सामुदायिक विकास वह सतत प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से स्थानीय समुदाय के लोग स्वयं की भागीदारी से अपनी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों में सुधार करते हैं।
इसका मूल विचार यह है कि विकास ऊपर से थोपे जाने के बजाय नीचे से ऊपर (Bottom-Up Approach) होना चाहिए।
- जनभागीदारी – समुदाय स्वयं निर्णय प्रक्रिया में शामिल
- आत्मनिर्भरता – स्थानीय संसाधनों का उपयोग
- सामूहिक प्रयास – व्यक्तिगत नहीं, सामुदायिक विकास
- सतत प्रक्रिया – एक बार का कार्यक्रम नहीं
सामुदायिक विकास किसी भी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली की आधारशिला होता है क्योंकि यह:
- लोकतंत्र को जमीनी स्तर तक पहुँचाता है
- सत्ता के विकेंद्रीकरण को मजबूत करता है
- नागरिकों को सक्रिय नागरिक बनाता है
जनभागीदारी का अर्थ है — नागरिकों की सक्रिय भूमिका न केवल चुनाव में, बल्कि नीति निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन में भी।
- चुनावों में मतदान
- ग्राम सभा / वार्ड सभा में भागीदारी
- स्थानीय योजनाओं की निगरानी
भारत में 73वाँ संविधान संशोधन (1992) पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देता है, जिससे सामुदायिक विकास को कानूनी आधार मिला।
- तीन-स्तरीय संरचना – ग्राम, ब्लॉक, जिला
- स्थानीय योजनाओं का निर्माण
- विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन
- विकास नीतियों का निर्माण
- वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता
- प्रशासनिक सहायता
- प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण
सरकार सुविधाकर्ता (Facilitator) की भूमिका निभाती है, न कि केवल आदेश देने वाली संस्था।
गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और नागरिक समाज सरकार और जनता के बीच सेतु (Bridge) का कार्य करते हैं।
- जागरूकता फैलाना
- सरकारी योजनाओं की निगरानी
- कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण
- जनभागीदारी की कमी
- प्रशासनिक भ्रष्टाचार
- संसाधनों की असमान उपलब्धता
- राजनीतिक हस्तक्षेप
सामुदायिक विकास और राजनीतिक प्रणाली का अध्ययन यह समझने में मदद करता है कि लोकतंत्र केवल चुनाव नहीं, बल्कि निरंतर सहभागिता की प्रक्रिया है।
- जनसहभागिता आधारित विकास
- Bottom–Up Approach
- स्थानीय समस्याओं का स्थानीय समाधान
- आत्मनिर्भरता का विकास
- लोकतांत्रिक चेतना का विस्तार
- सामाजिक–आर्थिक सुधार
- सत्ता + शासन + नीति निर्माण
- संविधान आधारित
- लोकतांत्रिक ढांचा
- लोकतंत्र की आत्मा
- चुनाव + ग्राम सभा
- नीति निगरानी में भूमिका
- 73वाँ संविधान संशोधन
- स्थानीय स्वशासन
- विकेंद्रीकरण का आधार
- सामुदायिक विकास की आत्मा
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र
- योजनाओं की स्वीकृति
- नीति निर्माण
- वित्तीय सहायता
- Facilitator की भूमिका
- नीति क्रियान्वयन
- स्थानीय स्तर पर निगरानी
- सेवा वितरण
- सरकार–जनता सेतु
- जागरूकता
- कमजोर वर्ग सशक्तिकरण
- जनभागीदारी की कमी
- भ्रष्टाचार
- राजनीतिक हस्तक्षेप
- सत्ता का नीचे स्थानांतरण
- स्थानीय निर्णय क्षमता
- उत्तरदायित्व में वृद्धि
- Strong Community = Strong Democracy
- Participation over Prescription
- Development with People
- Bottom-Up = Community Development
- Top-Down = Centralized Planning
- Gram Sabha = Direct Democracy
- सामुदायिक विकास = सतत प्रक्रिया
- लोकतंत्र = निरंतर सहभागिता
- स्थानीय निकाय = जमीनी शासन
- People first, policy later
- Decentralization empowers citizens
- Participation ensures accountability
2.6 से प्रश्न अक्सर जनभागीदारी, पंचायती राज, विकेंद्रीकरण और Statement-Based MCQ के रूप में पूछे जाते हैं।
इस समिति ने 1957 में पंचायती राज और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की संकल्पना प्रस्तुत की। इसके अनुसार शासन की शक्ति को जनता के निकट लाना आवश्यक है, ताकि स्थानीय स्तर पर विकास योजनाएँ प्रभावी रूप से लागू हो सकें।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास हेतु प्रारंभ किया गया। इसका उद्देश्य कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्थानीय भागीदारी को बढ़ावा देना था।
इसमें आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक विकास को एक साथ शामिल किया गया, ताकि ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार हो सके।
विकास तभी टिकाऊ होता है जब स्थानीय लोग योजनाओं में भाग लें और उन्हें लागू करने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
यह कार्यक्रम मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन और संसाधन विकास पर केंद्रित था।
विकासखंड को प्रशासनिक इकाई बनाया गया, जहाँ से विभिन्न विकास योजनाओं का संचालन किया जाता था।
एस. के. डे ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम को संस्थागत रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कार्यक्रम अधिकतर सरकारी नियंत्रण में रहा, जिससे स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी सीमित रह गई।
पंचायती राज ने सामुदायिक विकास को लोकतांत्रिक आधार प्रदान किया।
स्थानीय नेतृत्व से योजनाओं की स्वीकृति बढ़ती है और क्रियान्वयन अधिक प्रभावी होता है।
समुदाय के सभी वर्गों के सहयोग से ही विकास को स्थायी बनाया जा सकता है।
शिक्षा, स्वास्थ्य और आय में वृद्धि सामुदायिक विकास के प्रमुख लक्ष्य हैं।
इसमें जनता को निर्णय प्रक्रिया में सीधे शामिल किया जाता है।
प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य जोर कृषि और ग्रामीण विकास पर था।
यह कार्यक्रम विभिन्न वर्गों के बीच सहयोग और समानता को बढ़ावा देता है।
ब्लॉक स्तर पर ही विभिन्न विभागों का समन्वय होता है, जिससे विकास योजनाएँ सीधे ग्रामीण जनता तक पहुँचती हैं।
BDO विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित कर विकास योजनाओं को लागू करता है।
इससे जनता शासन प्रक्रिया में भाग लेती है और लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं।
यह कार्यक्रम संविधान में निहित समानता और कल्याणकारी राज्य की भावना को आगे बढ़ाता है।
SHG ग्रामीण महिलाओं और कमजोर वर्गों को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होते हैं।
दोनों व्यवस्थाएँ स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करती हैं।
कृषि उत्पादन बढ़ाकर ग्रामीण गरीबी को कम करना इसका उद्देश्य था।
पंचायती राज ने सामुदायिक विकास को लोकतांत्रिक ढाँचा प्रदान किया।
शिक्षा से लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझते हैं, जिससे विकास प्रक्रिया तेज होती है।
बेहतर स्वास्थ्य से कार्यक्षमता बढ़ती है और विकास की गति तेज होती है।
इसमें सरकार का लक्ष्य नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार होता है।
महिलाओं की भागीदारी से सामाजिक और आर्थिक विकास संतुलित होता है।
NGOs स्थानीय समस्याओं को समझकर सरकार और जनता के बीच सेतु का कार्य करते हैं।
ग्राम स्वराज और आत्मनिर्भरता सामुदायिक विकास की मूल प्रेरणा हैं।
इसमें योजनाओं का निर्माण ग्राम स्तर से प्रारंभ होता है।
अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, इसलिए विकास कृषि सुधार से जुड़ा है।
तकनीक से योजनाओं की निगरानी आसान होती है और भ्रष्टाचार कम होता है।
यह संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
कमजोर वर्गों को अवसर देकर विकास को संतुलित बनाया जाता है।
सामूहिक प्रयास से समाज में सहयोग और विश्वास बढ़ता है।
युवा वर्ग नई सोच और ऊर्जा से विकास प्रक्रिया को गति देता है।
पारदर्शिता से जनता का विश्वास बढ़ता है और योजनाओं का सही क्रियान्वयन होता है।
साझा उत्तरदायित्व से विकास योजनाएँ सफल होती हैं।
सहकारी समितियाँ छोटे उत्पादकों को बाज़ार और ऋण सुविधा प्रदान करती हैं।
परीक्षाओं में वर्ष, उद्देश्य, संस्था और सामुदायिक सहभागिता पर आधारित प्रश्न अधिक पूछे जाते हैं।
