सैय्यद वंश (1414–1451) स्मार्ट नोट्स हिंदी में | खिज्र खाँ से आलम शाह, तैमूर आक्रमण के बाद की स्थिति (UPSC, State PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police, All Exams)

सैय्यद वंश (1414–1451) स्मार्ट नोट्स हिंदी में | खिज्र खाँ से आलम शाह, तैमूर आक्रमण के बाद की स्थिति (UPSC, State PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police, All Exams)

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अध्याय 2 : दिल्ली सल्तनत – स्थापना व विस्तार
7️⃣ सैय्यद वंश (1414–1451) – कमजोर केंद्र, तैमूर के आक्रमण के बाद की स्थिति, खिज्र खाँ से आलमशाह तक
🏰 तैमूर आक्रमण, सैय्यद वंश, कमजोर सल्तनत, खिज्र खाँ, मुबारक शाह, आलम शाह 📝 UPSC, State PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु
🏰 मध्यकालीन भारत दिल्ली सल्तनत सैय्यद वंश (1414–1451)
📘 भाग – 1 : विस्तृत स्टडी नोट्स – सैय्यद वंश (1414–1451)
गहन अध्ययन – प्री + मेंस दोनों हेतु
🎯 कीवर्ड: सैय्यद वंश नोट्स, खिज्र खाँ, मुबारक शाह, मुहम्‍मद शाह, आलम शाह, तैमूर आक्रमण के बाद की स्थिति, कमजोर केंद्र, दिल्ली सल्तनत अंतिम चरण।

⚔️ 1. पृष्ठभूमि – तैमूर का आक्रमण और सल्तनत की टूटन

तैमूर (तैमूरलंग) का 1398 ई. में दिल्ली पर आक्रमण दिल्ली सल्तनत के लिए भारी विनाश लेकर आया। शहर उजड़ गया, अर्थ–व्यवस्था टूट गई, और तुगलक सत्ता का अधिकार लगभग नाम मात्र रह गया। इसी टूटी–फूटी स्थिति से आगे चलकर सैय्यद वंश की शुरुआत होती है।
  • तैमूर के लौट जाने के बाद दिल्ली और उसके आसपास की सत्ता कमजोर शासकों और स्थानीय सरदारों के हाथों में बँट गई।
  • राजनीतिक रूप से क्षेत्रीय राजवंश व सूबेदार अधिक शक्तिशाली हो रहे थे, केंद्र केवल नाम का बचा था।
  • इसी दौर में तैमूर के एक अधीन अधिकारी खिज्र खाँ आगे आते हैं और सैय्यद वंश की नींव रखते हैं।
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एग्ज़ाम टिप: “तैमूर का आक्रमण (1398) → तुगलक का पतन → सैय्यद वंश का उदय” – यह क्रम अक्सर कालानुक्रम (टाइम–लाइन) वाले प्रश्नों में पूछा जाता है।

🏰 2. सैय्यद वंश – सामान्य विशेषताएँ

  • काल – लगभग 1414 ई. से 1451 ई. तक (लगभग 37 वर्ष)।
  • स्थापना – खिज्र खाँ द्वारा; उसने तैमूर के नाम पर शासन स्वीकार किया, स्वयं “सुल्तान” की उपाधि नहीं ली।
  • केंद्र बहुत कमजोर, प्रांतीय सरदार व अन्य क्षेत्रीय राजवंश (जैसे मालवा, गुजरात, जौनपुर आदि) अधिक शक्तिशाली होते गए।
  • सैय्यद शासक अपने को पैग़म्बर मुहम्मद के वंशज (सैय्यद) मानते थे, जिससे धार्मिक–वैधता की भावना बनती थी।

📜 3. सैय्यद शासकों का क्रम (खिज्र खाँ से आलम शाह तक)

1️⃣ 3.1 खिज्र खाँ (1414–1421)
  • तैमूर द्वारा पंजाब क्षेत्र का शासक बनाया गया था; बाद में दिल्ली पर अधिकार स्थापित किया।
  • खुद को “रायते–आला” या “वली” जैसे पदनामों से संबोधित कराया, सुल्तान की उपाधि नहीं ली।
  • तैमूर के उत्तराधिकारियों (मध्य एशिया) के नाम पर खुत्बा पढ़वाई जाती थी, यानी औपचारिक अधीनता दिखाई गई।
  • उसका मुख्य ध्यान दिल्ली और आसपास के क्षेत्र को संभालने पर था, न कि व्यापक विजयों पर।
2️⃣ 3.2 मुबारक शाह (1421–1434)
  • खिज्र खाँ का उत्तराधिकारी, सैय्यद वंश का अपेक्षाकृत मजबूत शासक माना जाता है।
  • कुछ विद्रोहों को दबाया, दिल्ली के आसपास व गंगा–यमुना दोआब में प्रभाव पुनः बढ़ाने की कोशिश की।
  • खिज्राबाद” एवं कुछ नगरों का विकास किया, कुछ निर्माण कार्य भी कराए।
  • लेकिन आर्थिक व सैन्य संसाधन सीमित होने के कारण व्यापक स्थिरता नहीं ला पाया।
3️⃣ 3.3 मुहम्मद शाह (1434–1445)
  • मुबारक शाह के बाद गद्दी पर बैठा; उसके समय में केंद्र और कमजोर हो गया।
  • आंतरिक षड्यंत्र, सरदारों की बढ़ती शक्ति और आर्थिक संकट – ये मुख्य चुनौतियाँ रहीं।
  • प्रांतीय राजाओं व अफगान सरदारों की स्वायत्तता बढ़ती गई।
4️⃣ 3.4 आलम शाह (1445–1451)
  • सैय्यद वंश का अंतिम शासक; स्वभाव से कमजोर व विलासी बताया जाता है।
  • दिल्ली छोड़कर बदायूँ चला गया और वहीँ से शासन संभालने लगा।
  • अंततः उसने सत्ता बहलोल लोदी को सौंप दी – यहीं से लोदी वंश की शुरुआत होती है।
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एग्ज़ाम टिप (क्रम याद रखने का तरीका):
खि–मु–मु–आ” → खिज्र खाँ → मुबारक शाह → मुहम्मद शाह → आलम शाह। एक लाइन में चारों शासक – सीधे कालानुक्रम प्रश्न होल्ड हो जाते हैं।

⚠️ 4. कमजोर केंद्र और क्षेत्रीय शक्तियों का उभार

सैय्यद वंश के काल में दिल्ली केवल एक प्रतीकात्मक केंद्र बनकर रह गई थी। वास्तविक शक्ति कई बार प्रांतीय शासकों, राजपूतों, अफगान सरदारों व क्षेत्रीय सुल्तानों के हाथों में थी।
  • मालवा, गुजरात, जौनपुर, बहमनी जैसे स्वतंत्र राजवंश पहले ही उभर चुके थे।
  • राजपूत सरदार, दोआब के स्थानीय प्रमुख और अफगान नायक अपने–अपने क्षेत्रों में सत्ता स्थापित कर रहे थे।
  • सैय्यद शासक कर–उगाही के लिए अक्सर इन्हीं सरदारों पर निर्भर रहते, जो समय पर राजस्व न भी दें तो भी उन्हें मनाना पड़ता।
  • इसलिए केंद्र के आदेशों की वास्तविक पकड़ बहुत सीमित रह गई।

💰 5. प्रशासन व आर्थिक स्थिति

  • प्रशासनिक ढाँचा मूल रूप से सल्तनत का ही रहा – सुल्तान, दीवान, इक्ता, अमील आदि।
  • लेकिन राजस्व–संकट के कारण सेना की संख्या घटती गई, किले, नगर, सड़कों का रख–रखाव कमजोर हुआ।
  • तैमूर आक्रमण से व्यापार–धंधा पहले ही टूट चुका था; दिल्ली जैसे नगर पुराने वैभव तक वापस नहीं पहुँच सके।
  • सैय्यद शासक कभी–कभी कर–माफी या छूट भी देते, पर वित्तीय कमजोरी दूर न हो सकी।
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एग्ज़ाम टिप: यदि प्रश्न में “कमजोर केंद्र, क्षेत्रीय राज्यों का उभार, तैमूर के बाद का दौर” लिखा हो, तो ध्यान रखें कि यह प्रायः सैय्यद + प्रारंभिक लोदी काल की ओर संकेत होता है।

🧩 6. तैमूर के बाद की राजनीतिक स्थिति और सैय्यद वंश की भूमिका

  • तैमूर के जाने के बाद उत्तर भारत में अराजकता की स्थिति – लुटेरे दल, स्थानीय युद्ध, सत्ता–संघर्ष।
  • सैय्यद वंश ने कम से कम इतना किया कि दिल्ली में “सल्तनत की एक कड़ी” बनी रही, जिससे आगे चलकर लोदी वंश के लिए रास्ता तैयार हुआ।
  • सैय्यद शासकों ने बड़े साम्राज्य की बजाय दिल्ली–आधारित छोटी सत्ता को संभालने की कोशिश की।

⚖️ 7. सैय्यद वंश – मूल्यांकन

7.1 सकारात्मक बिंदु
  • तैमूर–विनाश के बाद दिल्ली में शासन–सततता बनाए रखी।
  • मुबारक शाह ने कुछ हद तक केंद्र को पुनर्जीवित करने की कोशिश की।
  • सल्तनत की परंपरा पूर्णतः टूटने नहीं दी; आगे के लोदी शासन के लिए आधार तैयार हुआ।
⚠️ 7.2 नकारात्मक बिंदु
  • सैन्य व आर्थिक दृष्टि से अत्यंत कमजोर, कोई बड़ा विजय अभियान नहीं।
  • क्षेत्रीय राज्यों पर प्रभाव बहुत सीमित, केवल “दिल्ली + आसपास” तक ही अधिकार।
  • अंतिम शासक आलम शाह की कमजोरी और बदायूँ जाना – केंद्र की पूर्ण गिरावट का प्रतीक।
सार रूप में सैय्यद वंश को “अंतराल (Transition) का वंश” कहा जा सकता है – तुगलक के पतन और लोदी के उदय के बीच कमजोर परन्तु आवश्यक कड़ी के रूप में।
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Mains के लिए सार वाक्य:
“सैय्यद वंश ने कोई बड़ा साम्राज्य नहीं बनाया, पर दिल्ली सल्तनत की टूटी हुई कड़ी को कुछ दशक तक जोड़कर रखा; यही उसकी सीमित परन्तु ऐतिहासिक भूमिका है।”
सैय्यद वंश नोट्स हिंदी में खिज्र खाँ से आलम शाह तक तैमूर आक्रमण के बाद की स्थिति दिल्ली सल्तनत अंतिम चरण
भाग – 2 : त्वरित पुनरावृत्ति – सैय्यद वंश (3–4 मिनट)
हिंदी क्विक रिवीज़न
UPSC, State PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police व अन्य एकदिवसीय परीक्षाओं के लिए तेज़ पुनरावृत्ति।
1️⃣ समय व क्रम
  • काल – 1414 से 1451 ई.।
  • शासक – खिज्र खाँ → मुबारक शाह → मुहम्मद शाह → आलम शाह।
  • सैय्यद – अपने को पैग़म्बर के वंशज मानने वाला वर्ग।
2️⃣ पृष्ठभूमि
  • 1398 – तैमूर का आक्रमण, दिल्ली का विनाश।
  • तुगलक सत्ता का पतन, अराजकता की स्थिति।
  • इसी से सैय्यद वंश के लिए जगह बनी।
3️⃣ विशेषताएँ
  • कमजोर केंद्र, प्रांतीय राज्यों की बढ़ती ताकत।
  • सैन्य व आर्थिक शक्ति सीमित।
  • सल्तनत की परंपरा जारी रखने की कोशिश।
4️⃣ महत्वपूर्ण शासक
  • खिज्र खाँ – संस्थापक, तैमूर की ओर से शासक।
  • मुबारक शाह – सबसे सक्रिय शासक।
  • आलम शाह – अंतिम, कमजोर शासक।
5️⃣ अंत और लोदी वंश
  • आलम शाह का बदायूँ जाना।
  • बहलोल लोदी को सत्ता सौंपना।
  • इस प्रकार लोदी वंश की शुरुआत।
6️⃣ परीक्षा–बिंदु
  • क्रम, काल, तैमूर से संबंध।
  • कमजोर केंद्र, क्षेत्रीय शक्ति–उभार।
  • लोदी वंश की ओर संक्रमण (Transition)।
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एग्ज़ाम टिप: “तैमूर आक्रमण + कमजोर दिल्ली + बहलोल लोदी का उदय” – तीनों को जोड़कर लिखने से Mains में अच्छा विश्लेषण निकलता है, और Prelims के लिए स्पष्ट मानसिक चित्र बन जाता है।
सैय्यद वंश क्विक रिवीज़न तैमूर के बाद की दिल्ली Medieval India short notes
भाग – 3 : PYQ व एक पंक्ति प्रश्न – सैय्यद वंश (Show / Hide + व्याख्या)
लगभग 35 प्रश्न + व्याख्या
यहाँ सैय्यद वंश पर आधारित वन–लाइनर + संक्षिप्त व्याख्या दी गई है। उत्तर देखने पर नीचे छोटा विश्लेषण भी मिलेगा, जिससे Pre + Mains दोनों के लिए समझ मजबूत हो।
Q1. सैय्यद वंश की स्थापना किसने की? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: खिज्र खाँ।
तैमूर का अधिकारी रहते हुए उसने दिल्ली पर अधिकार किया और 1414 ई. के आसपास सैय्यद शासन की नींव रखी।
Q2. सैय्यद वंश का शासनकाल लगभग किन वर्षों के बीच रहा? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: 1414 से 1451 ई. तक।
यानी लगभग 37 वर्ष; इसे दिल्ली सल्तनत के अंतिम चरणों में गिना जाता है, ठीक लोदी वंश से पहले।
Q3. किसके आक्रमण के बाद सैय्यद वंश के उभरने की स्थिति बनी? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: तैमूर (तैमूरलंग) के आक्रमण के बाद।
1398 ई. के आक्रमण ने दिल्ली को उजाड़ दिया; उसी विनाश के बाद नई राजनीतिक परिस्थितियाँ बनीं।
Q4. क्या खिज्र खाँ ने “सुल्तान” की उपाधि धारण की थी? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं।
वह स्वयं को तैमूर के उत्तराधिकारियों का प्रतिनिधि मानता था और उनके नाम पर खुत्बा पढ़वाता था; इसलिए उसने सुल्तान की उपाधि नहीं ली, केवल शासक–प्रतिनिधि की हैसियत रखी।
Q5. सैय्यद वंश के संदर्भ में “कमजोर केंद्र” से क्या आशय है? 👁️उत्तर देखें
संक्षिप्त उत्तर: दिल्ली की सत्ता केवल सीमित क्षेत्र तक प्रभावी थी, प्रांतीय शासक अधिक शक्तिशाली होते गए।
यानी आदेश पूरे उत्तर भारत पर लागू कराने की क्षमता नहीं थी; यही “weak central authority” का अर्थ है, जो कई परीक्षाओं में अवधारणा के रूप में पूछा जाता है।
Q6. सैय्यद वंश अपने को किस धार्मिक–वर्ग से संबंधित मानता था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सैय्यद, अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के वंशज।
इससे उन्हें धार्मिक वैधता व सम्मान मिलता था, जो राजनीतिक कमजोरी की भरपाई का एक साधन था।
Q7. सैय्यद वंश का सबसे सक्रिय व अपेक्षाकृत सक्षम शासक किसे माना जाता है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: मुबारक शाह।
उसने विद्रोह दबाए, दिल्ली–दोआब क्षेत्र में कुछ नियंत्रण पुनः स्थापित किया और निर्माण कार्य भी कराए।
Q8. सैय्यद वंश के चार शासकों का क्रम क्या है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: खिज्र खाँ → मुबारक शाह → मुहम्मद शाह → आलम शाह।
इसे “खि–मु–मु–आ” की ट्रिक से याद रखा जा सकता है, जो परीक्षा में बहुत मदद करती है।
Q9. सैय्यद वंश का अंतिम शासक कौन था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: आलम शाह।
उसी के समय सैय्यद सत्ता समाप्त हुई और लोदी वंश की शुरुआत हुई।
Q10. आलम शाह ने राजधानी दिल्ली के बजाय किस स्थान पर रहना पसंद किया? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: बदायूँ।
यह उसकी कमजोरी और शासन–प्रति उदासीनता का संकेत माना जाता है; दिल्ली पर सीधा नियंत्रण और भी कम हो गया।
Q11. किस अफगान सरदार को आलम शाह ने दिल्ली की सत्ता सौंप दी, जिसके बाद लोदी वंश की शुरुआत हुई? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: बहलोल लोदी।
बहलोल लोदी पहले से ही शक्तिशाली अफगान सरदार था; आलम शाह द्वारा सत्ता सौंपने से 1451 ई. में लोदी वंश प्रारंभ हुआ।
Q12. सैय्यद वंश के समय दिल्ली सल्तनत की भौगोलिक सीमा कैसी थी – व्यापक या सीमित? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: बहुत सीमित।
अधिकतर अधिकार केवल दिल्ली और निकटवर्ती क्षेत्रों तक सीमित रहा; बड़े प्रांत पहले ही अलग–अलग राज्यों में बँट चुके थे।
Q13. सैय्यद वंश के समय उत्तर भारत में कौन–कौन से स्वतंत्र या अर्ध–स्वतंत्र राज्य मज़बूत हो रहे थे? 👁️उत्तर देखें
संक्षिप्त उत्तर: मालवा, गुजरात, जौनपुर, बहमनी (दक्षिण), कई राजपूत व अफगान क्षेत्रीय राज्य।
यह स्थिति दिखाती है कि दिल्ली अब “सर्व–भारतीय” शक्ति नहीं रही थी, बल्कि कई केंद्रों में शक्ति बँट गई थी।
Q14. क्या सैय्यद वंश ने बड़े विजयी अभियान चलाए थे? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, लगभग नहीं के बराबर।
उनकी शक्ति सीमित थी; अधिकतर प्रयास केवल निकटवर्ती विद्रोहों को नियंत्रित करने तक सीमित रहे।
Q15. सैय्यद वंश को इतिहास में किस प्रकार का वंश कहा जाता है – स्वर्ण युग या संक्रमण (Transition) वंश? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: संक्रमण (Transition) वंश।
यह तुगलक और लोदी के बीच की कड़ी है; इसलिए इसे “युद्ध–विजय वाला स्वर्ण युग नहीं, बल्कि अंतराल–काल” माना जाता है।
Q16. क्या सैय्यद वंश के समय दिल्ली की आर्थिक स्थिति मज़बूत थी? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी।
तैमूर के विनाश, व्यापार–ह्रास और सीमित राजस्व–क्षेत्र के कारण खजाना कमजोर बना रहा।
Q17. खिज्र खाँ किस बाहरी शक्ति के अधीन रहते हुए आगे बढ़ा था – तैमूर या बाबर? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: तैमूर।
बाबर का समय बाद में मुगल काल से जुड़ा है; सैय्यदों का संबंध तैमूर के आक्रमण–उत्तर दौर से है।
Q18. क्या सैय्यद वंश ने पूरी तरह नई प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, अधिकतर सल्तनत–कालीन ढाँचा ही चलाया।
दीवान, इक्ता, अमील, क़ाज़ी आदि संस्थाएँ पहले से चली आ रही थीं; संसाधन–कमी के कारण बड़े सुधार भी संभव नहीं थे।
Q19. आलम शाह को इतिहास में किस प्रकार का शासक कहा गया है – सक्रिय या विलासी/कमजोर? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: अधिकतर विलासी और कमजोर।
उसका दिल्ली छोड़कर बदायूँ चले जाना इस कमजोरी का प्रतीक माना जाता है।
Q20. क्या सैय्यद वंश के दौरान सल्तनत की “अधिकारिक भाषा” में अचानक बड़ा परिवर्तन हुआ? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, प्रशासन में फारसी की परंपरा जारी रही।
यह बदलाव आगे मुगल काल तक भी नहीं आया; भारतीय प्रशासन में फारसी का प्रभुत्व लंबे समय तक रहा।
Q21. “सैय्यद” शब्द के प्रयोग से शासक अपने बारे में क्या संदेश देना चाहते थे? 👁️उत्तर देखें
संक्षिप्त उत्तर: कि वे पैग़म्बर मुहम्मद के वंशज हैं और धार्मिक–वैधता रखते हैं।
Q22. तैमूर के आक्रमण से दिल्ली के किस पक्ष पर सबसे अधिक असर पड़ा – अर्थव्यवस्था, सेना या शिक्षा? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: विशेष रूप से अर्थव्यवस्था और नगर–जीवन पर।
व्यापार, उद्योग, जन–जीवन – सब पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा; सैय्यदों के समय तक यह चोट पूरी तरह भर नहीं सकी।
Q23. क्या सैय्यद वंश के समय उत्तर भारत में केवल दिल्ली ही शक्ति–केंद्र था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, कई शक्ति–केंद्र थे – जैसे जौनपुर, राजपूत रजवाड़े, अफगान सरदार आदि।
Q24. सैय्यद वंश में “सबसे बड़ा प्रशासनिक सुधारक” किसे नहीं माना जाता – और क्यों? 👁️उत्तर देखें
संक्षिप्त उत्तर: किसी को भी बड़े सुधारक के रूप में नहीं; क्योंकि संसाधन और शक्ति दोनों सीमित थे, उन्होंने पुराने ढाँचे को ही चलाया।
Q25. सैय्यद वंश के अंत में दिल्ली पर किसका प्रभाव बढ़ता हुआ दिखता है – अफगान या राजपूत? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: अफगान तत्वों का, विशेषकर बहलोल लोदी जैसे सरदारों का।
Q26. क्या सैय्यद वंश के काल में “सल्तनत का नाम” समाप्त हो गया था? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: नहीं, नाम व परंपरा चलती रही, पर वास्तविक शक्ति कम हो गई थी।
Q27. सैय्यद वंश के समय “केंद्र की कमजोरी” का एक प्रमुख कारण क्या था – कम राजस्व या छोटी सेना? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: दोनों परस्पर जुड़े; कम राजस्व के कारण सेना छोटी और कमजोर रही।
Q28. “तुगलक के बाद, लोदी से पहले” – यह वाक्य सीधे किस वंश की ओर संकेत करता है? 👁️उत्तर देखें
उत्तर: सैय्यद वंश।
Q29. सैय्यद वंश के अध्ययन से परीक्षा में कौन–सा बड़ा इतिहास–बिंदु समझ में आता है? 👁️उत्तर देखें
संक्षिप्त उत्तर: कि कैसे एक बड़ी सल्तनत के टूटने पर छोटे–छोटे क्षेत्रीय राज्य उभरते हैं और “केंद्र” केवल नाममात्र रह जाता है।
Q30. एक पंक्ति में – “सैय्यद वंश की मुख्य पहचान क्या है?” 👁️उत्तर देखें
सार: “कमजोर परंतु आवश्यक संक्रमण–कालीन वंश, जिसने तैमूर के बाद और लोदी से पहले दिल्ली की कड़ी को जोड़े रखा।”
Q31. सैय्यद वंश से पहले दिल्ली पर किस वंश का शासन था?👁️उत्तर
उत्तर: तुगलक वंश।
Q32. सैय्यद वंश के बाद कौन–सा वंश सत्ता में आया?👁️उत्तर
उत्तर: लोदी वंश (अफगान वंश)।
Q33. क्या सैय्यद वंश को “अफगान वंश” कहा जाता है?👁️उत्तर
उत्तर: नहीं, उसे सैय्यद वंश (पैग़म्बर–वंश दावा) कहा जाता है; अफगान विशेषण लोदी वंश के लिए आता है।
Q34. एक शब्द में – “सैय्यद वंश की स्थिति कैसी थी – आक्रामक या रक्षात्मक?”👁️उत्तर
उत्तर: अधिकतर रक्षात्मक – अपनी सीमित सत्ता बचाए रखने पर केंद्रित।
Q35. एग्ज़ाम लिखने लायक सार वाक्य – “सैय्यद वंश का ऐतिहासिक महत्व क्या है?”👁️उत्तर
मॉडल लाइन: “सैय्यद वंश ने विजयों से नहीं, बल्कि टूटी सल्तनत में दिल्ली की परंपरा को जीवित रखकर भारतीय मध्यकालीन इतिहास में एक संक्रमण–कड़ी की भूमिका निभाई।”

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