प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में प्रशासन, सामंतवाद व भूमि व्यवस्था || Feudalism & Administration in Early Medieval India | (Hindi Notes For All Competitive Exams)

प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में प्रशासन, सामंतवाद व भूमि व्यवस्था || Feudalism & Administration in Early Medieval India | (Hindi Notes For All Competitive Exams)

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Early Medieval India – Feudalism & Administration6️⃣ प्रशासन, सामंतवाद व भूमि व्यवस्था (प्रारंभिक मध्यकाल, राजपूत व क्षेत्रीय राजवंश)
🏰 सामंतवाद की विशेषताएँ, ज़मींदारी/सामंती संरचना, भूमि–अनुदान, कर–व्यवस्था, राजपूत व क्षेत्रीय राजवंशों की प्रशासनिक पद्धतियाँ व प्रभाव 📚 NCERT + मानक इतिहास पुस्तकें + विश्वसनीय वेबसाइट आधारित स्मार्ट नोट्स (UPSC / State PCS / UPSSSC / SSC / Railway)
📚 मध्यकालीन भारतीय इतिहास अध्याय 1 : प्रारंभिक मध्यकालीन भारत (650–1200 ई.) प्रशासन, सामंतवाद व भूमि व्यवस्था
📘 भाग – 1 : विस्तृत स्टडी नोट्स – प्रशासन, सामंतवाद व भूमि व्यवस्था (प्रारंभिक मध्यकाल)
Concept + Facts
🎯 आधार – NCERT (R.S. Sharma, Satish Chandra themes), NIOS, व विश्वसनीय online notes का समन्वित व परीक्षा–उन्मुख रूप।

🧭 1. प्रारंभिक मध्यकाल में प्रशासन की बदलती तस्वीर

गुप्त–पतन के बाद (लगभग 7वीं–12वीं सदी) भारत में केंद्रीयकृत साम्राज्य की जगह क्षेत्रीय राजवंशों और सामन्तों की शक्ति तेजी से बढ़ी। इस नई व्यवस्था को इतिहास–लेखन में सामान्यतः “सामंतवाद (Feudalism)” कहा जाता है।
  • राजा के अधीन अनेक समन्त / महासमन्त / थानेदार – जो प्रशासन, सेना व कर–संग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भूमि–अनुदान (Land Grants) – ब्राह्मण, मंदिर, सैनिक व अधिकारियों को भूमि देना – प्रशासन व अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता।
  • राजपूत व अन्य क्षेत्रीय राजवंश – इसी सामंती ढाँचे के भीतर प्रशासन चलाते हैं।
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Exam Tip: “प्रारंभिक मध्यकाल = सामंतवाद + भूमि–अनुदान + क्षेत्रीयकरण” यह तीन–शब्दीय फ़ॉर्मूला याद रखोगे तो GS–1 में पूरे यूनिट को connect कर पाओगे।

🏰 2. सामंतवाद (Feudalism) – अर्थ, संरचना व मुख्य विशेषताएँ

📚 2.1 सामंतवाद – सरल परिभाषा
  • सामंतवाद ऐसी राजनीतिक–आर्थिक व्यवस्था है जिसमें:
    • राजा अपनी भूमि/अधिकार का हिस्सा समन्तों को दे देता है।
    • समन्त बदले में सैन्य सेवा, कर–संग्रह, निष्ठा व कभी–कभी उपहार/कर राजा को देते हैं।
    • कृषक सीधे राजा नहीं, बल्कि स्थानीय जमींदार/समन्त के अधीन रहते हैं।
🧱 2.2 सामंती संरचना (पिरामिड)
  • सबसे ऊपर: राजा / सम्राट।
  • फिर: महासमन्त, सामन्त, feudatory chiefs – भूमि व सेना के स्वामी।
  • उसके नीचे: छोटे ज़मींदार, ग्राम–प्रधान, पटवारी आदि।
  • सबसे नीचे: कृषक, श्रमिक, कारीगर – जो वास्तविक उत्पादन करते हैं।
2.3 मुख्य विशेषताएँ (MCQ के लिए)
  • भूमि पर सामंती अधिकार – परन्तु अंतिम स्वामित्व राजा का।
  • वंशानुगत अधिकार – सामन्त की पदवी व भूमि अक्सर पीढ़ी–दर–पीढ़ी चलती है।
  • राजा–समन्त–कृषक के बीच दायित्व व कर–संबंधों की जटिल प्रणाली।
  • कृषक पर अधिक भार – कर, बेगार, उपहार आदि।
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Mains Link: “भारतीय सामंतवाद” पर उत्तर लिखते समय ऊपर की तीन विशेषताएँ (भूमि–अनुदान, वंशानुगत समन्त, कृषक–केन्द्रित भार) ज़रूर जोड़ें – इससे उत्तर का स्ट्रक्चर मजबूत हो जाता है।

🌾 3. भूमि–व्यवस्था, भूमि–अनुदान व ज़मींदारी–जैसी संरचना

📜 3.1 भूमि–अनुदान (Land Grants)
  • राजा धार्मिक व्यक्तियों (ब्राह्मण), मंदिरों, मठों, अधिकारियों, सैनिकों को भूमि उपहार में देता था।
  • इस भूमि पर अनुदान–ग्राही को कर–वसूली, न्याय, पुलिस आदि के अधिकार भी मिल जाते थे।
  • शिलालेखों में भूमि–अनुदान का विस्तृत वर्णन – सीमाएँ, गाँव, कर–छूट आदि।
🏡 3.2 भूमि–अनुदान के प्रकार (सामान्य संकेत)
  • ब्राह्मदेय / अग्रहार: ब्राह्मणों को बसाए गए गाँव।
  • देवदाय / देवत्र: मंदिर/देवता को दी गई भूमि।
  • सैन्य/अधिकारी अनुदान: सेवा के बदले भूमि व अधिकार।
  • कई बार पूरा गाँव – निवासी सहित – “उपहार” में दे दिया जाता था।
⚖️ 3.3 प्रभाव – ज़मींदारी–जैसी संरचना
  • भूमि–अनुदान पाने वाले व्यक्ति स्थानीय जमींदार/सामन्त की तरह व्यवहार करने लगे।
  • कृषक का सीधा संपर्क राजा से टूट कर स्थानीय प्रभु से हो गया।
  • राज्य–राजस्व पर असर – कुछ भूमि कर–मुक्त हो जाती थी, जिससे केंद्र कमजोर होता है।

💰 4. कर–व्यवस्था (Tax System) – प्रारंभिक मध्यकाल

🌾 4.1 भूमि–कर व कृषि–कर
  • मुख्य कर – भूमि–राजस्व (उत्पादन का एक हिस्सा या नकद)।
  • अनुदानित भूमि पर कर कभी–कभी पूरी तरह माफ या अनुदान–ग्राही को स्थानांतरित।
  • कृषकों को अतिरिक्त बोझ – बीज, बैल, सिंचाई का खर्च भी अक्सर उन्हीं पर।
🛒 4.2 व्यापार–कर व अन्य कर
  • बाज़ार, रास्ता, पुल, नौका–घाट आदि पर कर लिया जाता था।
  • वस्तुओं के आवागमन पर अलग–अलग नाम से कर – लाघ, शुल्क, महसूल आदि।
  • पशु–कर, घर–कर, पेशा–कर जैसे स्थानीय कर भी प्रचलित।
🧱 4.3 बेगार (Forced Labour) व अन्य दायित्व
  • किसानों को सड़क–निर्माण, किले–निर्माण, शाही–काम के लिए बेगार करना पड़ता था।
  • इसे कई जगह अलग–अलग नाम से जाना जाता है (जैसे विस्टी आदि)।
  • यह भी सामंती दायित्व का हिस्सा – कृषक का श्रम मुफ्त या कम मुआवजे पर।
📊
Prelims Formula: सामंतवाद = भूमि–अनुदान + कर–छूट + बेगार + वंशानुगत समन्त चारों दिख जाएँ तो समझो प्रश्न “सामंती संरचना” पर है।

🛡️ 5. राजपूत व अन्य क्षेत्रीय राजवंशों की प्रशासनिक पद्धतियाँ

🏹 5.1 राजपूत राज्यों की सामान्य विशेषताएँ
  • गुर्जर-प्रतिहार, चौहान, परमार, सोलंकी आदि – साम्राज्य नहीं, पर क्षेत्रीय शक्तियाँ
  • प्रशासन में वंशानुगत राजपूत सामन्त, ठाकुर, राणा, राव आदि का वर्चस्व।
  • किले–आधारित शासन – पहाड़ी/किलाबंद नगरों से शासन चलाना।
🧬 5.2 सामन्त–राजा संबंध
  • समन्त राजा को सैन्य सहायता, कर/उपहार, दरबार में हाज़िरी देते थे।
  • राजा उन्हें भूमि, उपाधि, हिस्सेदारी देता – बदले में निष्ठा अपेक्षित।
  • कई बार समन्त शक्तिशाली होकर स्वयं राज्य–स्थापक बन जाते (नए राजपूत वंश)।
📜 5.3 प्रशासनिक स्तर (सार)
  • राजा – शीर्ष पर, प्रतीकात्मक व वास्तविक दोनों अधिकार।
  • समन्त/महा–समन्त – प्रांत/क्षेत्र के प्रभारी।
  • ग्रामीण स्तर – मुखिया, ग्राम–सभा, पटवारी आदि।
  • तंत्र “केंद्र से अधिक स्थानीय” – यही सामंतवाद की मुख्य पहचान।

📌 6. सामंतवाद व भूमि–अनुदान के परिणाम – राजनीति, समाज व अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

🏛️ 6.1 राजनीतिक प्रभाव
  • केंद्रीय सत्ता अपेक्षाकृत कमजोर – क्षेत्रीयकरण (Regionalisation) तेज।
  • समन्त समय–समय पर विद्रोह कर स्वतंत्र हो जाते, नए राज्य बनते।
  • विदेशी आक्रमणों (जैसे तुर्क) के समय एकजुट प्रतिरोध कठिन।
👥 6.2 सामाजिक प्रभाव
  • कृषक वर्ग पर कर, बेगार, सामाजिक–नियंत्रण – स्थिति जटिल।
  • स्थानीय प्रभुओं / राजपूतों / सामन्तों की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ी।
  • जाति–आधारित विभाजन व ग्राम–समाज की पदानुक्रमित संरचना मजबूत।
💹 6.3 आर्थिक प्रभाव
  • कृषि–अधिशेष का बड़ा हिस्सा सामन्तों व धार्मिक संस्थाओं के हाथ में।
  • कुछ क्षेत्रों में सिंचाई, मंदिर–निर्माण, सड़क–निर्माण आदि में निवेश भी हुआ।
  • परन्तु समग्र रूप से कृषक के हिस्से में कम लाभ और असमानता अधिक।
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Mains निष्कर्ष–लाइन:
“प्रारंभिक मध्यकालीन भारत का प्रशासनिक ढाँचा ‘राजा–समन्त–कृषक’ त्रिकोण पर टिका था, जहाँ भूमि–अनुदान और सामंती अधिकारों ने एक ओर तो स्थानीय स्तर पर शासन को विकेन्द्रीकृत किया, पर दूसरी ओर केंद्र की शक्ति व कृषक की स्थिति दोनों को कमजोर भी बनाया।”
भाग – 2 : Quick Revision Notes – प्रशासन, सामंतवाद व भूमि व्यवस्था (शॉर्ट नोट्स)
3–4 Min Revision
Prelims + Mains के लिए मुख्य बिंदु – सीधी, हिंदी में Revision Friendly Points
🏰 1. सामंतवाद – Key Idea
  • राजा भूमि/अधिकार समन्तों को देता, बदले में सेना, कर व निष्ठा लेता।
  • कृषक का सीधा संपर्क स्थानीय जमींदार/समन्त से।
  • राज्य–सत्ता का विकेन्द्रीकरण, क्षेत्रीयकरण में तेज़ी।
King–Samant–Peasant
🌾 2. भूमि–अनुदान व प्रकार
  • ब्राह्मदेय/अग्रहार – ब्राह्मण ग्राम; देवदाय – मंदिर हेतु भूमि।
  • अधिकार – कर–वसूली, न्याय, पुलिस आदि।
  • कई बार पूरा गाँव – निवासी सहित – अनुदान में।
Land Grants
💰 3. कर–व्यवस्था
  • मुख्य – भूमि–राजस्व; साथ में बाजार, रास्ता, पशु–कर।
  • अनुदानित भूमि पर कर–छूट या अनुदान–ग्राही को अधिकार।
  • कृषकों पर बेगार व अन्य दायित्व।
Land Tax Begar
🛡️ 4. राजपूत प्रशासन
  • राजा – ऊपर, नीचे राजपूत सामन्त/ठाकुर/राव।
  • किले–आधारित शासन, वंशानुगत अधिकार।
  • केंद्र से ज्यादा स्थानीय शक्ति–केंद्र महत्वपूर्ण।
Rajput Polity
📉 5. राजनीतिक–आर्थिक प्रभाव
  • केंद्रीय सत्ता कमजोर, क्षेत्रीयकरण मज़बूत।
  • कृषक पर कर व बेगार का बोझ – असमानता।
  • विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध एकजुट रक्षा कठिन।
Regionalisation
🧠 6. GS–1 Answer Line
  • “प्रारंभिक मध्यकालीन भारत का राजनीतिक ढाँचा सामंती–स्वरूप का था, जिसमें प्रशासन भूमि–अनुदान और समन्तों के माध्यम से चलता था।”
Ready to Write
भाग – 3 : PYQ / One Liners – प्रशासन, सामंतवाद व भूमि व्यवस्था (Show / Hide Answer)
40 High Yield Qs
फोकस: सामंतवाद की परिभाषा, विशेषताएँ, भूमि–अनुदान, कर–व्यवस्था, सामंती पदानुक्रम, राजपूत व अन्य क्षेत्रीय राजवंशों के प्रशासन व प्रभाव – हर प्रश्न के साथ थोड़ी विस्तृत व्याख्या ताकि concept + fact दोनों clear हों।
Q1. प्रारंभिक मध्यकालीन भारत में “सामंतवाद” शब्द से क्या आशय है? 👁️Show / Hide
उत्तर (संक्षिप्त पर व्याख्यात्मक):
सामंतवाद से आशय उस व्यवस्था से है जिसमें राजा भूमि, अधिकार व पद को स्थानीय सामन्तों को दे देता है और बदले में उनसे सैन्य सेवा, कर व निष्ठा प्राप्त करता है। इस व्यवस्था में कृषक प्रत्यक्ष रूप से राजा के बजाय सामन्तों के अधीन हो जाते हैं।
UPSC/PCS में यह अवधारणा–आधारित प्रश्न है – केवल परिभाषा नहीं, “राजा–समन्त–कृषक” त्रिकोण लिखना scoring होता है।
Q2. सामंतवाद में सबसे ऊपर कौन होता था – राजा या समन्त? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: राजा।
सामंती पिरामिड में राजा औपचारिक रूप से सर्वोच्च होता है, लेकिन practically कई बार शक्तिशाली समन्त भी लगभग स्वतंत्र शासक की तरह व्यवहार करते थे। यह “de jure–de facto” अंतर mains उत्तर में उल्लेखनीय है।
Q3. सामंतवाद में “समन्त” राजा को मुख्यतः क्या प्रदान करते थे – सैन्य सेवा या धार्मिक अनुष्ठान? 👁️Show / Hide
उत्तर: सैन्य सेवा (साथ ही कर/उपहार व निष्ठा)।
समन्त अपने क्षेत्र से सैनिक व संसाधन जुटाकर राजा की मदद करते थे। इसलिए उन्हें भूमि–अनुदान व अधिकार दिए जाते थे – यह “service for land” मॉडल है।
Q4. सामंतवाद में कृषक का सीधा संपर्क सामान्यतः किससे होता था – राजा से या स्थानीय प्रभु से? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: स्थानीय प्रभु / समन्त / जमींदार से।
यह बदलाव बहुत महत्वपूर्ण है – इससे कृषक की स्थिति पर सीधा प्रभाव पड़ता है, और centralized state की ताकत कम दिखाई देती है। MCQ + Mains दोनों में काम आता है।
Q5. “ब्राह्मदेय” या “अग्रहार” किस प्रकार का भूमि–अनुदान था? 👁️Show / Hide
उत्तर: ब्राह्मणों को दिए गए ग्राम या भूमि–अनुदान।
ऐसे गाँवों में ब्राह्मणों को कर–छूट, स्वशासन व स्थानीय अधिकार मिलते थे। South + North दोनों क्षेत्रों में यह प्रचलित था – Map से जोड़कर याद रख सकते हैं।
Q6. “देवदाय” या “देवत्र” के रूप में दी गई भूमि का मुख्य उद्देश्य क्या था? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: मंदिर/देवता की सेवा के लिए, अर्थात धार्मिक संस्थाओं को आय–स्रोत देना।
इससे मंदिर आर्थिक–सामाजिक केन्द्र बन गए, जो बाद में “मंदिर–केंद्रित अर्थव्यवस्था” का हिस्सा है – यह बिंदु South Indian topics से भी जुड़ जाता है।
Q7. क्या भूमि–अनुदान केवल धार्मिक व्यक्तियों तक सीमित थे? 👁️Show / Hide
उत्तर: नहीं।
भूमि–अनुदान ब्राह्मणों व मंदिरों के अलावा अधिकारियों, सैनिकों, कवियों, कारीगरों को भी दिए जाते थे। इससे प्रशासन व सैन्य व्यवस्था सामंती रूप से बँध जाती थी – यह “service land” मॉडल की व्यापकता दिखाता है।
Q8. भूमि–अनुदान के कारण कई क्षेत्रों में कर किसके पास जाने लगा – राजा के खजाने में या अनुदान–ग्राही के हाथ में? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: अनुदान–ग्राही (जैसे ब्राह्मण, मंदिर, अधिकारी) के हाथ में।
इससे राज्य–खजाने की सीधी आय घटी, लेकिन स्थानीय स्तर पर धार्मिक व सामंती प्रभुओं की आर्थिक शक्ति बढ़ गई – यही केंद्रीकृत राज्य से सामंती राज्य की ओर बदलाव है।
Q9. सामंती व्यवस्था में कृषक पर कौन–कौन से भार पड़ते थे? दो मुख्य बिंदु लिखिए (कर + श्रम)। 👁️Show / Hide
उत्तर के बिंदु:
1. भूमि–कर, उपज का हिस्सा, विभिन्न स्थानीय कर (पशु, बाजार, घर आदि)।
2. बेगार/मुफ़्त श्रम – सड़क, किला, तालाब, शाही–काम आदि के लिए।
Mains में “कृषक की स्थिति” पर प्रश्न आए तो कर + बेगार + सामाजिक–नियंत्रण तीनों dimension से लिखना scoring रहता है।
Q10. प्रारंभिक मध्यकाल में कर–संग्रह की प्रक्रिया अधिक केंद्रीकृत थी या स्थानीय–केंद्रित? 👁️Show / Hide
सही विश्लेषण: स्थानीय–केंद्रित।
कर–संग्रह की जिम्मेदारी अक्सर स्थानीय सामन्त, जमींदार, ग्राम–प्रधान आदि के हाथ में थी। राज्य के अधिकारी कभी–कभी केवल ऊपरी हिस्सा लेने आते, पूरी प्रक्रिया decentralized थी।
Q11. “समन्त” शब्द का प्रारंभिक अर्थ क्या था – शत्रु या सहयोगी? 👁️Show / Hide
उत्तर: पहले “शत्रु” या प्रतिद्वन्द्वी, बाद में “अधीनस्थ सहयोगी राजा/प्रमुख” के अर्थ में।
प्रारंभ में समन्त = शत्रु, बाद में पराजित/अधीन राजा जो सेवा व निष्ठा देकर सामन्त बन जाता है – यह अर्थ–विकास इतिहास–लेखन में महत्वपूर्ण चर्चा का विषय है।
Q12. क्या समन्तों के पद सामान्यतः वंशानुगत हो जाते थे? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: हाँ, धीरे–धीरे अधिकांश सामंती पद वंशानुगत होने लगे।
इससे स्थानीय प्रभु अपने क्षेत्र को “अपना राज्य” मानने लगे और समय–समय पर स्वतंत्रता–घोषणा या विद्रोह भी संभव हुआ – यह fragmentation की जड़ है।
Q13. निम्न में से कौन–सा सामंतवाद की विशेषता नहीं है?
(अ) भूमि–अनुदान
(ब) वंशानुगत सामन्त
(स) कृषक की सीधी अधीनता समन्त के अधीन
(द) अत्यधिक केंद्रीकृत नौकरशाही
👁️Show / Hide
गलत विकल्प: (द) अत्यधिक केंद्रीकृत नौकरशाही।
सामंतवाद की विशेषता ही यह है कि प्रशासन व कर–संग्रह अधिकतर स्थानीय सामन्तों के हाथ में होते हैं, मौर्य–जैसी centralized bureaucracy यहाँ नहीं दिखती।
Q14. प्रारंभिक मध्यकाल में राजपूत राजवंशों का प्रशासन किस प्रकार के ढाँचे पर अधिक आधारित था – सामंती या आधुनिक नौकरशाही? 👁️Show / Hide
सही विश्लेषण: सामंती ढाँचा।
राजपूत राज्यों में राजा के नीचे अनेक ठाकुर, राणा, राव, जमींदार आदि थे, जो क्षेत्रीय प्रभु और सैनिक–नेता दोनों थे – यह पूरी तरह सामंती संरचना है।
Q15. क्या प्रारंभिक मध्यकालीन सामंतवाद ने क्षेत्रीयकरण (Regionalisation) को बढ़ावा दिया? 👁️Show / Hide
उत्तर: हाँ, बहुत अधिक।
अलग–अलग क्षेत्रों में स्वतंत्र या अर्ध–स्वतंत्र राजपूत, पाल, राष्ट्रकूट, चोल आदि सामंती ढाँचे के भीतर उभरे – यह “अखिल भारतीय साम्राज्य” से “क्षेत्रीय राज्यों” की ओर बदलाव है।
Q16. सामंतवाद के कारण केंद्रीय राजस्व (खजाना) पर सामान्यतः क्या प्रभाव पड़ता था – बढ़ता या घटता? 👁️Show / Hide
विश्लेषण: सामान्यतः घटता।
भूमि–अनुदान और कर–छूट के कारण बहुत–सा राजस्व स्थानीय समन्तों व धार्मिक संस्थाओं के पास रह जाता, जिससे केंद्रीय खजाने की सीधी आय सीमित हो जाती थी – यह राज्य की सैन्य–ताकत को भी प्रभावित करता है।
Q17. क्या सामंतवाद के कुछ सकारात्मक पक्ष भी थे? (जैसे स्थानीय विकास) – 1–2 बिंदु लिखिए। 👁️Show / Hide
संकेतात्मक उत्तर:
1. कई समन्तों ने अपने क्षेत्रों में मंदिर, तालाब, सड़क, धर्मशाला आदि निर्माण कराए।
2. स्थानीय स्तर पर प्रशासन व विवाद–निपटान अक्सर तेज़ होता था (क्योंकि निर्णय पास के प्रभु लेते थे)।
Mains में balanced view दिखाने के लिए 1–2 सकारात्मक बिंदु हमेशा जोड़ें, केवल नकारात्मक न लिखें।
Q18. सामंतवाद और तुर्क–आक्रमणों के बीच क्या संबंध है? – एक वाक्य में विश्लेषण दीजिए। 👁️Show / Hide
Line: “सामंतवाद ने उत्तर भारत को अनेक प्रतिस्पर्धी छोटे राज्यों में बाँट दिया, जिससे तुर्क–आक्रमणों के समय कोई मजबूत, एकजुट प्रतिरोध तैयार नहीं हो पाया।”
यह लाइन GS–1 के long answer में बहुत काम की है, खासकर “Political Fragmentation” context में।
Q19. क्या सामंतवाद केवल उत्तर भारत तक सीमित था? 👁️Show / Hide
विश्लेषणात्मक उत्तर: नहीं।
सामंतवाद के तत्त्व उत्तर, दक्षिण, पूर्व – सभी क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में दिखाई देते हैं। दक्षिण में भी भूमि–अनुदान, नाडु, सभा, सामन्त–जैसी संरचनाएँ मिलती हैं – इसलिए इसे “subcontinental pattern” के रूप में पढ़ा जाता है।
Q20. “किसान और जमीन के बीच समन्त/जमींदार की मध्यवर्ती परत” – यह किस व्यवस्था की पहचान है? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: सामंती/ज़मींदारी व्यवस्था।
आधुनिक समय तक भी कई रूपों में यही संरचना दिखती है – UPSC mains में continuity दिखाने के लिए आप इसे “pre-colonial to colonial land revenue systems” से जोड़ सकते हैं।
Q21. राजपूत राज्यों में आम तौर पर कौन–सा तत्व अधिक महत्वपूर्ण था – खून–खानदान (वंश) या योग्यता–आधारित नियुक्ति? 👁️Show / Hide
विश्लेषण: वंश, कुल, खून–खानदान।
राजपूत राजनीति में “कुलीनता, वंश, क्षत्रिय–आदर्श” की प्रमुख भूमिका थी। इससे प्रशासन में merit की जगह वंशानुगत पद अधिक प्रचलित रहे – यह सामंतवाद की विशेषता भी है।
Q22. क्या सभी समन्त हमेशा वफादार रहे, या वे कभी–कभी स्वयं स्वतंत्र राज्य बना लेते थे? 👁️Show / Hide
उत्तर: अनेक समन्त अवसर मिलने पर स्वयं स्वतंत्र राज्य बना लेते थे।
इतिहास में कई राजवंश (विशेषकर राजपूत) पहले किसी बड़े साम्राज्य के समन्त थे, फिर सत्ता–संकट के समय उन्होंने खुद को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया – यह “segmentary polity” की खासियत है।
Q23. सामंतवाद में न्याय–व्यवस्था किसके हाथ में अधिक थी – केंद्रीय न्यायालय या स्थानीय प्रभु? 👁️Show / Hide
व्यावहारिक उत्तर: स्थानीय प्रभु/समन्त के हाथ में।
भूमि–अनुदान में कई बार “न्याय, दंड–अधिकार” भी समन्त को दिए जाते थे। इससे गाँव–समाज का न्याय–तंत्र स्थानीय स्तर पर ही सुलझ जाता था, लेकिन कभी–कभी पक्षपात व शक्ति–दुरुपयोग की समस्या भी बढ़ती थी।
Q24. क्या प्रारंभिक मध्यकाल में “पूरे गाँव” को भूमि–अनुदान के रूप में देना सामान्य घटना थी? 👁️Show / Hide
उत्तर: हाँ, कई शिलालेखों में पूरे गाँव/ग्राम–समुदाय के अनुदान का उल्लेख है।
इसका अर्थ यह था कि उस गाँव के कृषक, कर, तालाब, जंगल सब अनुदान–ग्राही के अधिकार क्षेत्र में आ जाते थे – यह सामंती शक्ति के विस्तार का स्पष्ट उदाहरण है।
Q25. “सामंतवाद = भूमि के बदले सेवा” – इस सूत्र की व्याख्या 1–2 पंक्तियों में कीजिए। 👁️Show / Hide
Line: “राजा समन्त को भूमि, अधिकार व उपाधि देता है; बदले में समन्त सेना, कर व निष्ठा प्रदान करता है। यह आपसी संबंध ‘Land for Service’ मॉडल पर आधारित होता है – यही सामंतवाद का मूल आधार है।”
UPSC में concept पूछने पर यह लाइन सीधे लिख सकते हैं।
Q26. राजपूत राजवंशों की सैन्य–शक्ति मुख्यतः किन पर आधारित थी – स्थायी सेना या सामन्तों की सेनाओं पर? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: सामन्तों/ठाकुरों की सेनाओं पर।
युद्ध के समय समन्त अपने–अपने सैनिक लेकर राजा के साथ मिलते थे – यही कारण है कि सामन्तों की निष्ठा टूटते ही सेना भी बिखर जाती थी।
Q27. सामंतवाद के कारण नगरीकरण (Urbanisation) पर क्या प्रभाव पड़ा – पूरी तरह नकारात्मक या मिश्रित? 👁️Show / Hide
विश्लेषण: मिश्रित प्रभाव।
कुछ क्षेत्रों में सामंती ढाँचे के कारण व्यापार व नगर–संरचना कमजोर हुई, लेकिन कई मंदिर–नगर, किले–नगर व बाजार–कस्बे भी विकसित हुए। इसलिए एक ही शब्द “decline” कह देना oversimplification होगा।
Q28. क्या सामंती ढाँचे ने “स्थानीय पहचान” और “क्षेत्रीय संस्कृति” को प्रोत्साहित किया? 👁️Show / Hide
उत्तर: हाँ, काफी हद तक।
अलग–अलग क्षेत्रों में स्थानीय राजवंश, भाषा, मंदिर, साहित्य, लोक–परंपराएँ विकसित हुईं। सामन्तों ने अपने क्षेत्र की संस्कृति को बढ़ावा दिया – यह “Regional Cultures” का महत्वपूर्ण आधार है।
Q29. “Segmentary State” (खंडित राज्य) की अवधारणा किस प्रकार के प्रशासन से जुड़ी है – केंद्रीकृत या सामंती? 👁️Show / Hide
सही उत्तर: सामंती/विकेन्द्रीकृत।
Segmentary state में केंद्र और परिधि के बीच authority बराबर नहीं होती; कई स्तरों पर शक्ति बँटी रहती है – यह सामंतवाद की दिशा में जाने वाली संरचना है।
Q30. “कृषक के पास भूमि पर स्वामित्व कम, दायित्व अधिक” – यह किस व्यवस्था की आलोचना है? 👁️Show / Hide
उत्तर: सामंती/ज़मींदारी व्यवस्था की।
किसान जमीन जोतता है, पर स्वामित्व व नियंत्रण समन्त/जमींदार के पास; इसलिए शोषण व निर्भरता बढ़ती है – यह line GS–1 + Sociology दोनों में उपयोगी है।
Q31. क्या सामंतवाद के कारण “tax–in–kind” (उपज के रूप में कर) ज्यादा प्रचलित रहा या cash–tax? 👁️Show / Hide
विश्लेषण: अधिकांश क्षेत्रों में उपज–आधारित (kind) कर अधिक प्रचलित।
Cash economy इतनी विकसित नहीं थी; सामन्त अनाज, घी, वस्त्र, पशु आदि के रूप में कर लेते, फिर उस अधिशेष से सेना व दरबार चलाते – यह भी exam में महत्वपूर्ण point है।
Q32. “Land Grant Epigraphy” (भूमि–अनुदान शिलालेख) हमें किस–किस बात की जानकारी देते हैं? दो बिंदु लिखिए। 👁️Show / Hide
संकेत:
1. प्रशासनिक ढाँचा – राजा, समन्त, गाँव, अधिकारियों के नाम व पद।
2. कर–प्रणाली, कर–छूट, भूमि की सीमा, गाँव की भौगोलिक स्थिति व सामाजिक संरचना।
GS–1 में “Sources of Early Medieval History” लिखते समय Land Grant inscriptions ज़रूर लिखें।
Q33. क्या सामंतवाद के कारण “आज़ाद कृषक” (independent peasant) की संख्या बढ़ी या घटी? 👁️Show / Hide
विश्लेषण: स्वतंत्र कृषक की स्थिति कमजोर हुई, निर्भर कृषक अधिक।
कई स्वतंत्र कृषक धीरे–धीरे सामन्तों के अधीन आकर अधिक नियंत्रित हो गए – यह सामाजिक–आर्थिक स्तर पर dependency का विस्तार था।
Q34. “राजा–समन्त–कृषक” त्रिकोण में सबसे कमजोर कड़ी कौन थी – और क्यों? 👁️Show / Hide
उत्तर: कृषक।
क्योंकि भूमि पर उनका नियंत्रण कम, कर–भार अधिक, और सामाजिक–राजनीतिक शक्ति न्यूनतम थी। उनके ऊपर राजा व समन्त दोनों का दबाव था – यह “double burden” mains में लिखना अच्छा point है।
Q35. “सामंतवाद = Political Decentralisation + Social Hierarchy” – इस सूत्र की व्याख्या 2 पंक्तियों में कीजिए। 👁️Show / Hide
Mains Line: “सामंतवाद के अंतर्गत राजनीतिक शक्ति अनेक सामन्तों के बीच बँट जाती है, जिससे केंद्रीकृत सत्ता कमजोर होती है (Political Decentralisation); साथ ही समाज में राजा–समन्त–जमींदार–कृषक जैसी कठोर ऊँच–नीच पर आधारित पदानुक्रम खड़ा हो जाता है (Social Hierarchy)।”
यह लाइन सीधा GS–1 में theoretical part के लिए ready–made है।
Q36. क्या सामंतवाद का उदय अचानक हुआ या गुप्त–उत्तर काल से धीरे–धीरे विकसित हुआ? 👁️Show / Hide
विश्लेषण: धीरे–धीरे विकसित हुआ।
गुप्त काल में भी भूमि–अनुदान शुरू हो चुके थे; प्रारंभिक मध्यकाल में यह प्रवृत्ति अधिक व्यापक व गहरी हो गई – यह continuity दिखाना UPSC के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
Q37. “राजपूत राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्तिगत पराक्रम (bravery) और सामन्तीय निष्ठा” – इस कथन पर 2 पंक्तियों में टिप्पणी कीजिए। 👁️Show / Hide
Mains Comment: “राजपूत प्रशासन केवल दफ्तरों पर नहीं, बल्कि युद्ध–क्षेत्र में दिखाए गए व्यक्तिगत पराक्रम और सामन्तों की निष्ठा पर टिका था। वीरता व वंश–गौरव राजनीतिक वैधता के मुख्य स्तंभ थे, पर यही भावनात्मक मॉडल कभी–कभी व्यावहारिक सैन्य–रणनीति पर भारी पड़ जाता था।”
यह comment analytical answer में उच्च गुणवत्ता दिखाता है।
Q38. सामंतवाद के दौरान “मंदिर, मठ, ब्राह्मण–ग्राम” किस प्रकार के power centres बन गए? 👁️Show / Hide
उत्तर: धार्मिक के साथ–साथ आर्थिक व राजनीतिक power centres।
इनके पास भूमि, कर–छूट, दान, अनुदान, विद्वान, शिल्पी, कारीगर – सब एक साथ थे; इसलिए वे केवल पूजा–स्थल नहीं, बल्कि influence hubs बन गए – इसे “Temple–Centric Feudalism” भी कहा जा सकता है।
Q39. यदि प्रश्न आए – “प्रारंभिक मध्यकालीन भारत सामंती समाज था” – तो उत्तर में तीन headings कौन–सी रखें? 👁️Show / Hide
  • (1) राजनीतिक पक्ष: राजा–समन्त–कृषक त्रिकोण, भूमि–अनुदान, विकेन्द्रीकरण।
  • (2) आर्थिक पक्ष: भूमि–आधारित अर्थव्यवस्था, कर–छूट, बेगार, कृषक–शोषण।
  • (3) सामाजिक पक्ष: पदानुक्रमित समाज, स्थानीय प्रभुओं का वर्चस्व, धार्मिक–संस्थाओं की भूमिका।
इसी structure से answer लिखोगे तो 10–15 marks के लिए भी content clear व व्यवस्थित रहेगा।
Q40. निष्कर्षात्मक प्रश्न – “सामंतवाद ने प्रारंभिक मध्यकालीन भारत को कमजोर भी किया और विविध भी बनाया।” – 3 पंक्तियों का मॉडल निष्कर्ष लिखिए। 👁️Show / Hide
Model Conclusion:
“सामंतवाद ने एक ओर तो केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर भारत को अनेक प्रतिद्वन्द्वी राज्यों में बाँट दिया, कृषक वर्ग पर अतिरिक्त भार डाला और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध सामूहिक प्रतिरोध को कठिन बना दिया; लेकिन दूसरी ओर इसने क्षेत्रीय राजवंशों, स्थानीय संस्कृति, मंदिर–नगरों व भाषा–साहित्य को उभरने का अवसर भी दिया। इस प्रकार प्रारंभिक मध्यकालीन भारत की शक्ति और कमजोरी दोनों सामंतवाद से गहराई से जुड़ी थीं।”
यह निष्कर्ष GS–1 में सीधे उपयोगी है, और balanced दृष्टिकोण दिखाता है।

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