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1️⃣ मोहम्मद गौरी के आक्रमण एवं प्रभाव (1191–1206)
⚔️ तराइन के दोनों युद्ध, पृथ्वीराज चौहान, राजपूत शक्ति, कुतुबुद्दीन ऐबक व दिल्ली सल्तनत की नींव
📚 UPSC, State PCS, RO/ARO, UPSSSC, Police, SI व अन्य One-day Exams हेतु Smart Notes
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भाग – 1 : विस्तृत स्टडी नोट्स – मोहम्मद गौरी के आक्रमण एवं प्रभाव (1191–1206)
Turning Point of Medieval India
🎯 फोकस: तराइन के दोनों युद्ध + राजपूत–तुर्क संघर्ष + दिल्ली सल्तनत की नींव – Pre + Mains दोनों को ध्यान में रखकर।
🧭 1. भूमिका – यह टॉपिक इतना महत्वपूर्ण क्यों?
1192 का तराइन द्वितीय युद्ध भारतीय मध्यकालीन इतिहास का निर्णय–बिंदु माना जाता है।
इसके पहले उत्तर भारत में राजपूत वंशों की प्रधानता थी; इसके बाद तुर्क–सल्तनत की।
इसलिए मोहम्मद गौरी के आक्रमण केवल युद्ध नहीं, बल्कि नई राजनीतिक व्यवस्था की शुरुआत हैं।
- गुर्जर–प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत छोटे–छोटे राज्यों में विभाजित था।
- चौहान, गहड़वाल, चंदेल, सोलंकी आदि आपस में शक्ति–संतुलन में लगे थे, पर बाहरी खतरे के प्रति एकजुट नहीं थे।
- इसी समय गुरिद वंश (Ghurids) मध्य एशिया में उभर रहा था, जिसके नेता मोहम्मद गौरी थे।
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Exam Lens:
इस टॉपिक से सीधे–सीधे Prelims में factual प्रश्न, और Mains में
“राजपूत पराजय के कारण” / “दिल्ली सल्तनत की नींव” जैसे विश्लेषणात्मक प्रश्न बनते हैं।
🌍 2. राजनीतिक पृष्ठभूमि – भारत और गुरिद शक्ति
🇮🇳 2.1 उत्तर भारत की स्थिति
- गुर्जर–प्रतिहारों, पाल, राष्ट्रकूट आदि साम्राज्यों के पतन के बाद राजनीतिक रिक्तता।
- राजपूत वंश – चौहान (अजमेर–दिल्ली), गहड़वाल (कन्नौज), चंदेल (बुंदेलखंड), सोलंकी (गुजरात) आदि।
- आपसी संघर्ष (कन्नौज की राजनीति, सीमा–विवाद) के कारण कोई मजबूत केंद्र नहीं बन पाया।
🏔️ 2.2 गुरिद शक्ति की उभरती भूमिका
- गजनवी साम्राज्य कमजोर हो रहा था; उसकी जगह गुरिद वंश शक्तिशाली बन रहा था।
- मोहम्मद गौरी ने गजनवी शासकों को पराजित कर गजनी और लाहौर पर अधिकार किया।
- अब उसकी दृष्टि भारत के समृद्ध मैदानों और व्यापार मार्गों की ओर थी।
🎯 3. मोहम्मद गौरी के लक्ष्य – केवल लूट या स्थायी शासन?
- गजनवी सुल्तान महमूद की तरह केवल लूट–मार नहीं, बल्कि राज्य विस्तार व स्थायी शासन की नीति।
- मध्य एशिया से भारत के बीच रणनीतिक कड़ी (लाहौर–दिल्ली–कन्नौज क्षेत्र) पर नियंत्रण।
- सिंध, पंजाब और गंगा–घाटी के समृद्ध क्षेत्रों से राजस्व व सैन्य संसाधन प्राप्त करना।
- इस्लामी सत्ता का प्रसार और प्रतिद्वन्द्वी तुर्क/ईरानी शक्तियों से प्रतिस्पर्धा।
⚔️ 4. प्रारंभिक अभियान (1175–1186) – असफलताओं से सीख
🧭 4.1 1175–1182 : मुल्तान, सिंध, पंजाब
- 1175: मुल्तान पर आक्रमण, इस्माइली सत्ता को समाप्त कर अपने अधिकार में लिया।
- 1178: गुजरात पर आक्रमण; भीमदेव II (सोलंकी) से नागदा/कायडर क्षेत्र में पराजित।
- गुजरात–मार्ग से प्रवेश असफल; बाद में सिंध व पंजाब के रास्ते भारत में स्थायी प्रवेश।
🏰 4.2 1182–1186 : लाहौर की विजय
- 1182–1186: सिंध व पंजाब क्षेत्र पर क्रमिक विजय।
- 1186: लाहौर पर अधिकार – गजनवी शासकों का अंत; भारत में स्थायी ठिकाना।
- अब गौरी सीधे गंगा–यमुना के मैदान की ओर ध्यान देने की स्थिति में था।
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Prelims Tip:
1178 – गुजरात (भीमदेव II से हार),
1186 – लाहौर विजय,
1191 – तराइन I,
1192 – तराइन II,
1206 – गौरी की मृत्यु + ऐबक की स्वतंत्रता।
⚔️ 5. तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) – राजपूत विजय
तराइन (थानेसर के निकट, हरियाणा) – दिल्ली–अजमेर और पंजाब के बीच महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र,
जहाँ से गंगा–घाटी और उत्तर–पश्चिम, दोनों पर दृष्टि रखी जा सकती थी।
- गौरी ने भटिंडा के किले पर कब्ज़ा किया, जो चौहान साम्राज्य के लिए रणनीतिक महत्वपूर्ण था।
- अजमेर–दिल्ली के शासक पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान) ने विशाल राजपूत सेना संगठित की।
- दोनों सेनाएँ तराइन के मैदान में आमने–सामने आईं।
🛡️ युद्ध की मुख्य बातें
- राजपूतों ने भारी घुड़सवार व पैदल सेना के साथ सीधा मोर्चा लिया।
- तुर्क सेना अपेक्षाकृत कम और कम तैयार थी।
- भीषण टक्कर में तुर्क सेना टूट गई, गौरी घायल होकर भागा।
✅ परिणाम व गलती
- यह युद्ध राजपूतों की निर्णायक विजय के रूप में समाप्त हुआ।
- परंतु पृथ्वीराज ने न तो गौरी का पीछा किया, न उसके राज्य पर प्रतिआक्रमण।
- यही रणनीतिक चूक बाद में 1192 में भारी पड़ी।
🔥 6. तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) – निर्णायक तुर्क विजय
- गौरी ने पराजय से सीखकर संगठित व आधुनिक तुर्की सेना के साथ वापसी की।
- घुड़सवार धनुर्धरों (Horse Archers) का बड़ा दस्ता – दूर से तीर–अभियान, Hit & Run।
- युद्ध से पहले राजपूत एकजुटता कमजोर – कई प्रमुख राजपूत शक्तियाँ पूर्ण रूप से नहीं जुड़ीं।
⚔️ युद्ध की रणनीति
- तुर्क सेना ने पहले छोटी–छोटी टुकड़ियों से राजपूत मोर्चे को थकाया।
- राजपूत सेनाएँ भारी कवच व पारंपरिक पंक्ति–बद्ध ढाँचे में बँधी रहीं।
- अंत में निर्णायक हमला कर राजपूत सेना को चारों ओर से घेर लिया गया।
📉 परिणाम
- पृथ्वीराज पराजित व बंदी बना।
- दिल्ली व अजमेर पर तुर्कों का अधिकार स्थापित हुआ।
- उत्तर भारत में तुर्क सत्ता की स्थायी स्थापना का मार्ग खुला।
⚖️ 7. राजपूत पराजय के प्रमुख कारण (Exam Favourite)
🧠 (1) सामरिक कारण
- राजपूतों की पारंपरिक युद्ध–शैली बनाम तुर्कों की गतिशील “Hit & Run” रणनीति।
- भारी कवच–धारी घुड़सवार और पैदल सेना – तेज maneuver की कमी।
- युद्ध के बाद शत्रु का पीछा न करना, निर्णायक विजय को राजनीतिक लाभ में न बदल पाना।
🤝 (2) राजनीतिक व सामाजिक कारण
- राजपूत राज्यों में आपसी ईर्ष्या व प्रतिस्पर्धा; व्यापक स्तर पर एकजुटता का अभाव।
- सामाजिक–राजनीतिक संरचना में वंशीय गौरव अधिक, साम्राज्यवादी दृष्टि कम।
- विदेशी शक्ति को दीर्घकालिक खतरे की तरह न देखना, केवल तत्काल युद्ध–जीत पर ध्यान।
🏰 8. दिल्ली सल्तनत की नींव – कुतुबुद्दीन ऐबक की भूमिका
- 1192 के बाद गौरी ने जीते हुए भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अपने विश्वस्त दास कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपा।
- ऐबक ने दिल्ली–अजमेर से शासन चलाया, नयी सैन्य चौकियाँ बनाईं, स्थानीय सरदारों से सन्धि/दमन दोनों किए।
- 1206: गौरी की हत्या दमियक (अफगानिस्तान) में; भारतीय इलाकों पर ऐबक का वास्तविक नियंत्रण।
- ऐबक ने स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित किया – यहीं से दिल्ली सल्तनत का औपचारिक प्रारंभ माना जाता है।
📘 9. भारत पर गौरी के आक्रमणों का दीर्घकालिक प्रभाव
🧭 राजनीतिक प्रभाव
- राजपूत प्रभुत्व के स्थान पर तुर्क–केन्द्रित सल्तनती सत्ता की स्थापना।
- दिल्ली का एक स्थायी राजनीतिक–प्रशासनिक केंद्र के रूप में उदय।
- अगले लगभग 300 वर्षों तक उत्तर भारत की राजनीति पर तुर्क–अफगान वंशों का प्रभाव।
⚔️ सैन्य व प्रशासनिक प्रभाव
- घुड़सवार धनुर्धरों, तेज–तर्रार सेनाओं व नई सैन्य रणनीतियों का प्रसार।
- दास–आधारित एलिट (Slave Nobility) का विकास – जो आगे चलकर “दास वंश” की रीढ़ बना।
- इक्तादारी जैसी व्यवस्थाओं की ओर धीरे–धीरे अग्रसर जमीन।
🕌 सांस्कृतिक व सामाजिक प्रभाव
- इस्लामी स्थापत्य, मस्जिद, मकबरा, क़िला निर्माण की शुरुआत (आगे ऐबक–इल्तुतमिश के समय स्पष्ट)।
- नये शासक वर्ग के आगमन से समाज में नये संपर्क, संघर्ष व समन्वय – तीनों प्रक्रियाएँ।
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Mains निष्कर्ष बिंदु:
“मोहम्मद गौरी के आक्रमण केवल राजपूत–तुर्क युद्ध नहीं थे, बल्कि उत्तर भारत की राजनीतिक धुरी को स्थायी रूप से बदलने वाली घटनाएँ थीं, जिनसे दिल्ली सल्तनत और मध्यकालीन भारतीय राज्य–व्यवस्था की नींव पड़ी।”
“मोहम्मद गौरी के आक्रमण केवल राजपूत–तुर्क युद्ध नहीं थे, बल्कि उत्तर भारत की राजनीतिक धुरी को स्थायी रूप से बदलने वाली घटनाएँ थीं, जिनसे दिल्ली सल्तनत और मध्यकालीन भारतीय राज्य–व्यवस्था की नींव पड़ी।”
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भाग – 2 : त्वरित पुनरावृत्ति – मोहम्मद गौरी (1191–1206)
3–4 Min Smart Recap
⚡ बस इतना याद हो तो कोई भी Objective + Short Notes आराम से निकल जाएगा।
1️⃣ राजनीतिक पृष्ठभूमि
- गुर्जर–प्रतिहार, पाल आदि के पतन के बाद उत्तर भारत बिखरा हुआ।
- राजपूत वंश – चौहान, गहड़वाल, चंदेल, सोलंकी – आपसी प्रतिस्पर्धा में व्यस्त।
- मध्य एशिया में गुरिद शक्ति का उदय, गजनवी कमजोरी।
2️⃣ गौरी के उद्देश्य
- सिर्फ लूट नहीं, बल्कि स्थायी शासन की स्थापना।
- सिंध–पंजाब–गंगा घाटी के समृद्ध क्षेत्रों पर नियंत्रण।
- लाहौर–दिल्ली–कन्नौज कॉरिडोर पर रणनीतिक प्रभुत्व।
3️⃣ मुख्य वर्ष
- 1175 – मुल्तान आक्रमण
- 1178 – गुजरात (भीमदेव II से हार)
- 1186 – लाहौर विजय
- 1191 – तराइन I (राजपूत विजय)
- 1192 – तराइन II (तुर्क विजय)
- 1206 – गौरी की मृत्यु, ऐबक स्वतंत्र
4️⃣ तराइन – प्रथम युद्ध
- भटिंडा किले को लेकर संघर्ष।
- पृथ्वीराज की निर्णायक विजय, गौरी भागा।
- परंतु गौरी को समाप्त न करना – बड़ी सामरिक गलती।
5️⃣ तराइन – द्वितीय युद्ध
- घुड़सवार धनुर्धर + Hit & Run रणनीति।
- राजपूत सेना भारी, लेकिन कम लचीली।
- पृथ्वीराज पराजित, दिल्ली–अजमेर तुर्कों के अधीन।
6️⃣ परिणाम व प्रभाव
- राजपूत शक्ति का धीरे–धीरे क्षय।
- कुतुबुद्दीन ऐबक के माध्यम से दिल्ली सल्तनत की नींव।
- उत्तर भारत में तुर्क–केंद्रित शासन की शुरुआत।
❓
भाग – 3 : PYQ / One Liners – मोहम्मद गौरी व तराइन के युद्ध (Show / Hide Answer)
40 High Yield Qs
फोकस: वर्ष, युद्ध, व्यक्तित्व, कारण–परिणाम, दिल्ली सल्तनत की नींव –
प्रत्येक प्रश्न के साथ छोटी पर उपयोगी व्याख्या।
Q1. तराइन का प्रथम युद्ध किस वर्ष लड़ा गया था? 👁️Show / Hide
उत्तर: 1191 ई.
Q2. तराइन के प्रथम युद्ध में राजपूतों का नेतृत्व किसने किया? 👁️Show / Hide
उत्तर: पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान)।
Q3. तराइन का द्वितीय युद्ध किस वर्ष हुआ? 👁️Show / Hide
उत्तर: 1192 ई.
Q4. 1178 में गुजरात में गौरी को किसने पराजित किया? 👁️Show / Hide
उत्तर: भीमदेव द्वितीय (सोलंकी शासक, गुजरात)।
Q5. लाहौर पर गौरी का अधिकार किस वर्ष स्थापित हुआ? 👁️Show / Hide
उत्तर: 1186 ई. (लगभग)।
Q6. तराइन किस वर्तमान राज्य में स्थित है? 👁️Show / Hide
उत्तर: हरियाणा (थानेसर के निकट)।
Q7. गौरी की सेना की मुख्य विशेषता क्या थी जिसने राजपूत सेना पर बढ़त दिलाई? 👁️Show / Hide
उत्तर: घुड़सवार धनुर्धरों की गतिशील “Hit & Run” रणनीति।
Q8. पृथ्वीराज चौहान को किस काव्य–ग्रंथ में वीर नायक के रूप में वर्णित किया गया है? 👁️Show / Hide
उत्तर: “पृथ्वीराज रासो” (चंद बरदाई)।
Q9. गौरी की मृत्यु कब और कहाँ हुई मानी जाती है? 👁️Show / Hide
उत्तर: 1206 ई., दमियक (अफगानिस्तान) के निकट।
Q10. दिल्ली सल्तनत की वास्तविक नींव किस युद्ध के बाद पड़ी मानी जाती है – 1191 या 1192? 👁️Show / Hide
उत्तर: 1192 – तराइन का द्वितीय युद्ध।
Q11. 1178 की पराजय के बाद गौरी ने भारत में प्रवेश की कौन–सी रणनीतिक दिशा चुनी? 👁️Show / Hide
उत्तर: सिंध–पंजाब–लाहौर की दिशा।
Q12. तराइन के प्रथम युद्ध के बाद राजपूतों की सबसे बड़ी सामरिक भूल क्या थी? 👁️Show / Hide
उत्तर: गौरी को पूरी तरह समाप्त न करना और उसके राज्य पर प्रतिआक्रमण न करना।
Q13. गौरी ने भारत के जीते हुए प्रदेशों का प्रशासन किसके हाथ में सौंपा? 👁️Show / Hide
उत्तर: कुतुबुद्दीन ऐबक।
Q14. गौरी किस वंश से संबंधित था – गजनवी या गुरिद? 👁️Show / Hide
उत्तर: गुरिद वंश (Ghurid Dynasty)।
Q15. क्या गौरी का उद्देश्य महमूद गजनवी की तरह केवल लूट था? संक्षिप्त विश्लेषण। 👁️Show / Hide
उत्तर: नहीं, उसका उद्देश्य स्थायी शासन स्थापित करना था।
Q16. तराइन–II में राजपूतों की पराजय का एक सामाजिक–राजनीतिक कारण लिखिए। 👁️Show / Hide
मॉडल पॉइंट: राजपूत संघों में व्यापक स्तर की एकता और साम्राज्यवादी दृष्टि का अभाव।
Q17. 1192 की हार के बाद उत्तर भारत की राजधानी के रूप में कौन–सा नगर उभरा? 👁️Show / Hide
उत्तर: दिल्ली।
Q18. कौन–सा वर्ष “दिल्ली सल्तनत की औपचारिक शुरुआत” माना जाता है? 👁️Show / Hide
उत्तर: 1206 ई.
Q19. “तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास का Turning Point क्यों है?” – 2 पंक्तियों में उत्तर। 👁️Show / Hide
Model Line:
इस युद्ध के बाद उत्तर भारत में राजपूत सत्ता की जगह तुर्क–केंद्रित सत्ता स्थापित हुई;
दिल्ली एक नई राजधानी के रूप में उभरी और अगले कई शताब्दियों की राजनीतिक दिशा बदल गई।
Q20. गौरी का भारत में मुख्य प्रतिद्वन्द्वी कौन–सा राजपूत वंश था? 👁️Show / Hide
उत्तर: चौहान वंश (अजमेर–दिल्ली)।
Q21. 1175 में गौरी ने सबसे पहले किस स्थान पर आक्रमण किया?👁️Show
उत्तर: मुल्तान।
Q22. 1178 की पराजय किस युद्ध से संबंधित है?👁️Show
उत्तर: गुजरात के नागदा/कायडर क्षेत्र में भीमदेव II से हार।
Q23. गौरी ने गजनवी सत्ता को कहाँ समाप्त किया?👁️Show
उत्तर: लाहौर क्षेत्र में।
Q24. तराइन–I का परिणाम एक शब्द में?👁️Show
उत्तर: राजपूत विजय।
Q25. तराइन–II का परिणाम एक शब्द में?👁️Show
उत्तर: तुर्क विजय।
Q26. गौरी की भारतीय नीति का आधार – लूट या राज्य?👁️Show
उत्तर: राज्य–स्थापना (Permanent Rule)।
Q27. 1206 के बाद भारत में किस वंश की शुरुआत मानी जाती है?👁️Show
उत्तर: दास वंश (Slave Dynasty)।
Q28. तराइन–युद्ध किस नदी/क्षेत्र के समीप हुए?👁️Show
उत्तर: थानेसर–तराइन क्षेत्र (आधुनिक हरियाणा)।
Q29. गौरी के बाद भारत में सबसे प्रभावी व्यक्ति कौन बना?👁️Show
उत्तर: कुतुबुद्दीन ऐबक।
Q30. तराइन–II के बाद राजपूतों की स्थिति?👁️Show
उत्तर: क्षेत्रीय शक्ति के रूप में सीमित; केंद्रीय सत्ता तुर्कों के हाथ में।
Q31. “Horse Archer” शब्द किस सेना से जुड़ा है – राजपूत या तुर्क?👁️Show
उत्तर: तुर्क सेना।
Q32. गौरी की शक्ति–केंद्र गोर कहाँ स्थित था?👁️Show
उत्तर: आधुनिक अफगानिस्तान।
Q33. पृथ्वीराज किस राजवंश से संबंधित थे?👁️Show
उत्तर: चौहान वंश।
Q34. तराइन के युद्धों का मुख्य cause – व्यक्तिगत शत्रुता या संरचनात्मक कमजोरी?👁️Show
उत्तर: संरचनात्मक कमजोरी (रक्षा–नीति, एकता की कमी)।
Q35. दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान कौन माना जाता है?👁️Show
उत्तर: कुतुबुद्दीन ऐबक।
Q36. गौरी की भारतीय नीति का दीर्घकालिक परिणाम क्या था?👁️Show
उत्तर: दिल्ली केंद्रित तुर्क–सल्तनत की स्थापना।
Q37. “दिल्ली सल्तनत” शब्द किस प्रकार के शासन को सूचित करता है?👁️Show
उत्तर: तुर्क–अफगान शासकों की केंद्रीकृत सल्तनती सत्ता।
Q38. 1192 के बाद कन्नौज की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?👁️Show
उत्तर: कन्नौज राजपूत–केंद्र से हटकर तुर्क–प्रभाव क्षेत्र में आ गया (क्रमिक प्रक्रिया)।
Q39. क्या गौरी ने अपने lifetime में दिल्ली सल्तनत की घोषणा की?👁️Show
उत्तर: नहीं, यह कार्य उसके दास ऐबक ने 1206 में किया।
Q40. एक वाक्य में – “1192 क्यों याद रखना चाहिए?”👁️Show
Model Line:
क्योंकि 1192 की तराइन विजय ने उत्तर भारत में तुर्क सत्ता की स्थायी नींव रखी,
जो आगे चलकर दिल्ली सल्तनत के रूप में विकसित हुई।
