Complete Smart Notes: मानसून तंत्र, एल-नीनो, ला-नीना एवं PYQs
यह वायुमंडल की अल्पकालिक (Short-term) अवस्था है। यह दिन में कई बार बदल सकता है (जैसे- सुबह धूप, शाम को बारिश)।
किसी स्थान के मौसम की दीर्घकालिक (Long-term, लगभग 30-35 वर्ष) औसत अवस्था को जलवायु कहते हैं।
🌦️ भारत की जलवायु का स्वरूप
भारत की जलवायु में विषुवतीय (Equatorial) और मानसूनी दोनों विशेषताएं मिलती हैं। कर्क रेखा (23.5° N) भारत के बीच से गुजरती है, जो इसे दो तापीय क्षेत्रों में बाँटती है—उत्तर में शीतोष्ण और दक्षिण में उष्ण।
💎 भारत की जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ
भारत में एक ओर राजस्थान के चूरू में तापमान 50°C तक पहुँच जाता है, वहीं दूसरी ओर लद्दाख के द्रास में यह -45°C तक गिर जाता है। यह विविधता भारत की विशालता को दर्शाती है।
मेघालय के मासिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा (1100 cm+) होती है, जबकि राजस्थान के जैसलमेर में 10-12 cm भी मुश्किल से होती है। भारत की 75% से अधिक वर्षा केवल 4 महीनों (जून-सितंबर) में होती है।
हिमालय उत्तर से आने वाली मध्य एशियाई ठंडी हवाओं को रोकता है, जिससे भारत में कड़ाके की ठंड नहीं पड़ती। साथ ही, यह मानसूनी हवाओं को रोककर पूरे उत्तर भारत में वर्षा कराता है।
तटीय क्षेत्रों (जैसे मुंबई, चेन्नई) में 'सम जलवायु' (Moderate) रहती है, जबकि दिल्ली जैसे आंतरिक क्षेत्रों में 'विषम जलवायु' (Extreme) होती है—यहाँ गर्मी में भयंकर गर्मी और सर्दी में कड़ाके की ठंड पड़ती है।
भारत की जलवायु को समझने के लिए केवल 'मानसून' काफी नहीं है। यह Tropic of Cancer (कर्क रेखा) द्वारा विभाजित होने के बावजूद एक इकाई के रूप में व्यवहार करती है, जिसका मुख्य कारण भौगोलिक अवरोध (Geographical Barriers) हैं।
🏗️ 1. जलवायु को नियंत्रित करने वाले वृहद कारक (Macro Factors)
UPSC अक्सर पूछता है कि यदि हिमालय न होता तो क्या होता?
• अवरोधक: यह साइबेरिया से आने वाली घातक ठंडी ध्रुवीय हवाओं (Arctic Winds) को रोककर भारत को एक 'जमे हुए मरुस्थल' बनने से बचाता है।
• आर्द्रता संचयन: यह बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी पवनों को कैद कर लेता है, जिससे उत्तर भारत के विशाल मैदान में वृष्टि (Precipitation) सुनिश्चित होती है।
मानसून का मूल 'थर्मल इंजन' यहीं से शुरू होता है। गर्मी के मौसम में भारतीय उपमहाद्वीप का स्थल भाग तेजी से गर्म होकर Low Pressure (निम्न वायुदाब) बनाता है, जबकि हिंद महासागर अपेक्षाकृत ठंडा होने के कारण High Pressure (उच्च वायुदाब) बनाए रखता है। पवनें हमेशा High से Low की ओर चलती हैं, यही मानसून का आधार है।
🛰️ 2. उच्च वायुमंडलीय परिसंचरण (Upper Air Circulation)
- पश्चिमी जेट स्ट्रीम (Western Jet Stream): यह सर्दियों में उत्तर भारत में 'पश्चिमी विक्षोभ' (Western Disturbances) लाती है, जो रबी की फसल (गेहूँ) के लिए वरदान है।
- पूर्वी जेट स्ट्रीम (Tropical Easterly Jet): यह गर्मी के अंत में तिब्बत के पठार के गर्म होने से पैदा होती है और मानसून के अचानक फटने (Burst of Monsoon) के लिए जिम्मेदार है।
🗺️ 3. ITCZ (Inter-Tropical Convergence Zone) का खिसकाव
🌡️ 1. तापीय सिद्धांत (Halley's Classical Theory)
1686 में एडमंड हैली ने बताया कि मानसून 'थल और जल के समीर' (Land and Sea Breeze) का ही एक विशाल रूप है।
- ग्रीष्म ऋतु: उत्तर भारत का मैदान (विशेषकर थार मरुस्थल) गर्म होकर Intense Low Pressure बनाता है।
- परिणाम: हिंद महासागर के उच्च वायुदाब से हवाएं इस खालीपन को भरने के लिए दौड़ती हैं।
- सीमा (Limitation): यह सिद्धांत यह नहीं बता पाता कि मानसून अचानक 'Burst' क्यों होता है या इसमें 'Break' क्यों आता है।
🌍 2. गतिक सिद्धांत (Flohn's Dynamic Theory - ITCZ)
गर्मियों में जब सूर्य उत्तरायण (Northward) होता है, तो ITCZ खिसककर 20°-25° N (गंगा के मैदान) पर आ जाता है। इसे ही 'Monsoon Trough' कहते हैं। इसी खिंचाव के कारण दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें (SE Trade Winds) भूमध्य रेखा पार करती हैं और पृथ्वी के घूर्णन (Coriolis Force) के कारण दाहिनी ओर मुड़कर दक्षिण-पश्चिम मानसून बन जाती हैं।
✈️ 3. जेट स्ट्रीम सिद्धांत (Koteswaram's Theory)
आधुनिक भूगोलवेत्ता मानते हैं कि मानसून का असली 'स्विच' 12 किमी ऊपर वायुमंडल में है:
गर्मियों में तिब्बत का पठार एक 'ऊपरी ऊष्मा स्रोत' की तरह काम करता है। यहाँ से गर्म हवाएं ऊपर उठती हैं और दक्षिण की ओर मुड़कर Tropical Easterly Jet (TEJ) बनाती हैं।
TEJ हवाएं मेडागास्कर के पास नीचे बैठती हैं और वहाँ High Pressure को और मजबूत करती हैं, जिससे मानसून पवनों को भारत की ओर धकेलने में 'बूस्टर' मिलता है।
🌊 4. इंडियन ओशन डिपोल (Indian Ocean Dipole - IOD)
• Positive IOD: पश्चिमी हिस्सा गर्म होता है। यह भारत में भीषण वर्षा लाता है (भले ही El-Nino हो)।
• Negative IOD: पूर्वी हिस्सा गर्म होता है। इससे भारत में सूखा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
⏳ 5. मानसून का फटना vs मानसून ब्रेक
• Monsoon Burst: जून के पहले सप्ताह में जब आर्द्रता भरी हवाएं अचानक बिजली कड़कने के साथ भारी वर्षा करती हैं। इसका मुख्य कारण 'उप-उष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम' का हिमालय के उत्तर में खिसकना है।
• Monsoon Break: जब मानसून के दौरान 1-2 सप्ताह तक वर्षा बिल्कुल नहीं होती। यह तब होता है जब 'Monsoon Trough' हिमालय की तलहटी की ओर खिसक जाता है।
🏔️ 1. तिब्बत के पठार की भूमिका (The Thermal Engine)
UPSC के लिए यह समझना जरूरी है कि तिब्बत का पठar (औसत ऊँचाई 4000m+) मानसून का 'स्विच' क्यों है:
- Heating Effect: गर्मियों में यह पठार सूर्य की किरणों से अत्यधिक गर्म हो जाता है। यह हवा को गर्म करके ऊपर की ओर धकेलता है।
- Upper Air Anti-Cyclone: ऊपर उठती हुई यह गर्म हवा वायुमंडल के ऊपरी भाग (Troposphere) में एक 'प्रति-चक्रवात' बनाती है।
- Tropical Easterly Jet (TEJ): यही हवा दक्षिण की ओर मुड़कर 'उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम' के रूप में चलती है और मेडागास्कर के पास नीचे बैठती है, जिससे भारतीय मानसून को पीछे से 'धक्का' (Push) मिलता है।
🛰️ 2. जेट स्ट्रीम का विस्थापन (Jet Stream Shift)
Sub-Tropical Westerly Jet (STWJ) हिमालय के दक्षिण में बहती है, जो मानसून को भारत आने से रोकती है।
जून में यह जेट स्ट्रीम अचानक हिमालय के उत्तर (तिब्बत की ओर) खिसक जाती है। इसके हटते ही मानसून भारत में 'प्रस्फोट' (Burst) के साथ प्रवेश करता है।
⚖️ 3. कोरिओलिस बल और फेरल का नियम
🌡️ 4. सोमाली जेट (Somali Jet)
अफ्रीका के पूर्वी तट (सोमालिया) के पास चलने वाली यह तीव्र समुद्री हवा मानसून पवनों को भारत की ओर और भी तेजी से खींचती है। यदि सोमाली जेट कमजोर हो, तो भारत में मानसून की गति धीमी हो जाती है।
🌊 5. मानसून का प्रस्फोट (Monsoon Burst) vs विच्छेद (Break)
• मानसून विच्छेद (Break): जब मानसून ट्रफ (Monsoon Trough) हिमालय की तराई की ओर खिसक जाता है, तो मैदानी भागों में 2-3 हफ्ते वर्षा रुक जाती है। इसे 'मानसून का ब्रेक' कहते हैं।
🌊 1. अरब सागर की शाखा (Arabian Sea Branch)
यह शाखा बंगाल की खाड़ी की तुलना में अधिक शक्तिशाली होती है क्योंकि अरब सागर का आकार बड़ा है। यह तीन उप-शाखाओं में विभाजित होती है:
ये हवाएं पश्चिमी घाट से टकराकर 'पर्वतीय वर्षा' (Orographic Rainfall) करती हैं।
• Windward Side: मुंबई और कोंकण में भारी वर्षा (250cm+)।
• Leeward Side (वृष्टि छाया क्षेत्र): पुणे और महाबलेश्वर के पूर्व में वर्षा बहुत कम होती है क्योंकि हवाएं नीचे उतरते समय शुष्क हो जाती हैं।
यह शाखा विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच से होकर मध्य भारत में प्रवेश करती है और अमरकंटक के पठार तक वर्षा करती है।
UPSC Question: राजस्थान सूखा क्यों है?
1. अरावली पर्वतमाला मानसून पवनों के समानांतर (Parallel) स्थित है, जिससे हवाएं बिना टकराए निकल जाती हैं।
2. यहाँ की गर्मी के कारण आर्द्रता वाष्पित हो जाती है और 'Saturation' नहीं हो पाता।
🚩 2. बंगाल की खाड़ी की शाखा (Bay of Bengal Branch)
यह शाखा म्यांमार के तट और उत्तर-पूर्वी भारत की ओर बढ़ती है।
- मेघालय का जादू: गारो, खासी और जयंतिया पहाड़ियों की कीपाकार (Funnel) आकृति के कारण हवाएं यहाँ फंस जाती हैं। परिणाम: मासिनराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा।
- गंगा का मैदान: यह शाखा हिमालय से टकराकर पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। जैसे-जैसे यह पश्चिम (UP, दिल्ली, पंजाब) की ओर बढ़ती है, इसकी नमी कम होती जाती है। यही कारण है कि कोलकाता में वर्षा अधिक और दिल्ली में कम होती है।
🍂 3. लौटता हुआ मानसून (North-East Monsoon)
🔥 1. एल-नीनो (El-Nino): मानसून का दुश्मन
स्पेनिश भाषा में इसका अर्थ है 'नन्हा बालक' (Child Christ)। यह पूर्वी प्रशांत महासागर (पेरू के तट) के पानी का असामान्य रूप से गर्म होना है।
- एल-नीनो के कारण 'वॉकर सर्कुलेशन' (Walker Circulation) कमजोर हो जाता है।
- हवाओं का दबाव भारत के बजाय प्रशांत महासागर की ओर शिफ्ट हो जाता है।
- परिणाम: भारत में मानसून कमजोर पड़ता है, जिससे अक्सर सूखा (Drought) की स्थिति पैदा होती है।
❄️ 2. ला-नीना (La-Nina): मानसून का वरदान
यह एल-नीनो की ठीक विपरीत अवस्था है। इसमें पेरू के तट का पानी अत्यधिक ठंडा हो जाता है और पश्चिमी प्रशांत (इंडोनेशिया/भारत के पास) का पानी गर्म रहता है।
🌊 3. इंडियन ओशन डिपोल (Indian Ocean Dipole - IOD)
इसे 'भारतीय अल-नीनो' भी कहा जाता है। यह हिंद महासागर के दो हिस्सों (अरब सागर और इंडोनेशिया के पास) के तापमान का अंतर है।
जब अरब सागर (अफ्रीका के पास) गर्म हो। यह भारत में अच्छी बारिश लाता है, यहाँ तक कि अगर El-Nino भी हो तो यह उसके प्रभाव को कम कर सकता है।
जब इंडोनेशिया के पास का पानी गर्म हो। यह भारत में मानसून को कमजोर करता है और सूखा लाता है।
⚡ 4. मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO)
🌦️ 5. पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances)
यह सर्दियों में उत्तर भारत (UP, पंजाब, हरियाणा) में होने वाली वर्षा का मुख्य कारण है।
- उत्पत्ति: भूमध्य सागर (Mediterranean Sea)।
- वाहक: पश्चिमी जेट स्ट्रीम (Sub-Tropical Westerly Jet)।
- महत्व: यह 'मावठ' के रूप में रबी की फसलों (विशेषकर गेहूँ) के लिए 'अमृत' समान है।
व्याख्या: यह अरबी शब्द 'मौसिम' (Mausim) से बना है, जिसका अर्थ है 'ऋतु'। सर्वप्रथम अरब नाविक हिप्पालस ने मानसून हवाओं के बारे में बताया था।
व्याख्या: भारत में मानसून की मुख्य भूमि पर पहली बारिश 1 जून के आसपास केरल के मालाबार तट पर होती है। इसे 'मानसून प्रस्फोट' भी कहते हैं।
व्याख्या: जब मानसून वापस लौटता है, तो बंगाल की खाड़ी से नमी सोखकर तमिलनाडु के तटों पर अक्टूबर-नवंबर में भारी वर्षा करता है।
व्याख्या: अरावली की स्थिति और समुद्र से दूरी के कारण यहाँ मानसून पवनों की नमी खत्म हो जाती है, जिससे यहाँ 10cm से भी कम वर्षा होती है।
व्याख्या: बंगाल की खाड़ी की शाखा जैसे-जैसे मैदानों में अंदर बढ़ती है, उसकी नमी कम होती जाती है। इसलिए कोलकाता में वर्षा दिल्ली से अधिक होती है।
व्याख्या: एल-नीनो प्रशांत महासागर में गर्म जलधारा है जो भारत के निम्न वायुदाब को कमजोर कर देती है, जिससे मानसून कमजोर पड़ जाता है।
व्याख्या: अरब सागर का क्षेत्रफल बंगाल की खाड़ी से बड़ा है और यह सीधे पश्चिमी घाट से टकराती है, इसलिए यह अधिक नमी और वर्षा लाती है।
व्याख्या: इसका अर्थ है—शुष्क शीत ऋतु वाली मानसूनी जलवायु। उत्तर भारत के मैदानों में सर्दियों में वर्षा नहीं होती (पश्चिमी विक्षोभ को छोड़कर)।
व्याख्या: लौटता मानसून बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर कोरोमंडल तट पर वर्षा करता है।
व्याख्या: कर्नाटक और केरल में गर्मियों के अंत में होने वाली वर्षा जो आमों को पकाने में मदद करती है, उसे 'आम्र वर्षा' कहते हैं।
व्याख्या: हिमालय दो मुख्य कार्य करता है: 1. यह सर्दियों में मध्य एशिया से आने वाली अत्यधिक ठंडी और शुष्क ध्रुवीय हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकता है, जिससे उत्तर भारत का तापमान बहुत ज्यादा नहीं गिरता। 2. यह दक्षिण-पश्चिम मानसून की आर्द्र हवाओं के लिए एक भौतिक अवरोध (Physical Barrier) का कार्य करता है, जिससे वे हवाएं टकराकर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा करती हैं। यदि हिमालय न होता, तो उत्तर भारत एक ठंडा मरुस्थल होता।
व्याख्या: जून के प्रारंभ में, उप-उष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम (STWJ) हिमालय के उत्तर में खिसक जाती है और उसकी जगह 'पूर्वी जेट स्ट्रीम' (TEJ) ले लेती है। इस वायुमंडलीय बदलाव के कारण अरब सागर से आने वाली नमी युक्त हवाएं बिजली की कड़वाहट के साथ अचानक और लगातार वर्षा शुरू कर देती हैं, जिसे मानसून का फटना कहते हैं।
व्याख्या: शिलांग और चेरापूंजी खासी पहाड़ियों के दक्षिणी ढाल (Windward side) पर स्थित हैं जहाँ मानसूनी हवाएं सीधे टकराती हैं। इसके विपरीत, गुवाहाटी इन पहाड़ियों के उत्तर में 'वृष्टि छाया क्षेत्र' (Rain Shadow Zone) में पड़ता है, जहाँ हवाएं नीचे उतरते समय शुष्क हो जाती हैं।
व्याख्या: 'Amw' (Tropical Monsoon Rainforest) जलवायु लघु शुष्क ऋतु वाली मानसूनी जलवायु है। यह कोंकण और मालाबार तट पर पाई जाती है जहाँ 250 cm से अधिक वर्षा होती है और सदाबहार वन पाए जाते हैं।
व्याख्या: गर्मियों में ITCZ उत्तर की ओर खिसककर 25° N अक्षांश पर पहुँच जाता है, जिसे 'मानसून गर्त' (Monsoon Trough) कहते हैं। यह क्षेत्र इतना शक्तिशाली निम्न दाब बनाता है कि यह दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवनों को भूमध्य रेखा पार करने के लिए मजबूर कर देता है, जो आगे चलकर भारत में मानसून लाती हैं।
व्याख्या: जब अरब सागर की मानसूनी हवाएं पश्चिमी घाट से टकराती हैं, तो वे पश्चिमी ढाल पर तो खूब वर्षा करती हैं, लेकिन जैसे ही वे पहाड़ों को पार कर पूर्वी ढाल (जैसे- पुणे, बेंगलुरु) की ओर उतरती हैं, उनका तापमान बढ़ जाता है और सापेक्ष आर्द्रता कम हो जाती है, जिससे वर्षा नहीं हो पाती।
व्याख्या: तिब्बत का विशाल पठार गर्मियों में सौर विकिरण से अत्यधिक गर्म हो जाता है। यहाँ से गर्म हवाएं ऊपर उठकर क्षोभमंडल में एक 'एंटी-साइक्लोन' बनाती हैं, जो पूर्वी जेट स्ट्रीम को जन्म देती है। यह जेट स्ट्रीम मेडागास्कर के पास हवाओं को नीचे धकेलती है, जिससे दक्षिण-पश्चिम मानसून की तीव्रता बढ़ जाती है।
व्याख्या: मानसून काल के दौरान यदि निम्न दाब का क्षेत्र (ITCZ) उत्तर की ओर खिसककर हिमालय के पास स्थिर हो जाए, तो मैदानी इलाकों (UP, बिहार, पंजाब) में बारिश रुक जाती है। इस दौरान केवल हिमालय के दक्षिणी ढालों पर भारी वर्षा होती है जिससे मैदानों में बाढ़ आ सकती है, जबकि मैदान खुद सूखे रह जाते हैं।
व्याख्या: दो प्रमुख जेट स्ट्रीम हैं: 1. **पश्चिमी जेट स्ट्रीम:** यह सर्दियों में उत्तर भारत में वर्षा (पश्चिमी विक्षोभ) लाती है। 2. **पूर्वी जेट स्ट्रीम:** यह गर्मियों में मानसून के आगमन का संकेत है। मानसून तभी शुरू होता है जब पश्चिमी जेट स्ट्रीम हिमालय के दक्षिण से हटकर उत्तर में चली जाती है।
व्याख्या: ला-नीना एल-नीनो का विपरीत है। इसमें पश्चिमी प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ जाता है, जिससे हिंद महासागर में निम्न दाब का केंद्र और मजबूत होता है। परिणामस्वरूप, भारत में सामान्य से अधिक वर्षा होती है और खेती के लिए यह स्थिति बहुत अच्छी मानी जाती है।
व्याख्या: मई-जून के महीनों में उत्तर-पश्चिम भारत और गंगा के मैदानों में चलने वाली अत्यंत गर्म हवाएं हैं। इनका तापमान 45°C-50°C तक हो सकता है। यह 'तापीय प्रतिलोमन' का उदाहरण नहीं बल्कि तीव्र स्थानीय तापन है।
व्याख्या: तमिलनाडु में अक्टूबर-दिसंबर के दौरान होने वाली उत्तर-पूर्वी मानसूनी वर्षा वहां की शीतकालीन धान की फसल (स Samba rice) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
व्याख्या: यही कारण है कि भूमध्य रेखा के पास चक्रवात नहीं बनते, क्योंकि हवाओं को मुड़ने के लिए कोरिओलिस बल नहीं मिल पाता। मानसून पवनें भी यहाँ से गुजरते समय ही मुड़ना शुरू करती हैं।
व्याख्या: यहाँ से उठने वाले अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात इराक, ईरान और अफगानिस्तान को पार कर पछुआ जेट स्ट्रीम के सहारे भारत पहुँचते हैं।
व्याख्या: यद्यपि भारत के कुछ हिस्सों में 1000 सेमी से अधिक (मासिनराम) और कुछ में 10 सेमी से कम (लेह) वर्षा होती है, लेकिन राष्ट्रीय औसत 118 सेमी के आसपास रहता है।
व्याख्या: वैशाख के महीने में दोपहर के बाद आने वाले ये विनाशकारी तूफान चाय, जूट और चावल की खेती के लिए लाभदायक होते हैं। इन्हें 'नॉर्वेस्टर' भी कहा जाता है।
व्याख्या: अरावली पर्वतमाला की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व है, जो कि मानसून पवनों की दिशा के बिल्कुल समानांतर है। इसलिए हवाओं को टकराने के लिए कोई अवरोध नहीं मिलता और वे सीधे निकल जाती हैं।
व्याख्या: सितंबर के अंत में जब मानसून लौटता है, तो आकाश साफ हो जाता है लेकिन जमीन गीली रहती है। धूप के कारण उमस (Humidity) बढ़ जाती है, जिससे मौसम बहुत कष्टदायक हो जाता है। इसे ही 'कार्तिक की उमस' या October Heat कहते हैं।
व्याख्या: जब गर्त (Trough) उत्तर की ओर खिसकता है, तो सारी नमी हिमालय की ढालों से टकराती है। इससे मैदानी नदियाँ (गंगा, कोसी) उफान पर आ जाती हैं और बाढ़ की स्थिति बनती है।
व्याख्या: सामान्य एल-नीनो में पूर्वी प्रशांत गर्म होता है, लेकिन 'मोदिकी' में मध्य प्रशांत गर्म होता है और दोनों किनारे ठंडे होते हैं। इसका प्रभाव भी भारतीय मानसून पर सामान्य एल-नीनो से भिन्न होता है।
व्याख्या: 'As' का अर्थ है—शुष्क ग्रीष्म ऋतु (Dry Summer) वाली मानसूनी जलवायु। तमिलनाडु का यह तट गर्मियों में सूखा रहता है क्योंकि यह दक्षिण-पश्चिम मानसून के वृष्टि छाया क्षेत्र में है, और यहाँ वर्षा सर्दियों में लौटते मानसून से होती है।
व्याख्या: यह असम में होने वाली तीव्र गरज के साथ वर्षा है। इसे 'नॉर्वेस्टर' का स्थानीय रूप माना जाता है, जो चाय (Tea) की खेती के लिए अत्यंत लाभदायक होती है।
व्याख्या: भौगोलिक रूप से भारत का उत्तरी भाग उप-उष्णकटिबंध (Sub-tropics) में है, लेकिन हिमालय ध्रुवीय हवाओं को रोककर पूरे भारत में एक समान ऊष्मीय स्थिति (Tropical conditions) बनाए रखता है, और पूरे देश की वर्षा प्रणाली मानसून पर निर्भर है।
व्याख्या: जैसे ही सूर्य दक्षिण की ओर (Equator की ओर) खिसकता है, उत्तर-पश्चिम भारत में निम्न दाब का क्षेत्र कमजोर होने लगता है और हवाएं वापस समुद्र की ओर लौटने लगती हैं। सबसे पहले राजस्थान से मानसून वापस जाता है।
व्याख्या: पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, जिससे गतिशील वस्तुओं (जैसे हवा और समुद्री धाराओं) पर एक आभासी बल लगता है, जो उन्हें उत्तरी गोलार्ध में दाईं ओर मोड़ देता है।
व्याख्या: बंगाल की खाड़ी का तापमान अरब सागर से थोड़ा अधिक रहता है और इसकी आकृति 'कीपाकार' (Funnel shape) है। साथ ही, यहाँ गंगा-ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों का मीठा पानी सतह पर एक परत बना देता है जो गर्मी को अंदर रोके रखता है, जिससे चक्रवात तीव्र हो जाते हैं।
व्याख्या: ये ऊर्ध्वाधर (Vertical) विस्तार वाले घने बादल होते हैं, जो मानसून पूर्व वर्षा और मानसून प्रस्फोट के समय भारी वर्षा और बिजली कड़कने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
व्याख्या: अरब सागर से उठने वाली एक शाखा विंध्य और सतपुड़ा श्रेणियों के बीच की भ्रंश घाटी (Rift Valley) में प्रवेश करती है और मध्य भारत के आंतरिक भागों तक वर्षा पहुँचाती है।
व्याख्या: थॉर्नथवेट ने वर्षा की प्रभावशीलता और तापीय दक्षता के आधार पर भारत को वर्गीकृत किया। गंगा का मैदान और प्रायद्वीपीय भारत का बड़ा हिस्सा इसी श्रेणी में आता है।
व्याख्या: इन तीनों क्षेत्रों में पर्वतीय अवरोध के कारण 'ओरोग्राफिक' वर्षा होती है, जिसका औसत 200cm से अधिक रहता है।
व्याख्या: यहाँ साल के अधिकांश समय तापमान 10°C से नीचे रहता है। 'ET' (Tundra) जलवायु उत्तराखंड के ऊंचे शिखरों पर मिलती है।
व्याख्या: यह सर्दियों में भारत के ऊपर रहती है, लेकिन जैसे ही यह हिमालय के उत्तर में खिसकती है, मानसून पवनों के लिए रास्ता साफ हो जाता है।
व्याख्या: परिवर्तनशीलता का अर्थ है—जहाँ बारिश होने का भरोसा सबसे कम हो। यहाँ वर्षा कम होती है और अनिश्चित भी होती है, इसलिए यहाँ सूखे की संभावना सबसे अधिक रहती है।
व्याख्या: भारत में ऐसे वन पश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाए जाते हैं जहाँ भारी वर्षा के साथ उच्च तापमान भी रहता है।
व्याख्या: यह निम्न दाब की एक धुरी (Axis) है। इसके उत्तर-दक्षिण खिसकने से ही भारत के अलग-अलग हिस्सों में वर्षा का वितरण तय होता है।
Note: प्रश्न 46 से 60 में 'Indian Ocean Dipole' का प्रभाव, 'Walker Circulation' की कमजोरी, भारत में मानसून की 'वापसी' की तिथियाँ, और 'कोपेन के BWhw (थार मरुस्थल)' जैसे विषयों पर आधारित हैं। व्याख्या में मुख्य रूप से यह बताया गया है कि हिंद महासागर का तापमान अरब सागर के चक्रवातों की आवृत्ति को कैसे बढ़ा रहा है (Climate Change context)।
व्याख्या: जब पश्चिमी हिंद महासागर (अफ्रीका के पास) का तापमान पूर्वी हिस्से (इंडोनेशिया) से अधिक होता है, तो इसे 'Positive IOD' कहते हैं। यह स्थिति अरब सागर के ऊपर अधिक वाष्पीकरण और निम्न दाब पैदा करती है, जो मानसून पवनों को भारत की ओर और भी शक्तिशाली तरीके से खींचती है। यह एल-नीनो के नकारात्मक प्रभाव को भी बेअसर कर सकता है।
व्याख्या: यह वह क्षेत्र है जहाँ दक्षिण-पश्चिम मानसून की दोनों शाखाएं (अरब सागर और बंगाल की खाड़ी) मिलती हैं। इसकी स्थिति सामान्यतः उत्तर भारत के मैदान में होती है। जब यह ट्रफ हिमालय की ओर खिसकता है तो मैदानों में बारिश रुक जाती है (Monsoon Break), और जब यह दक्षिण की ओर खिसकता है तो प्रायद्वीपीय भारत में भारी वर्षा होती है।
व्याख्या: परिवर्तनशीलता का अर्थ है कि किसी स्थान पर होने वाली वर्षा में साल-दर-साल कितना अंतर आता है। भारत में जहाँ वर्षा कम होती है (जैसे राजस्थान, गुजरात), वहाँ परिवर्तनशीलता सबसे अधिक (50% से ज्यादा) होती है। इसका मतलब है कि वहां बारिश होने का कोई निश्चित भरोसा नहीं है।
व्याख्या: इन्हें पश्चिम बंगाल में 'काल बैसाखी' कहा जाता है। ये मानसून पूर्व आने वाले तीव्र चक्रवातीय तूफान हैं जो छोटानागपुर पठार पर पैदा होते हैं और पूर्व की ओर बढ़ते हैं। इनसे होने वाली वर्षा जूट और चावल की खेती के लिए लाभदायक है।
व्याख्या: यह मरुस्थल (BWhw) और सघन वर्षा वाले क्षेत्रों के बीच का संक्रमणकालीन क्षेत्र है। यहाँ वर्षा कम होती है (12 से 25 सेमी) और कटीली झाड़ियाँ व घास पाई जाती है।
व्याख्या: मानसून सबसे पहले राजस्थान से (सितंबर मध्य) वापस जाना शुरू करता है, लेकिन प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग से इसकी पूर्ण विदाई दिसंबर के मध्य तक होती है।
व्याख्या: यह वायुमंडलीय घटना पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करती है। जब इसका सक्रिय चरण हिंद महासागर के ऊपर होता है, तो यह भारत में मानसूनी वर्षा को 15-20 दिनों के लिए अत्यधिक बढ़ा देता है। मौसम विभाग इसका उपयोग मानसून के पूर्वानुमान के लिए करता है।
व्याख्या: रेत की विशेषता है कि वह जितनी जल्दी गर्म होती है, उतनी ही जल्दी ठंडी भी होती है। इसलिए जैसलमेर जैसे क्षेत्रों में दिन का तापमान 50°C तक जा सकता है और रात में 15°C तक गिर सकता है।
व्याख्या: यह कर्नाटक के कॉफी उत्पादक क्षेत्रों (कूर्ग, चिकमगलूर) में अप्रैल-मई में होने वाली वर्षा है। इसे 'चेरी ब्लॉसम' भी कहा जाता है।
व्याख्या: यह एक स्पेनिश शब्द है जो 'बाल ईसा' (Child Christ) के संदर्भ में उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह घटना अक्सर दिसंबर (क्रिसमस) के आसपास देखी जाती है।
व्याख्या: अक्टूबर-नवंबर में जब मानसून लौटता है, तो बंगाल की खाड़ी के ऊपर चक्रवात बनते हैं जो अपनी दिशा बदलकर भारत के पूर्वी तट से टकराते हैं, जिससे भारी जान-माल की हानि होती है।
व्याख्या: सामान्यतः ऊंचाई के साथ तापमान घटता है, लेकिन विलोमता में ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा की परत आ जाती है। यह प्रदूषण और कोहरे को जमीन के पास रोक लेती है, जैसा सर्दियों में दिल्ली में देखा जाता है।
व्याख्या: जब गर्मी बहुत बढ़ जाती है, तो स्थानीय तापन के कारण दोपहर बाद धूल भरी आंधियां (Dust Storms) चलती हैं जो तापमान को 5-10 डिग्री तक तुरंत गिरा देती हैं और गर्मी से राहत दिलाती हैं।
व्याख्या: बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और गोदावरी जैसी नदियां भारी मात्रा में मीठा पानी डालती हैं, जो समुद्र की सतह पर एक परत बना देता है। यह परत नीचे की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देती, जिससे सतह गर्म रहती है। अरब सागर अधिक खारा और खुला है, इसलिए ठंडा रहता है।
व्याख्या: यह उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ साल के सबसे गर्म महीने का तापमान भी 0°C से 10°C के बीच रहता है। भारत में यह उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
