में अत्यधिक तप के बाद उन्होंने समझा कि अत्याचारपूर्ण तपस्या भी समाधान नहीं है, तभी मध्यम मार्ग का विचार विकसित हुआ।
उत्तर: उरुवेला (बोधगया), नीरंजना नदी के तट पर पीपल वृक्ष के नीचे।
संक्षिप्त व्याख्या: यही पीपल वृक्ष आगे चलकर ‘बोधि वृक्ष’ कहलाया; बौद्ध तीर्थों में इसका विशेष महत्व है।
उत्तर: सारनाथ (ऋषिपत्तन, मृगदाव)।
संक्षिप्त व्याख्या: यहीं से बौद्ध धर्म का संघ रूप में खुला प्रचार प्रारंभ हुआ; इसे धर्मचक्र-प्रवर्तन कहा जाता है।
उत्तर: धर्मचक्र-प्रवर्तन।
संक्षिप्त व्याख्या: इसका अर्थ है – धर्म के चक्र को गति देना; बौद्ध प्रतीक चक्र (धम्मचक्र) इसी से जुड़ा है।
उत्तर: मध्यम मार्ग।
संक्षिप्त व्याख्या: बुद्ध ने अति भोग और अति तप – दोनों की निन्दा कर मध्यम मार्ग को अपनाने पर बल दिया।
उत्तर: स्वयं गौतम बुद्ध द्वारा।
संक्षिप्त व्याख्या: चार आर्य सत्य – दुख, दुखसमुदय, दुखनिरोध, दुखनिरोध मार्ग – बुद्ध दर्शन की नींव हैं।
उत्तर: आठ।
संक्षिप्त व्याख्या: सम्यक दृष्टि से सम्यक समाधि तक आठ व्यावहारिक साधन – नैतिक, मानसिक और प्रज्ञात्मक विकास के लिए।
उत्तर: बुद्ध, धम्म (धर्म), संघ।
संक्षिप्त व्याख्या: शरण ग्रहण की मूल पंक्ति – “बुद्धं, धम्मं, संघं शरणं गच्छामि” – इन्हीं त्रिरत्नों का संकेत करती है।
उत्तर: लगभग 20 वर्ष।
संक्षिप्त व्याख्या: विनय पिटक के अनुसार संघ में प्रवेश के लिए परिपक्व आयु आवश्यक मानी गई; इससे अनुशासन एवं स्थिरता बनी रहती थी।
उत्तर: आनंद ने।
संक्षिप्त व्याख्या: आनंद बुद्ध के प्रिय शिष्य थे; उनके आग्रह पर ही महाप्रजापति गौतमी के नेतृत्व में स्त्री संघ की स्थापना हुई।
उत्तर: कुशीनगर (कुशीनारा)।
संक्षिप्त व्याख्या: कुशीनगर आधुनिक उत्तर प्रदेश में स्थित है; यह बौद्धों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
उत्तर: राजगृह (सप्तपर्णी गुफा) में।
संक्षिप्त व्याख्या: यह परिषद बुद्ध के निर्वाण के तुरंत बाद अजातशत्रु के संरक्षण में हुई; अध्यक्ष महाकश्यप थे।
उत्तर: महाकश्यप।
संक्षिप्त व्याख्या: इन्होंने विभिन्न भिक्षुओं से बुद्ध के उपदेशों का मौखिक संकलन कराया; आनंद व उपालि की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही।
उत्तर: वैशाली।
संक्षिप्त व्याख्या: कालाशोक के समय विनय संबंधी मतभेदों के कारण यह परिषद आयोजित हुई; यहीं से संघ में विभाजन की पृष्ठभूमि बनी।
उत्तर: सम्राट अशोक के संरक्षण में।
संक्षिप्त व्याख्या: पाटलिपुत्र में हुई इस परिषद का उद्देश्य संघ को शुद्ध करना तथा भिन्न विचारधाराओं को अलग करना था।
उत्तर: मोग्गलिपुत्त तिस्स।
संक्षिप्त व्याख्या: इन्हीं के नाम से कथावत्थु ग्रंथ का संबंध बताया जाता है जो अभिधम्म पिटक का भाग माना जाता है।
उत्तर: तृतीय बौद्ध परिषद (पाटलिपुत्र) से।
संक्षिप्त व्याख्या: यह ग्रंथ दार्शनिक मतभेदों को स्पष्ट करता है; अभिधम्म पिटक के अंतर्गत लिया जाता है।
उत्तर: कुषाण सम्राट कनिष्क से।
संक्षिप्त व्याख्या: महायान परंपरा के अनुसार इस परिषद में संस्कृत बौद्ध साहित्य को बढ़ावा मिला और महायान विचार सुदृढ़ हुए।
उत्तर: चतुर्थ बौद्ध परिषद (अलुविहारे, श्रीलंका) से।
संक्षिप्त व्याख्या: यहाँ पाली भाषा में त्रिपिटक को ताड़पत्रों पर लिखित रूप में संकलित किया गया – यह बौद्ध साहित्य के संरक्षण की बड़ी घटना है।
उत्तर: हिनयान (थेरवाद) और महायान।
संक्षिप्त व्याख्या: थेरवाद अपेक्षाकृत प्राचीन परंपरा; महायान में बोधिसत्त्व आदर्श और सार्वभौमिक मोक्ष पर बल है।
उत्तर: महायान बौद्ध धर्म की।
संक्षिप्त व्याख्या: बोधिसत्त्व स्वयं निर्वाण प्राप्त कर सकता है, पर करुणा से सभी प्राणियों की मुक्ति हेतु संसार में रहता है।
उत्तर: सुत्त पिटक में।
संक्षिप्त व्याख्या: सुत्त पिटक में बुद्ध और प्रमुख शिष्यों के प्रवचन, संवाद, कथाएँ आदि संकलित हैं।
उत्तर: विनय पिटक में।
संक्षिप्त व्याख्या: विनय पिटक में भिक्षु एवं भिक्षुणी के आचार, अपराधों तथा प्रायश्चित विधानों का विस्तृत वर्णन है।
उत्तर: अभिधम्म पिटक में।
संक्षिप्त व्याख्या: इसमें धम्मों का विश्लेषण, चित्त की अवस्थाएँ और तात्त्विक व्याख्याएँ दी गई हैं।
उत्तर: पाली भाषा में।
संक्षिप्त व्याख्या: धम्मपद नैतिक उपदेशों का पद्य संग्रह है; यह सुत्त पिटक (खुद्धक निकाय) का भाग है।
उत्तर: बुद्धचरित एवं कथात्मक (आख्यानात्मक) ग्रंथ।
संक्षिप्त व्याख्या: ये मुख्यतः संस्कृत या मिश्रित भाषाओं में उपलब्ध हैं और महायान/अन्य परंपराओं से जुड़े हैं।
उत्तर: गृहस्थ अनुयायियों के लिए मूल नैतिक आचार संहिता देना।
संक्षिप्त व्याख्या: पंचशील हिंसा, चोरी, कुकर्म, झूठ और नशे से दूर रहने की शिक्षा देता है, जिससे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन संतुलित रहे।
उत्तर: वह जिसने क्लेशों का पूर्ण नाश कर मोक्ष प्राप्त कर लिया हो।
संक्षिप्त व्याख्या: थेरवाद/हिनयान परंपरा में अरहंत आदर्श को सर्वोच्च माना गया; वहीं महायान में बोधिसत्त्व आदर्श प्रमुख है।
उत्तर: तृष्णा, द्वेष, अज्ञान आदि कलुषों का पूर्ण शांत हो जाना।
संक्षिप्त व्याख्या: निर्वाण केवल मृत्यु नहीं, बल्कि मानसिक/आध्यात्मिक अवस्था है जिसमें दुख का पूर्ण अंत हो जाता है।
उत्तर: बुद्ध ने कर्मकांड, यज्ञीय पशुबलि और अंधविश्वास का विरोध किया।
संक्षिप्त व्याख्या: उन्होंने नैतिक आचरण, करुणा और सम्यक दृष्टि को महत्व दिया, जिससे आम जन के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ी।
उत्तर: बौद्ध धर्म (विशेषतः नैतिक धम्म) का।
संक्षिप्त व्याख्या: अहिंसा, करुणा, समदृष्टि, दया, जीवों के प्रति सद्व्यवहार जैसे मूल्यों पर बल – बौद्ध नैतिकता से प्रेरित हैं।
उत्तर: श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया आदि में।
संक्षिप्त व्याख्या: इन क्षेत्रों में पाली त्रिपिटक और भिक्षु-संघ की परंपरा आज भी सक्रिय रूप से चल रही है।
उत्तर: चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया आदि में।
संक्षिप्त व्याख्या: रेशम मार्ग के माध्यम से महायान परंपरा फैली; यहाँ स्थानीय संस्कृति के साथ मिलकर विविध संप्रदाय बने।
उत्तर: लोकभाषा (पाली/प्राकृत) का प्रयोग व संघ-संगठन – दोनों ने।
संक्षिप्त व्याख्या: सरल भाषा में उपदेश और अनुशासित संघ-व्यवस्था के कारण बौद्ध धर्म आम जनता तक आसानी से पहुँचा।
