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अध्याय 3 ⚔️ खिलजी एवं तुगलक काल
3.3 खिलजी एवं तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था – राजस्व निर्धारण, किसानों की स्थिति, भूमि नीतियाँ व सामाजिक प्रभाव (UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC/Police)
3.3 खिलजी एवं तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था – राजस्व निर्धारण, किसानों की स्थिति, भूमि नीतियाँ व सामाजिक प्रभाव (UPSC/PCS/RO-ARO/UPSSSC/Police)
🌾 खराज, उशर, जज़िया, भूमि–मापन, दोआब नीति, इक्ता, किसान की स्थिति, सिंचाई व नहरें
📝 UPSC, State PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु विस्तृत हिंदी नोट्स व PYQ
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भाग – 1 : विस्तृत स्टडी नोट्स – खिलजी व तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था
गहन अध्ययन – Pre + Mains दोनों हेतु
🎯 कीवर्ड: Delhi Sultanate Agrarian System, खिलजी राजस्व, तुगलक राजस्व, खराज, उशर, दोआब नीति, इक्ता, किसान की स्थिति।
🌾 1. परिचय – सल्तनत की रीढ़: कृषि व राजस्व
मध्यकालीन भारत में कृषि और राजस्व व्यवस्था किसी भी राज्य की आर्थिक रीढ़ थी।
दिल्ली सल्तनत के खिलजी व तुगलक शासकों ने कृषि–राजस्व पर आधारित कई महत्वपूर्ण नीतियाँ अपनाईं, जिनका
सीधा प्रभाव किसानों, अमीरों, सूबेदारों और केंद्र की शक्ति पर पड़ा।
- कुल राजस्व का अधिकांश भाग भूमि–कर (खराज) से आता था।
- इक्ता प्रणाली के माध्यम से प्रांतीय अधिकारियों/इक्तादारों को राजस्व व प्रशासन सौंपा जाता।
- खिलजी–तुगलक काल में राजस्व दर, भूमि–मापन, किसानों की स्थिति व लगान–वसूली पर खास ध्यान दिया गया।
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Exam Tip:
सल्तनत काल की असली शक्ति = सेना + राजस्व. और राजस्व की जड़ थी – कृषि व किसान. इसलिए UPSC/PCS में कृषि–राजस्व पर बार–बार प्रश्न पूछे जाते हैं।
सल्तनत काल की असली शक्ति = सेना + राजस्व. और राजस्व की जड़ थी – कृषि व किसान. इसलिए UPSC/PCS में कृषि–राजस्व पर बार–बार प्रश्न पूछे जाते हैं।
📜 2. मुख्य कर–प्रणाली (खिलजी–तुगलक काल की पृष्ठभूमि)
💰 2.1 भूमि–कर व अन्य कर
- खराज: कृषि भूमि पर लगान (मुख्य राजस्व स्रोत)।
- उशर: मुस्लिम किसानों के लिए उपज का हिस्सा, विशेष परिस्थितियों में लागू।
- जज़िया: ग़ैर–मुस्लिम प्रजा पर एक विशेष कर (मुख्यतः धार्मिक स्वरूप)।
- अन्य कर – चराई कर, कुछ स्थानों पर घर–घरी आदि (काल व क्षेत्रानुसार भिन्नता)।
📍 2.2 इक्ता प्रणाली व राजस्व
- इक्ता – भूमि/क्षेत्र की राजस्व–इकाई, जिसे इक्तादार को दिया जाता।
- इक्तादार – सेना के रख–रखाव, व्यवस्था व स्थानीय प्रशासन के बदले राजस्व वसूलने का अधिकार।
- केंद्र का प्रयास – इक्तादार को बिल्कुल स्वतंत्र ज़मींदार न बनने देना, राजस्व पर नियंत्रण बनाए रखना।
🛡️ 3. खिलजी काल (अलाउद्दीन खिलजी) की कृषि व राजस्व नीति
अलाउद्दीन खिलजी का ध्यान मुख्यतः राजस्व बढ़ाने, सेना मजबूत करने व अमीर वर्ग की शक्ति तोड़ने पर था।
इसके लिए उसने विशेषकर दोआब क्षेत्र में कठोर राजस्व नीति अपनाई।
📏 3.1 राजस्व निर्धारण व भूमि–मापन
- कुछ क्षेत्रों (विशेषकर दोआब) में भूमि–मापन व उपज अनुमान के आधार पर लगान तय करने की कोशिश।
- कई इतिहासकारों के अनुसार कुछ क्षेत्रों में उपज का लगभग आधा हिस्सा तक खराज के रूप में वसूला गया।
- स्थानीय प्रमुखों व ज़मींदारों की मध्यस्थता कम कर, सीधे किसानों से वसूली की दिशा में कदम।
🌾 3.2 किसानों की स्थिति व मंडी–संबंध
- उच्च लगान से किसानों पर बोझ बढ़ा, पर अनाज के नियंत्रित दाम ने शहर के गरीब वर्ग व सैनिकों को राहत दी।
- राजस्व व बाजार नीति में जुड़ाव – खराज से राज्य खजाना, बाजार से सस्ती जीवन–यापन लागत का संतुलन।
- कई क्षेत्रों में कठोर वसूली के कारण किसानों में असंतोष, पर केंद्रीय सेना–व्यवस्था मजबूत रही।
📌
एक लाइन में:
“अलाउद्दीन = उच्च खराज + नियंत्रित बाजार” →
राज्य के लिए राजस्व अधिक, पर किसान पर दबाव और व्यापारी पर नियंत्रण।
⚖️ 4. तुगलक काल – मोहम्मद–बिन–तुगलक की कृषि व राजस्व नीतियाँ
मोहम्मद–बिन–तुगलक ने दोआब नीति और कर–सुधार के नाम पर
किसानों पर अत्यधिक बोझ डाल दिया, जो उसकी असफलताओं का प्रमुख कारण बना।
- दोआब नीति: गंगा–यमुना दोआब को अत्यधिक उपजाऊ मानकर यहाँ लगान की दर बहुत अधिक कर दी गई (कई स्रोतों के अनुसार उपज के आधे व उससे अधिक)।
- अधिकारी कठोर वसूली करते – अकाल, बाढ़, सूखा जैसी स्थितियों का भी पर्याप्त ध्यान नहीं रखा गया।
- फलस्वरूप – किसानों में भुखमरी, पलायन, विद्रोह की स्थिति; कई खेत छोड़कर लोग अन्य क्षेत्रों या जंगलों की ओर भागे।
- राजस्व अल्पकाल में बढ़ा, पर दीर्घकाल में उत्पादन व जन–समर्थन दोनों घटे – राजनैतिक स्थिरता कमजोर हुई।
🚿 5. फ़िरोजशाह तुगलक: सिंचाई, लगान में रियायत व किसान–केंद्रित पहल
फ़िरोजशाह तुगलक (1351–1388) को विशेष रूप से सिंचाई, नहर–निर्माण व कृषि–उत्साह के लिए याद किया जाता है।
उसने पूर्ववर्ती अति–कठोर नीतियों के विपरीत अपेक्षाकृत किसान–हितैषी नीति अपनाने की कोशिश की।
💦 5.1 सिंचाई व नहर–व्यवस्था
- कई नहरों व नालों का निर्माण/पुनः–निर्माण – इससे सिंचाई–क्षेत्र बढ़ा और कृषि–उत्पादन में वृद्धि हुई।
- किसानों के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ने से सूखा–जोखिम कुछ कम हुआ।
📉 5.2 लगान–राहत व सहायता
- कई मामलों में कर्ज माफ़ी, लगान में रियायत, बीज–अनाज व कृषि–सहायता की नीतियाँ।
- किसानों को कुछ स्थानों पर तक्कावी (कृषि ऋण) जैसी सहायता भी दी जाती (क्षेत्रानुसार भिन्नता)।
- कुल मिलाकर – फ़िरोजशाह का रुख किसान–समर्थक माना जाता है, हालांकि प्रशासन में दास–प्रथा व दूसरी कठोरताएँ भी मौजूद थीं।
👥 6. किसानों की स्थिति – खिलजी बनाम तुगलक
🛡️ 6.1 खिलजी काल (अलाउद्दीन)
- उच्च खराज व कठोर वसूली, विशेषकर दोआब में।
- किसानों पर दबाव, पर बाजार–नियंत्रण से शहरों में अनाज–दाम स्थिर रहे।
- किसान स्वतंत्र नहीं, पर राज्य–सुरक्षा व स्थिरता के कारण उत्पादन जारी रहा।
⚖️ 6.2 तुगलक काल (MBT + फ़िरोज)
- MBT – अत्यधिक लगान, दोआब नीति, पलायन व विद्रोह → किसान की स्थिति अत्यंत खराब।
- फ़िरोज – नहर, रियायत, कर्ज–सहायता → किसानों के लिए कुछ राहत।
- लगान–प्रणाली फिर भी पूरी तरह न्यायपूर्ण नहीं, पर पूर्ववर्ती कठोरता से नरम।
📊 7. सामाजिक–आर्थिक प्रभाव – संक्षेप में
- राज्य की शक्ति: उच्च भूमि–कर व नियंत्रित बाजार ने राज्य को कुछ समय के लिए वित्तीय रूप से मजबूत रखा (खासकर खिलजी काल में)।
- किसान व ग्रामीण समाज: लगान–अत्याचार व सूखा–अकाल में राहत की कमी ने कई क्षेत्रों में किसान–विद्रोह, पलायन व अस्थिरता बढ़ाई (तुगलक काल)।
- प्रशासन: कठोर नीति + भ्रष्ट अधिकारी = जन–समर्थन में कमी, जो दीर्घकाल में सल्तनत के क्षय का कारण बनी।
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Mains के लिए निष्कर्ष:
“खिलजी–तुगलक काल की कृषि व राजस्व नीति ने अल्पकाल में राज्य की वित्तीय शक्ति बढ़ाई, पर किसानों पर बढ़ते बोझ व प्रशासनिक कठोरता ने दीर्घकाल में राजनीतिक अस्थिरता और सल्तनत के पतन की जमीन भी तैयार की।”
“खिलजी–तुगलक काल की कृषि व राजस्व नीति ने अल्पकाल में राज्य की वित्तीय शक्ति बढ़ाई, पर किसानों पर बढ़ते बोझ व प्रशासनिक कठोरता ने दीर्घकाल में राजनीतिक अस्थिरता और सल्तनत के पतन की जमीन भी तैयार की।”
खिलजी तुगलक कृषि व्यवस्था नोट्स
खराज व दोआब नीति UPSC
फ़िरोजशाह तुगलक सिंचाई
Delhi Sultanate Agrarian System Hindi
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भाग – 2 : क्विक स्मार्ट रिवीजन – खिलजी एवं तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था
Quick Smart Revision (Hindi)
⚡ 2–3 मिनट में पूरा टॉपिक रिवाइज करने के लिए हाई–यील्ड पॉइंट्स – Prelims + Mains दोनों के लिए।
1️⃣ मूल ढाँचा
- मुख्य आय – भूमि–कर (खराज)।
- इक्ता प्रणाली – इक्तादार द्वारा वसूली।
- किसान – राजस्व बोझ का मुख्य वाहक।
2️⃣ प्रमुख कर–शब्द
- खराज – कृषि भूमि पर लगान।
- उशर – कुछ स्थितियों में धार्मिक भूमि–कर।
- जज़िया – ग़ैर–मुस्लिमों पर विशेष कर।
- अन्य – चराई, घर–घरी (क्षेत्रानुसार)।
3️⃣ खिलजी (अलाउद्दीन)
- दोआब में उच्च खराज।
- भूमि–मापन व अनुमानित उपज के आधार पर लगान।
- किसान पर बोझ, पर बाजार–नियंत्रण से सस्ती दरें।
4️⃣ तुगलक (MBT)
- दोआब नीति – अत्यधिक लगान।
- किसानों का पलायन, विद्रोह, उत्पादन में गिरावट।
- राजनीतिक अस्थिरता में योगदान।
5️⃣ फ़िरोजशाह तुगलक
- नहर–निर्माण, सिंचाई को प्रोत्साहन।
- लगान में कुछ रियायत, कर्ज–सहायता।
- किसान–हितैषी छवि, पर पूर्ण न्याय नहीं।
6️⃣ सार तुलना
- खिलजी – उच्च खराज + नियंत्रण, पर स्थिरता बेहतर।
- MBT – अति–उच्च खराज + अव्यवस्था = अस्थिरता।
- फ़िरोज – सिंचाई व राहत = कुछ संतुलन।
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Super Short Trick:
“खि–उच्च, मु–अति, फ़ि–राहत” → खिलजी = उच्च लगान, मुहम्मद–बिन–तुगलक = अति लगान (दोआब नीति), फ़िरोज = राहत व सिंचाई। इस एक लाइन से पूरा टॉपिक Recall हो जाता है।
“खि–उच्च, मु–अति, फ़ि–राहत” → खिलजी = उच्च लगान, मुहम्मद–बिन–तुगलक = अति लगान (दोआब नीति), फ़िरोज = राहत व सिंचाई। इस एक लाइन से पूरा टॉपिक Recall हो जाता है।
Agrarian System Delhi Sultanate
खिलजी तुगलक राजस्व Quick Revision
UPSC PCS Medieval Economy
❓
भाग – 3 : PYQ व एक पंक्ति प्रश्न – खिलजी एवं तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था
30+ स्मार्ट प्रश्न (उत्तर + व्याख्या)
यहाँ खिलजी व तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था से संबंधित
वन–लाइनर शैली के प्रश्न + उत्तर के बाद संक्षिप्त व्याख्या दी गई है,
ताकि तथ्य के साथ–साथ कॉन्सेप्ट भी मज़बूत हो सके।
Q1. दिल्ली सल्तनत की आय का मुख्य स्रोत क्या था – व्यापार या कृषि राजस्व? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: कृषि राजस्व (भूमि–कर / खराज)।
Q2. “खराज” शब्द किस प्रकार के कर के लिए प्रयोग होता था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: कृषि भूमि पर लगान / भूमि–कर।
Q3. खिलजी व तुगलक काल में कौन–सा क्षेत्र विशेष रूप से राजस्व नीति का केंद्र बना – दोआब या मालवा? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: गंगा–यमुना दोआब।
Q4. अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व नीति का मुख्य उद्देश्य क्या था – केवल किसान कल्याण या राज्य की वित्तीय शक्ति? 👁️उत्तर देखें
मुख्य उद्देश्य: राज्य की वित्तीय शक्ति बढ़ाना व बड़ी सेना को बनाए रखना।
Q5. किस शासक ने दोआब क्षेत्र में उच्च भूमि–कर के साथ बाज़ार–नियंत्रण भी जोड़ा – अलाउद्दीन या मोहम्मद–बिन–तुगलक? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: अलाउद्दीन खिलजी।
Q6. दोआब नीति शब्द आमतौर पर किस शासक के संदर्भ में नकारात्मक रूप से प्रयोग होता है – अलाउद्दीन या मोहम्मद–बिन–तुगलक? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: मोहम्मद–बिन–तुगलक।
Q7. “इक्ता” किसे कहते थे – भूमि–इकाई, सैनिक रैंक या कर–प्रकार? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: भूमि–राजस्व की इकाई (इकाई क्षेत्र)।
Q8. क्या इक्ता इक्तादार की निजी स्थायी ज़मीन थी? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, यह राज्य–स्वामित्व वाली भूमि थी; सुल्तान इसे कभी भी बदल सकता था।
Q9. किस शासक ने सिंचाई के लिए नहर–निर्माण को विशेष महत्व दिया – अलाउद्दीन, MBT या फ़िरोजशाह तुगलक? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: फ़िरोजशाह तुगलक।
Q10. फ़िरोजशाह तुगलक की सिंचाई नीति का किसानों पर सामान्य प्रभाव क्या था? 👁️उत्तर देखें
संक्षेप: सिंचाई–क्षेत्र बढ़ा, सूखा–जोखिम कुछ कम हुआ, उत्पादन में वृद्धि की संभावना बढ़ी।
Q11. किस शासक की राजस्व नीति ने किसानों को सबसे अधिक संकट में डाला – अलाउद्दीन या MBT? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सामान्यतः मोहम्मद–बिन–तुगलक।
Q12. क्या फ़िरोजशाह तुगलक ने कभी किसानों के लिए कर्ज–सहायता या रियायत की नीति अपनाई? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: हाँ, कई स्थानों पर कर्ज–राहत, लगान–रियायत व सहायता योजनाएँ चलायीं।
Q13. क्या खिलजी–तुगलक काल में किसान स्वतंत्र स्वामी थे या राज्य/ज़मींदार के अधीन? 👁️उत्तर देखें
संक्षेप: अधिकांश किसान राज्य व स्थानीय प्रमुखों के अधीन थे;
भूमि–अधिकार सीमित एवं लगान–बोझ अधिक था।
Q14. क्या खिलजी–तुगलक काल की राजस्व नीति ने ग्रामीण समाज में असमानता बढ़ाई या घटाई? 👁️उत्तर देखें
सार: कई क्षेत्रों में असमानता बढ़ी;
अमीर वर्ग व इक्तादार अधिक मज़बूत, किसान वर्ग अपेक्षाकृत कमजोर हुआ।
Q15. अलाउद्दीन की राजस्व–नीति का एक सकारात्मक पक्ष क्या माना जा सकता है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: राज्य–कोष मजबूत हुआ और बड़ी सेना का खर्च सम्भव हुआ,
जिससे बाहरी आक्रमणों से रक्षा सशक्त हुई।
Q16. मोहम्मद–बिन–तुगलक की दोआब नीति का दीर्घकालिक राजनीतिक परिणाम क्या रहा? 👁️उत्तर देखें
सार: किसान–असंतोष, उत्पादन–गिरावट और विद्रोहों ने केंद्र की पकड़ कमजोर की,
जिससे सल्तनत की राजनीतिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
Q17. फ़िरोजशाह तुगलक की सिंचाई नीति को किस रूप में देखा जा सकता है – किसान–हितैषी या केवल राजस्व–केंद्रित? 👁️उत्तर देखें
विश्लेषण: दोनों;
सिंचाई से उत्पादन बढ़ा (राजस्व लाभ) और किसानों को भी पानी की सुविधा से लाभ हुआ –
यानी नीति अपेक्षाकृत किसान–हितैषी थी।
Q18. “इक्ता प्रणाली” का एक बड़ा खतरा क्या था, यदि केंद्र कमजोर हो जाए? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: इक्तादार स्वयं लगभग स्वतंत्र शासक बन सकते थे,
जिससे केंद्र का नियंत्रण टूटने का खतरा रहता था।
Q19. क्या खिलजी–तुगलक काल में किसानों को फसल–विविधता का अवसर था या केवल अनाज पर निर्भरता रही? 👁️उत्तर देखें
संक्षेप: मुख्य जोर अनाज व रोजमर्रा की फसलों पर था;
हालांकि कुछ नकदी फसलें भी थीं, पर राजस्व–प्रणाली अनाज–केन्द्रित ही रही।
Q20. एग्ज़ाम लिखने लायक सार – “खिलजी व तुगलक काल की राजस्व नीति से हम क्या सीख सकते हैं?” 👁️उत्तर देखें
मॉडल लाइन:
“केवल उच्च कर–दर से राज्य की शक्ति स्थायी नहीं बनती;
दीर्घकालिक स्थिरता के लिए किसान की भुगतान–क्षमता, प्राकृतिक परिस्थितियों और
प्रशासनिक न्याय का ध्यान रखना उतना ही आवश्यक है।”
Q21. सबसे उपजाऊ क्षेत्र कौन–सा माना गया जहाँ दोनों शासकों ने राजस्व नीति पर जोर दिया?👁️उत्तर
उत्तर: गंगा–यमुना दोआब।
Q22. “खिलजी = उच्च लगान + सस्ता बाजार” – यह फॉर्मूला किस प्रकार के प्रश्न में मदद करता है?👁️उत्तर
उत्तर: One–Liner, मैच–द–फॉलोइंग और छोटे Mains उत्तरों में।
Q23. “मुहम्मद–बिन–तुगलक = दोआब नीति” – यह किस मुख्य गलती की याद दिलाता है?👁️उत्तर
उत्तर: अत्यधिक लगान व वास्तविक परिस्थितियों की अनदेखी।
Q24. “फ़िरोज = नहर, राहत” – इस छोटी ट्रिक में क्या छिपा है?👁️उत्तर
उत्तर: फ़िरोजशाह तुगलक की पहचान – सिंचाई नहरें और किसानों को कुछ राहत–नीति।
Q25. यदि प्रश्न में “खراج, उशर, जज़िया” एक साथ हों, तो विषय कौन–सा होगा?👁️उत्तर
उत्तर: सल्तनत काल की कर–प्रणाली / राजस्व व्यवस्था।
Q26. MCQ में यदि “इक्तादार” शब्द हो, तो कौन–से दो तत्व तुरंत याद रखने चाहिए?👁️उत्तर
उत्तर: राजस्व–वसूली + स्थानीय प्रशासन/सेना–रखरखाव।
Q27. क्या खिलजी–तुगलक काल में “माल–ए–खास” व “माल–ए–वुजूह” जैसे शब्द भी राजस्व से जुड़े थे?👁️उत्तर
उत्तर (Concept): हाँ, शाही आय (माल–ए–खास) व अन्य आय (माल–ए–वुजूह) जैसी अवधारणाएँ भी थीं,
पर प्रीलिम्स में मुख्य फोकस खराज, जज़िया, इक्ता आदि पर रहता है।
Q28. क्या किसान केवल अनाज में लगान देते थे या अन्य रूप भी थे?👁️उत्तर
संक्षेप: प्रमुख रूप अनाज/उपज का हिस्सा था, पर कहीं–कहीं नकद या मिश्रित रूप भी पाया जाता।
Q29. “कृषि–राजस्व = सल्तनत की रीढ़” – यह कथन किस प्रकार के उत्तर में लिखना उपयोगी है?👁️उत्तर
उत्तर: 5–10 नम्बर के छोटे/मध्यम उत्तर के प्रारंभ या निष्कर्ष में।
Q30. अंतिम सार – “खिलजी एवं तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था का भारतीय इतिहास में क्या महत्व है?”👁️उत्तर
मॉडल लाइन (Mains के लिए):
“खिलजी व तुगलक काल की कृषि व राजस्व व्यवस्था ने
मध्यकालीन भारत में केंद्र बनाम इक्तादार, किसान बनाम राज्य,
उच्च लगान बनाम उत्पादन जैसे प्रश्नों को उभारते हुए
आगे चलकर मुगल–कालीन भू–राजस्व सुधारों के लिए
एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तैयार की।”
